दार-उल-कजा में फिर बसे टूटे परिवार
संवाद न्यूज एजेंसी
झांसी। मियां-बीबी के रिश्ते में होने वाले बिखराव को समेटने के लिए महानगर में दार-उल-कजा स्थापित है। जिसमें पिछले साल से लेकर अबतक सैकड़ों शादियों को टूटने से बचाया जा चुका है। दार-उल-कजा की खास बात यह है कि यहां न कोई जज है और न ही कोई वकील। मुस्लिम धर्मगुरु कुरआन और हदीस की जानकारी देकर ही इन रिश्तों को टूटने से बचा रहे हैं।
मुस्लिम समाज में बढ़ रहे तलाक और घरेलू हिंसा के मामलों को देखते हुए शरई पंचायत दारुल कजा का गठन किया गया था। यहां आने वाले हर मुस्लिम जोड़े से इस्लाम के जानकार बात कर उनकी परेशानी का कारण पूछते हैं और उसे दूर करने का प्रयास करते हैं। यहां मुरैना, डबरा, इन्दरगढ़, ग्वालियर, शिवपुरी, दतिया, टीकमगढ़, मऊरानीपुर, सागर, उरई, महोबा आदि से भी मुस्लिम जोड़े अपनी समस्या लेकर आ रहे हैं। इन जोड़ों की यहां कुरान और हदीस (इस्लामी इतिहास) के सहारे काउंसिलिंग की जाती है। दार-उल-कजा की विशेषता यह है कि यहां किसी भी पक्ष पर कोई निर्णय नहीं थोपा जाता। दोनों पक्षों को इस बात पर राजी किया जा रहा है कि आप जिस धर्म से आते हैं, उस धर्म के संस्थापक मोहम्मद साहब ने मियां-बीवी का रिश्ता सबसे अच्छा रिश्ता बताया है। इसके लिए कुरआन की आयत का हिंदी अनुवाद कर उन्हें समझाया जाता है। पिछले एक साल में यहां 156 से अधिक मामलों का निपटारा किया जा चुका है।
– दार-उल-कजा में बदला मन, कोर्ट केस भी लिए वापस
दार-उल-कजा में ऐसे 12 मामले आए, जिन्होंने एक-दूसरे पर कोर्ट में केस दायर कर रखा था। कुछ माह केस चलने के बाद समाज के लोगों ने दोनों पक्षों को दार-उल-कजा का रास्ता दिखाया। यहां लगातार काउंसिलिंग होने के बाद सभी परिवारों ने मुकदमे वापस ले लिए हैं।
हम कुरआन और हदीस की रोशनी में जोड़ों की काउंसिलिंग कर हैं। इसका नतीजा भी बहुत अच्छा है। अब तक हमने 150 केस का निपटारा किया है। यहां किसी पर कोई निर्णय नहीं थोपा जा रहा और न ही उन्हें कोर्ट जाने से रोका जाता है।
मुफ्ती इनरान नदवी, दार-उल-कजा चेयरमैन