जनसहभागिता से दिया गया नाले में तब्दील हो चुकी इस नदी को पुनर्जीवन
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अमर उजाला ब्यूरो
झांसी। सूखे से जूझ रहे बुंदेलखंड में कनेरा नदी को मिला पुनर्जीवन उम्मीद की एक नई किरण बनकर आया है। नाले में तब्दील हो चुकी इस नदी की अब 19 किलोमीटर लंबी अविरल धारा बह रही है, जो आसपास के खेतों को सिंचित करने के साथ भूगर्भ जलस्तर बढ़ाने का काम भी कर रही है। यह नदी विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकीं 67 दूसरी नदियों को आस बंधा रही है कि एक दिन उनका भी उद्धार होगा।
सूखाग्रस्त इलाके के रूप में पहचाने जाने वाले बुंदेलखंड के सात जनपदों झांसी, ललितपुर, जालौन, बांदा, हमीरपुर, महोबा व चित्रकूट में किसी जमाने में 409 छोटी-बड़ी नदियां बहा करती थीं। लेकिन, लगातार हुई कम बारिश की वजह से 295 नदी नाले में तब्दील होकर रह गईं, जबकि 67 विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गईं। इन्हीं में से एक थी कनेरा नदी।
यह नदी उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद के बबीना में आने वाले छह गांव बेदौरा, टूका, सरवां, भंडारा, पथरवारा व दयानगर एवं मध्य प्रदेश के तीन गांव हरपालपुर, चंदबनी व जनौली होकर गुजरती थी। इसका उद्गम स्थल बबीना कैंट की चांदमारी वाली पहाड़ी से था और 19 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर यह नदी घुरारी नदी में मिल जाती थी। तीन दशक पहले तक कनेरा नदी में साल भर पानी रहता था। लेकिन, बीते सालों में कई बार पड़े सूखे की वजह से इस नदी ने अपना स्वरूप खो दिया था और छोटे से नाले में तब्दील होकर रह गई थी। साल 2018 में इस नदी को पुनर्जीवन देने का काम शुरू किया गया था। नदी के पुनर्जीवित होने की उम्मीद बंधते देख मनरेगा और अन्य विभागों की ओर से 97 लाख रुपये की धनराशि जारी की गई। नदी का पानी संचय करने के लिए इस पर सात चेकडैम बनाए गए हैं। अब यह नदी अपने पुराने स्वरूप में बहती नजर आती है। हरियाली भी खूब पनपने लगी है।
बुंदेलखंड में थे 10 हजार से अधिक तालाब, बचे 1900
झांसी। बुंदेलखंड की पथरीली जमीन चंदेलकाल में तालाबों की धरती हुआ करती थी। चंदेलकाल में क्षेत्र में 10 हजार से अधिक छोटे-बड़े तालाबों का निर्माण किया गया था। इसके बाद बुंदेला काल में 16वीं शताब्दी तक इन तालाबों का संरक्षण व संवर्धन किया गया और इसके बाद भी यह तालाब अपना स्वरूप बनाए रहे। लेकिन, पिछले चार दशकों के दरम्यान इन तालाबों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा। कहीं जमीन पर अतिक्रमण हो गया तो कई जलस्रोत खत्म हो गए। नलकूप, हैंडपंप से भूगर्भ जल के दोहन की वजह से भी इन तालाबों को खासा नुकसान पहुंचा और तालाबों की संख्या घटकर 1900 पर सिमट गई। लेकिन, अब एक बार फिर तालाबों को पुनर्जीवित करने का काम शुरू किया गया है। जिला प्रशासन ने जन सहभागिता से बबीना के ग्राम लहर ठकुरपुरा में एक हजार साल पुराने चंदेलकाल में बने 83 एकड़ के क्षेत्र में तालाब को पुनर्जीवित किया है। अन्य तालाबों को भी नया जीवन दिया जा रहा है। नए तालाब बनाए जा रहे हैं। इनके इर्दगिर्द बड़े पैमाने पर पौधरोपण भी किया जा रहा है।
सुखनई, लखेरी व घुरारी नदी पर भी चल रहा काम
झांसी। जिलाधिकारी रविंद्र कुमार ने बताया कि क्षेत्र की सूखाग्रस्त इलाके के रूप में पहचान खत्म करने के लिए कई स्तर पर काम किया जा रहा है। कनेरा नदी को पुनर्जीवन देने के बाद अब सुखनई, लखेरी व घुरारी नदी पर भी काम चल रहा है। चंदेलकालीन तालाबों को पुनर्जीवन देने के साथ 19 नए तालाब भी बनाए जा रहे हैं। खेत-तालाब योजना के तहत 200 तालाब स्वीकृत हो चुके हैं और 100 पर काम भी शुरू हो गया है। सभी तालाबों के इर्द-गिर्द बड़े पैमाने पर पौधरोपण होगा। इसके अलावा अवैध कब्जों से मुक्त कराई गईं जमीनों पर भी पौधे रोपे जाएंगे।
बुंदेलखंड में पानी की कमी नहीं है, इसका अंदाजा चंदेलकाल के तालाबों को देखकर लगाया जा सकता है। अब जलस्रोतों को फिर से सहेजने का काम शुरू हुआ है। इसी के चलते विलुप्त हो चुकी कनेरा नदी की जलधारा वापस नजर आने लगी है। जलस्रोतों के आसपास हरियाली अपने आप ही पनप आती है। बस इसे बचाए रखने भर की जरूरत है। – संजय सिंह, राष्ट्रीय संयोजक, जल-जन जोड़ो अभियान