अमर उजाला ब्यूरो
झांसी। महीनों पहले रिजर्वेशन कराकर अपनी बर्थ बुक करने वाले यात्रियों को भी इन दिनों स्लीपर कोचों में आसानी से बैठने के लिए जगह नहीं मिल पा रही है। सामान्य टिकट पर यात्रा करने वाले तमाम लोग धड़ल्ले से स्लीपर कोचों में कब्जा जमा लेते हैं। ऐसे में स्लीपर कोच की हालत भी जनरल जैसी ही हो जाती है। बावजूद, स्लीपर कोच के यात्रियों को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए ट्रेनों में न तो चेकिंग स्टाफ नजर आता है और न ही रेलवे की पुलिस।
दोपहर 12.05 बजे ग्वालियर स्टेशन से चलकर डबरा, दतिया होते हुए लगभग 100 किलोमीटर का सफर तय कर 11123 ग्वालियर-बरौनी मेल दोपहर 1.44 बजे झांसी के वीरांगना लक्ष्मीबाई रेलवे स्टेशन पर पहुंची। ट्रेन में आगे और पीछे दो-दो जनरल कोच लगे हुए थे। इनसे सटे हुए स्लीपर क्लास के कोच थे। लेकिन, जनरल और स्लीपर कोचों में कोई अंतर नजर नहीं आ रहा था। जनरल कोच यात्रियों से खचाखच भरे हुए थे और कमोबेश यही स्थिति स्लीपर कोचों की भी बनी हुई थी। स्लीपर कोच की हर बर्थ पर पांच-छह यात्री बैठे हुए थे। जबकि, तमाम यात्री कोच की गैलरी में जमे हुए थे। यात्रियों की भीड़ की वजह से टॉयलेट जाने तक का रास्ता अवरुद्ध था। कोच के पंखे चल रहे थे, लेकिन ठसाठस भीड़ होने की वजह से पंखों की हवा किसी को नहीं लग रही थी। यात्रियों का उमस से बुरा हाल बना हुआ था। इसी बीच जगह को लेकर कई यात्रियों के बीच बहस भी जारी थी। रिजर्वेशन कराकर यात्रा करने पहुंचे यात्री मोबाइल की स्क्रीन पर अपना रिजर्व टिकट दिखाकर लोगों से बर्थ छोड़ने के लिए कह रहे थे, लेकिन सीट से कोई टस से मस नहीं हो रहा था। कोच में न टीटीई था और न ही रेलवे की पुलिस, ऐसे में यात्री शिकायत करते भी तो किससे, उन्हें परिस्थितियों से खुद ही जूझना पड़ रहा था। इन्हीं सब हालातों के साथ गाड़ी तकरीबन 13 मिनट तक झांसी में रुकने के बाद आगे बढ़ गई।
डेढ़ महीने पहले रिजर्वेशन कराकर अपनी सीट पक्की कर ली थी। जब ट्रेन आई तो देखा कि सीट पर चार-पांच लोग बैठे हुए हैं। वे उठने को तैयार नहीं हुए, बल्कि झगड़ा करने पर उतारू हो गए। मजबूरी में उनके साथ अपनी सीट शेयर कर ली। – राजकुमार प्रजापति
गाड़ी के स्लीपर कोच भी जनरल जैसे हो गए हैं। ठसाठस भीड़ भरी हुई है। ऐसे में रिजर्वेशन कराने का कोई मतलब ही समझ में नहीं आया। रेलवे रिजर्व सीटों के अतिरिक्त पैसे लेता है, लेकिन सुविधा नहीं देता पाता है। ट्रेनों की हालत बेहद खराब है। – नितिन
ट्रेनों में टीटीई नजर आते ही नहीं हैं और न ही रेलवे पुलिस दिखती है। शिकायत करें भी तो किससे। रेलवे ने यात्रियों को उनके हाल पर छोड़ रखा है। पैसा पूरा देने के बाद भी बर्थ तो छोड़ो, बैठने के लिए जगह तक नहीं मिल पा रही है। – पुष्पेंद्र सिंह
आप ही देख लीजिए, कहने को स्लीपर कोच है और रेलवे ने किराया भी स्लीपर का ही लिया है। लेकिन, बैठने के लिए जगह भी नहीं मिल पा रही है। ट्वीट कर रेल प्रशासन को समस्या भी बताई गई। लेकिन, समाधान करने कोई नहीं आया। – देव
बगैर वैध टिकट के यात्रा करने वालों के खिलाफ लगातार कार्रवाई जारी है। समय-समय पर सघन जांच अभियान भी चलाए जाते हैं और अनियमित यात्रा करने वालों से जुर्माना वसूला जाता है।
– मनोज कुमार सिंह, जनसंपर्क अधिकारी