झांसी में टहरौली के सेवानिवृत्त शिक्षक बशीर अब भी बच्चों को पढ़ाने जाते हैं स्कूल
-नौकरी पर रहते हुए की पढ़ाई, शिक्षा विभाग भी करता है सराहना
अमर उजाला ब्यूरो
झांसी। आंखों में जुनून और दिल में चिंगारी रखो, जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो, राह के पत्थर तो कुछ भी नहीं हैं, मंजिलें आवाज देंगी सफर जारी रखो…जिंदगी में कुछ ऐसा ही जुनून लेकर रिटायरमेंट की उम्र में टीईटी पास करके रिटायर होने के बाद भी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने वाले झांसी के शिक्षक बशीर खान किसी मिसाल से कम नहीं हैं। बशीर खान उन शिक्षकों के लिए एक उदाहरण हैं जो 55-60 साल की उम्र पार करते ही खुद को सेवानिवृत्ति की जंजीरों में जकड़ लेते हैं। जबकि इन्होंने 58 साल की उम्र में टीईटी पास किया है। असल में टहरौली के पिपर गांव में रहने वाले सेवानिवृत्त शिक्षक बशीर खान पिछले साल 31 मार्च को टहरौली के पूर्व माध्यमिक विद्यालय किला से बतौर हेड मास्टर सेवानिवृत्त हुए हैं, लेकिन विद्यालय में शिक्षकों की कमी के चलते ये अब भी बच्चों को स्कूल में पढ़ाने जाते हैं।
बशीर खान बताते हैं कि बात 2018 की है। एक शिक्षामित्र के ये कहने पर कि मास्टर जी आप क्या जानो कि अब शिक्षक बनना कितना मुश्किल है, पुराने शिक्षक ये टीईटी पास नहीं कर सकते हैं। टीईटी पास करने में दिन रात एक हो जाते हैं। बशीर बताते हैं कि उन्होंने कहा कि वह भी परीक्षा पास कर सकते हैं, तो सभी ने उनका खूब मजाक बनाया। फिर उन्होंने कहा कि अगर वह पास नहीं हुए तो वेतन नहीं लेंगे।
ऐसे में उन्होंने टीईटी की तैयारी शुरू कर दी क्योंकि उस दौरान उम्र की कोई समय सीमा तय नहीं थी। उनका सेंटर झांसी के विद्यालय में पड़ा था, वह अपने सेंटर में सबसे अधिक उम्र के परीक्षार्थी थे। कई ने मजाक बनाया और कई ने उनके प्रयास की सराहना की। उस वक्त उनकी उम्र 58-59 साल थी। वर्ष 2018 में उन्होंने 105 नंबर पाकर परीक्षा पास कर ली। इसके बाद शिक्षा विभाग के अधिकारियों सहित साथी शिक्षकों ने उन्हें सम्मानित किया। बशीर ने बताया कि अब वह बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ अपनी खेती का काम भी देखते हैं।बशीर खान का कहना है कि पढ़ने-लिखने की कोई उम्र नहीं होती। व्यक्ति ठान ले तो कोई भी मंजिल मिल सकती है।
नौकरी में रहते हुए बीए भी पास किया
बशीर खान बताते हैं कि उन्होंने इंटरमीडिएट (बायोलॉजी) के बाद बतौर उर्दू शिक्षक नौकरी ज्वाइन की थी। इसके बाद जूनियर में प्रमोट होकर वह बघौरा व चंदवारी में रहे। बाद में टहरौली किला के स्कूल में हेडमास्टर हो गए। नौकरी में रहते हुए उन्होंने गणित विषय से इंटरमीडिएट भी किया। इसके बाद बीए की परीक्षा पास की थी।
पत्नी को भी सिखाया लिखना-पढ़ना
बशीर खां बताते हैं कि 1977 में उनकी शादी हुई थी। उनकी पत्नी ने पढ़ाई नहीं की, लेकिन इन्होंने उन्हें पढ़ना और अपना नाम लिखना सिखाया। उनका बेटा स्नातक है और उनके साथ खेती में हाथ बंटाता है। पढ़ाई के बाद दोनों बेटियों की शादी कर चुके हैं।