अमर उजाला ब्यूरो
झांसी। नगर निगम के लिपिक परशुराम सतोइया ने जहरीला पदार्थ निगलने से पहले कर्मचारियों के व्हाट्सएप ग्रुप में दो लाइन का मेसेज लिखा। उन्होंने लिखा कि मुझे नगर निगम के अधिकारियों ने बहुत परेशान करके मरने को मजबूर कर दिया। थोड़ी देर में यह मेसेज नगर निगम गलियारे में वायरल हो गया। अंदरखाने कर्मचारियों के बीच ऐसे अधिकारी की तलाश शुरू हो गई है जिसकी वजह से कर्मचारी को आत्मघाती कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा हालांकि कर्मचारी यूनियन समेत कोई भी नगर निगम कर्मचारी इस बारे मेें खुलकर बोलने को राजी नहीं हुआ।
परशुराम सतोइया इन दिनों संपत्ति विभाग में दुकानों से संबंधित लिपिकीय कार्य संभाल रहे थे। पिछले कई साल से वह यह काम देख रहे थे। उनके पास सिर्फ यही एक काम था। 30 जून को नगर आयुक्त ने अधिकांश लिपिकीय कर्मचारियों के पटल परिवर्तन किए लेकिन, उनका पटल नहीं बदला। ऐसे में उनके संग काम करने वाले कर्मचारी भी उनको प्रताड़ित करने वाले अफसर की पहचान नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे मेें अपनी मौत से कुछ समय पहले लिखे इस मेसेज से परशुराम की मौत का पूरा मामला रहस्य में घिर गया। उधर, उसकी मौत के बाद से परिवार में कोहराम मचा है। दो साल बाद ही उन्हें सेवानिवृत होना था लेकिन, परिवार के लोगों का कहना है कि वह नौकरी को लेकर काफी तनाव में रहते थे। बेटे विजय के मुताबिक पिता परशुराम काफी परेशान रहते थे। अक्सर वह नगर निगम अधिकारियों के रवैये की घर में आकर चर्चा करते थे। रोजाना की परेशानी की वजह से वह नौकरी नहीं करना चाहते थे। परिवार के लोग उनको समझाते थे। विजय का कहना है कि परेशान होने पर वह गढ़मऊ फर्म हाउस चले जाते थे। एसपी सिटी ज्ञानेंद्र सिंह का कहना है कि परिवार के लोगों की ओर से अभी कोई शिकायती पत्र नहीं दिया गया है।
परशुराम सतोइया निगम के कर्मठ कर्मचारी थे लेकिन, उनकी मौत के बाद हम लोग किसी पर भी आरोप-प्रत्यारोप नहीं लगा सकते।
मो.परवेज, अध्यक्ष, नगर निगम कर्मचारी एसोशिएशन
छह माह पहले कर निरीक्षक की भी हो गई थी मौत
कर विभाग में तैनात निरीक्षक सुरेंद्र सिंह की मौत करीब सात माह पहले हो गई थी। मौत से पहले उनका एक वीडियो वायरल हो गया था। वीडियो वायरल होने के बाद सुरेंद्र काफी दबाव में आ गए थे। इसके बाद जनवरी में उन्होंने दम तोड़ दिया। सुरेंद्र के परिजनों का कहना है कि कुछ लोग उनका वीडियो बनाकर उनको ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहे थे।
दो महीने पहले ही हुआ था प्रमोशन
परशुराम का प्रमोशन दो माह पहले मई में हुआ था। इसके पहले वह बिल कलेक्टर के तौर पर काम करते थे लेकिन, मई में उनको पदोन्नति देकर लिपिक बना दिया गया था।