ललितपुर के तालबेहट तहसील के छोटे से गांव सेमरा डांग में सदियों से चली आ रही परंपरा

घर के अलावा गांव के बड़े-बुजुर्गों को सामने देख पैरों में पहनी चप्पल हाथ में उठा लेती हैं

अनीता वर्मा

झांसी। एक रीति, एक परंपरा जिसने बुंदेलखंड के एक छोटे से गांव को सदियों से मिसाल बना रखा है। जहां पूरी दुनिया में संस्कारों की सीख धुंधली होती जा रही है। वहीं यहां आज भी संस्कार विरासत में मिलते हैं…। संस्कार भी ऐसे कि जब तक आप अपनी आंखों से न देख लें, यकीन नहीं आएगा कि ऑनलाइन जमाने में जब महिलाएं हवाई जहाज चला रही हैं, वहां कहीं ऐसा भी हो सकता है कि बड़े-बूढ़ों के सम्मान में महिलाएं चप्पल न पहनें। यहां संस्कारों के बीज इतने गहरे हैं कि यदि रास्ते में जा रही महिला को घर या गांव का कोई बड़ा-बुजुर्ग व्यक्ति दिख जाए तो वह उसी पल अपने पैरों में पहनी हुई चप्पल हाथ में लेकर किनारे ठहर जाती हैं। पुरुष के निकलने के बाद ही आगे जाकर चप्पल पैरों में पहनती हैं।

आप सोच रहे होंगे कि ये 1960 के गोल्डन एरा की किसी फिल्म की कहानी है। लेकिन, ये कोई कहानी नहीं बल्कि ललितपुर जिले के पास तालबेहट तहसील के छोटे से गांव सेमरा डांग की महिलाओं के संस्कार हैं। यहां नई-नवेली दुल्हन से लेकर दादी-नानी-काकी तक हर महिला घर के ससुर, जेठ, नंदोई के साथ-साथ गांव में पद व उम्र में बड़े बुजुर्गों के सामने पैंरों में चप्पल नहीं पहनती हैं। सेमरा डांग की महिला ममता बताती हैं कि गांव में जब भी कोई नई बहू आती है, सास, परिवार और पड़ोस की महिलाएं उसे चप्पल के बारे में पूरी जानकारी देती हैं। यदि कोई बहू इस बात को मानने से मना करती है तो उसे सदियों से चली आ रही इस परंपरा और समाज का हवाला देकर समझाया जाता है। इसके बाद भी यदि कोई नहीं समझता तो डांटना भी पड़ता है। लेकिन, हर हाल में गांव के संस्कार इसी तरह पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चलते चले आ रहे हैं।

गांव की महिला पिस्ता बताती हैं कि ये प्रथा गांव में लड़कियों पर लागू नहीं होती है। इसे सिर्फ बहुएं ही निभाती हैं। वह बताती हैं कि शादी से पहले ही बहू के मायकेवालों को गांव की इस रीति के बारे में बता दिया जाता है ताकि शादी के बाद इस नियम को लेकर ससुराल में कोई लड़ाई झगड़ा न हो। गांव के पुरुष संतोष और शंभू बताते हैं कि बड़ों के सामने चप्पल पैर में पहनने की बजाय हाथ में लेकर निकलने की परंपरा पीढि़यों से चली आ रही है।

बच्चे भी सम्मान करना सीखते हैं

तकरीबन 76 साल के बुजुर्ग सियाराम बताते हैं कि बड़े-बूढ़ों को अब समाज में मान-सम्मान नहीं मिलता। नये-नये लड़के-बच्चे सुनते नहीं हैं। लेकिन, उनके गांव में महिलाओं द्वारा चप्पल हाथ में लेने की प्रथा ने अभी तक संस्कार बचाकर रखे हैं। बच्चे भी बड़ों का सम्मान करना सीखते हैं।

बड़ों को सम्मान देने के लिए है प्रथा

तकरीबन 50 साल पहले गांव में ब्याह कर आईं नन्हीं बहू बताती हैं कि उनकी सास नहीं थीं। उन्हें परिवार की महिलाओं ने घर और गांव के उम्र एवं पद में बड़े-बूढ़ों के सामने से निकलने पर चप्पल हाथ में लेने की बात बताई थी। पहले तो उन्हें बहुत अटपटा लगा, लेकिन बाद में समझ गईं कि ये प्रथा बड़ों को सम्मान देने के लिए है।

चप्पल पहनकर घर के भीतर जाना मना है

झांसी। सेमरा डांग गांव में एक और भी रीति है। इस रीति के चलते कोई भी घर के अंदर जूते-चप्पल पहनकर दाखिल नहीं हो सकता। बच्चे, पुरुष और महिलाएं सभी के लिए इसका पालन करना जरूरी है। महिला मालती और नन्ही बताती हैं कि उनके बड़े-बुजुर्गों के अनुसार घर की देहरी पर देव का वास होता है। चप्पल पहनकर वहां जाने से देव नाराज होते हैं। इसी से सभी लोग इसका पालन करते हैं। ब्यूरो

पहले बड़े घराने के लोगों के सामने चप्पल पहनी तो मिलती थी प्रताड़ना

झांसी। 20-22 साल पहले महिलाएं और पुरुष बड़े घराने के लोगों के सामने चप्पल नहीं पहनते थे। इस कुप्रथा से बाहर निकलीं ललितपुर में बांसी के मथुराडांग गांव की महिलाएं सुखवती और पुष्पा बताती हैं कि अब ये कुरीति खत्म हो चुकी है। महिलाओं का कहना है कि बरसों पहले ये कुप्रथा इतनी सख्त थी कि जो भी इसे नहीं मानता था, उसे सामाजिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती थी। कई बार जुर्माना भी लगता था। लोगों में बड़े घरानों का इतना खौफ था कि इनके घरों के सामने से पैदल जा रहा आदमी तक चप्पल हाथ में उठा लेता था। महिलाएं बताती हैं ये प्रथा अब नहीं रही।



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