बरेली, पीलीभीत, लखनऊ, बांदा, झांसी, हंडिया(प्रयागराज), मुजफ्फरपुर समेत अन्य केंद्रों के ध्यानार्थ

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– बीएचयू समेत आठ आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज के अध्ययन में आया परिणाम

– प्रमुख सचिव आयुष को सौंपी गई 13,936 लोगों पर अध्ययन वाली रिपोर्ट

माई सिटी रिपोर्टर

वाराणसी। आयुर्वेदिक औषधियां एलोपैथ की तरह ही असरदार हैं। मरीजों की सेहत के लिए यह चिकित्सा पद्धति उपयोगी है। बीएचयू में स्थापित वर्चुअल रिसर्च लैब के माध्यम से वाराणसी समेत प्रदेश के आठ आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों के डॉक्टरों की टीम के अध्ययन में यह परिणाम आया है। जून 2022 से मार्च 2023 तक 13936 लोगों पर हुए अध्ययन के बाद अब इसकी रिपोर्ट तैयार कर शासन को भी भेज दी गई है।

बीएचयू आयुर्वेद संकाय की ओर से फरवरी 2022 में हुए एक कार्यक्रम में प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गाशंकर मिश्र ने आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के प्रति जागरूकता के लिए अध्ययन कराने की बात कही थी। इसके बाद बीएचयू आयुर्वेद संकाय के प्रो. यामिनी भूषण त्रिपाठी और वैद्य सुशील दुबे की पहल पर बरेली, पीलीभीत, लखनऊ, बांदा, झांसी, हंडिया(प्रयागराज), मुजफ्फरपुर के चिकित्सकों ने मरीजों पर अध्ययन किया। वैद्य सुशील दुबे और प्रतापगढ़ में चिकित्साधिकारी अवनीश पांडेय ने प्रमुख सचिव आयुष लीना जौहरी को यह रिपोर्ट सौंपी। बताया कि इस क्षेत्र में विस्तार से कार्य करने पर सहमति भी बनी है। रिपोर्ट के अनुसार इसमें सभी सरकारी आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों से 13,936 मरीजों पर अध्ययन किया गया। बीएचयू में इसमें आयुर्वेद संकाय, शारीरिक शिक्षा, मनोविज्ञान, सांख्यिकी विभाग के साथ मिलकर प्रोफार्मा बनाया गया।

सात दिन में 58 प्रतिशत को लाभ

वैद्य सुशील दुबे ने बताया कि तीन दिन तक दवा कराने वाले मरीजों को 31 प्रतिशत और सात दिन में 58.35 प्रतिशत मरीजों पर आयुर्वेदिक दवाओं का असर हुआ। अध्ययन के माध्यम से यह भ्रम दूर करने की कोशिश की गई कि आयुर्वेदिक दवाइयां देर में असर करती हैंं। यह भी सामने आया कि असंतुलित जीवन शैली से 76 प्रतिशत लोगों के शरीर से पसीना नहीं निकलता है। इससे अन्य बीमारियां होने का खतरा रहता है। शरीर का पसीना लीवर में जाने की संभावना रहती है। इससे फैटी लीवर होने, बीपी, शुगर की संभावना बढ़ जाती है।

अध्ययन में ये है खास

-43 प्रतिशत लोगों का खानपान नहीं सही है, इससे पित्तदोष हो जाता है।

-49.15 प्रतिशत लोग खाने में मीठा पसंद करते हैं।

-52 प्रतिशत मरीजों को 100 से 300 मीटर पैदल चलने में सांस लेने में परेशानी होती है।



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