चार हजार किसानों का यह करिश्मा बाकी गांवों के लिए बन रहा प्रेरणा
संवाद न्यूज एजेंसी
झांसी। यूरिया, डीएपी और जहरीले कीटनाशक। मिट्टी, अनाज और इंसानी सेहत के लिए नुकसानदेह इन रसायनों की कमी से बुंदेलखंड में हाहाकार है। खाद की किल्लत से किसान जूझ रहे हैं। दूसरी तरफ इसी इलाके में 230 गांवों में रासायनिक खादों का इस्तेमाल नहीं होता। यहां किसानों ने खेतों को जहर खिलाना बंद कर उन्हें जैविक खादों का स्वाद चखा दिया है। सनई, ढेंचा, गोमूत्र, गुड़, गोबर और केंचुओं की खाद से उपजाई केमिकल मुक्त फसलें इन गांवों को समृद्ध कर रही हैं। इन 4000 किसानों का यह करिश्मा बाकी गांवों के लिए प्रेरणा बन रहा है।
खाद के लिए लंबी लंबी लाइनें लग रही हैं। लाइन में लगे लगे सुबह से शाम हो जा रही है तब कहीं जाकर एक बोरी खाद किसान के हाथ आती है। हर रोज खाद केंद्रों पर हंगामा हो रहा है। वहीं बुंदेलखंड के झांसी, ललितपुर और जालौन जनपद में 230 गांव के चार हजार किसान ऐसे हैं जिन्हें खाद की किल्लत का कोई तनाव नहीं होता है। इन किसानों ने रासायनिक खेती करना बंद कर दिया है। कृषि अफसरों के मुताबिक छह साल पहले 50 किसानों के एक समूह में प्राकृतिक खेती शुरू की थी। शुरुआत में 10 गांव में 50 हेक्टेयर भूमि को प्राकृतिक खेती के लिए चिह्नित किया गया। ये किसान गोमूत्र, गुड़, गोबर और पानी के जरिये खाद तैयार करने लगे। इससे न केवल फसल की पैदावार बढ़ी बल्कि आमदनी भी बढ़ गई। इन किसानों के समूह की सफलता को देखते हुए अन्य गांव के किसान भी प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ चले। पिछले साल जहां 115 गांव के किसानों ने इस पद्धति से खेती शुरू की तो अब यह संख्या दोगुनी हो गई है। अब इसमें 230 गांव के चार हजार किसान 11500 हेक्टेयर में प्राकृतिक खेती कर रहे हैं।
28750 बोरी डीएपी और यूरिया की खपत भी घटी
रबी की खेती के लिए किसान डीएपी मिलने की आस में समिति और निजी केंद्रों पर लाइन लगाए खड़े हैं तो दूसरी ओर चार हजार किसानों ने 28,750 बोरी डीएपी और यूरिया की खपत घटा दी। अफसरों के मुताबिक एक एकड़ क्षेत्र में एक बोरी डीएपी और एक बोरी यूरिया का इस्तेमाल होता है। इस तरह से मंडल में 11500 हेक्टेयर यानी 28750 एकड़ भूमि पर डीएपी और यूरिया का प्रयोग नहीं हुआ।
प्राकृतिक खेती पर इतना मिल रहा मुनाफा
प्राकृतिक खेती कर रहे किसानों को आधुनिक खेती करने वाले किसानों से अधिक मुनाफा मिल रहा है। रसायन का उपयोग करने वाले किसानों को जहां प्रति एकड़ 25 से 50 हजार रुपये का लाभ हो रहा है तो दूसरी तरफ प्राकृतिक खेती करने वाले किसान को एक एकड़ पर 70 हजार से एक लाख रुपये तक का लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
180 रुपये का बिक रहा 200 ग्राम अंकुरित चना
ई-कॉमर्स वेबसाइट पर मंडल के कई किसानों के उत्पाद ऊंचे दामों पर बिक रहे हैं। किसानों ने बताया ऐसे कई किसान हैं, जिनके 200 ग्राम अंकुरित चने वेबसाइट पर 180 रुपये में भी बिक रहे हैं।
कहते हैं आंकड़े
-115 गांव में पिछले साल से शुरू हुई खेती
– 50 हेक्टेयर क्षेत्र में किसानों ने शुरू की थी खेती
– 230 गांव में अब हो रही खेती
– 4.65 करोड़ रुपये की किसानों ने की बचत
यह बोले किसान
प्राकृतिक खेती में यदि मेहनत कर ली तो यह वाकई, उपजाऊ भूमि और मानव जीवन तीनों के लिए वरदान सिद्ध हो सकता है। हमने गाय के मूत्र, गुड़, गोबर और पानी से ही भूमि को इतना उपजाऊ बना लिया है कि अब रासायनिक खाद की जरूरत नहीं है।
श्याम बिहारी गुप्ता, अंबाबाय।
प्राकृतिक खेती को अपना कर अपने साथ ही भूमि के जीवन को भी बचाने का प्रयास किया है। बस यह खेती मेहनत मांगती है। यदि आपने मेहनत कर ली तो हर प्रकार से लाभ ही लाभ है।
– अवधेश प्रताप सिंह, साकिन, समथर।
जमीन कभी कंकरीली हुआ करती थी लेकिन, जब से हमने प्राकृतिक खेती अपनाई है मिट्टी बहुत मुलायम हो गई है। बारिश के दिनों में जितने केंचुए हमारे खेत पर होते हैं, शायद ही पूरे जिले में इतने केंचुए मिलें।
– शरद प्रताप सिंह, पाली पहाड़ी।
– आठ साल पहले तक हम भी रसायनिक खेती करते थे लेकिन, इससे भूमि को नुकसान हो रहा था। इसके बाद ही हमने प्राकृतिक खेती को अपनाया। हमारी उपज भी बढ़ गई है और बाजार में डिमांड भी बढ़ी है।
रविकांत दुबे, बिजौली।
वर्जन
मंडल के 230 गांव के चार हजार से अधिक किसान लगभग 11500 हजार हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। इससे उन्हें अच्छा लाभ तो मिल ही रहा है, साथ ही यूरिया और डीएपी का इस्तेमाल न होने से भूमि की गुणवत्ता भी बढ़ रही है।
एमपी सिंह, उप निदेशक कृषि, झांसी।