गर्भवतियां खा रहीं बाबा बूटी और भभूत, निमोनिया ठीक करने के लिए बच्चों के दागते हैं गर्म सलाखों से
सांप के डसने पर घंटों होती है झाड़फूंक
अमर उजाला ब्यूरो
झांसी। बुंदेलखंड में विकास तेजी से हो रहा है। झांसी तो स्मार्ट सिटी में शुमार हो चला है। ललितपुर भी विकास की कई योजनाओं के साथ आगे बढ़ रहा है लेकिन, अंधविश्वास के चलते लोग अब भी बुंदेलखंड की सौ-डेढ़ सौ साल पुरानी कु-प्रथाओं को नहीं छोड़ पा रहे।
अंधविश्वास में यहां अभी भी एक बड़ी आबादी सांप के डसने, पीलिया होने, टाइफायड, मिर्गी, बुखार में दौरे और निमोनिया जैसी बीमारी में सीधे डॉक्टर के पास जाने के बजाय झाड़फूंक करा रही है। और तो और छोटे बच्चों को निमोनिया होने पर उन्हें लोहे की गर्म सलाखों से दागने से निमोनिया खत्म होने पर विश्वास रखते हैं। इनकी झाड़फूंक यहीं खत्म नहीं होती, बेटे पैदा होने की चाहत में गर्भवती महिलाओं को कई तरह की बाबा बूटी और भभूत खिलाई जाती है। साथ ही ताबीज तो हर तीसरे-चौथे घर में मिल जाएंगे। आमतौर पर लोग इस पर विश्वास कर इसे पुरानी प्रथा के अनुसार इलाज करना मानते हैं, जबकि डॉक्टरों का कहना है कि मरीज को झाड़फूंक नहीं सही समय पर सही इलाज की जरूरत होती है। झांसी, ललितपुर, मऊरानीपुर, मड़वरा, मोंठ, ओरछा के आसपास और मध्य प्रदेश में कई जगह झाड़फूंक के बड़े-बड़े ठिकाने हैं।
तीनों को फोटो
मेडिकल कॉलेज बाल रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. ओमशंकर चौरसिया बताते हैं कि यहां बच्चों को दौरे पड़ने पर, टाइफायड होने पर और सांप के डसने पर लोग खूब झाड़फूंक कराते हैं। पीलिया होने पर भी कई दिनों तक पीलिया झड़वाते रहते हैं। वहीं सबसे बुरी झाड़फूंक तो निमोनिया की कराते हैं, इसमें बच्चों को लोहे की गर्म सलाखों से शरीर पर दाग देते हैं। जबकि झाड़फूंक से अक्सर बच्चों की हालत बिगड़ जाती है। इससे इलाज में भी देरी होती है। अक्सर समझाने पर भी परिजन नहीं मानते हैं।
जिला अस्पताल के वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. डीएस गुप्ता बताते हैं कि सांप के डसने पर अधिकांश परिवार सबसे पहले झाड़फूंक कराने दौड़ते हैं। इसके अलावा र्मिगी, साइकोसिस (मनोविक्षिप्त) और बार-बार बेहोश हो जाना व उल्टी-सीधी बातें करने के केस में इसे ऊपरी चक्कर मानकर झड़वाने के लिए बाबाओं के पास पहुंच जाते हैं। कई बार तो लकवा और तेज बुखार न उतरने पर भी दवा से पहले झाड़फूंक कराते हैं। अक्सर दवा चलने के बीच में भी मरीज को झाड़फूंक कराने ले जाते हैं। सांप के डसने पर तो यहां लोग पहले झाड़फूंक कराते हैं, बाद में अस्पताल लाते हैं। इससे कई मामलों में जान तक चली जाती है। शहर की स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. प्रियंका सिंह बताती हैं कि बुंदेलखंड में अब भी बेटे की चाहत में महिलाएं बाबा बूटी और कई तरह के ताबीज बांधकर आती हैं। सही समय पर इलाज की बजाय बूटी का लेप लगाती हैं। समझाने के बाद भी अक्सर लोग नहीं समझते हैं।
मानसिक रोगियों में झाड़फूंक में समय बर्बाद करना ठीक नहीं
जिला अस्पताल की मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. शिकाफा जाफरीन बताती हैं कि सिजोफ्रेनिया के केस में तो अक्सर ही लोग झाड़फूंक के चक्कर में पड़ जाते हैं। उन्हें लगता है कि किसी ऊपरी हवा ने जकड़ लिया है इसलिए उनका मरीज उल्टी-सीधी बातें कर रहा है। जोकि सिजोफ्रेनिया के मरीज के लक्षण होते हैं। अक्सर काउंसलिंग के दौरान लोगों को बताया जाता है कि बीमार व्यक्ति को झाड़फूंक नहीं बल्कि सही समय पर दवा की जरूरत होती है। मनोचिकित्सक अमन किशोर बताते हैं कि तन या मन से बीमार व्यक्ति को समय पर इलाज न मिले तो हालत सुधरने में काफी वक्त लग सकता है। स्थिति और बिगड़ सकती है। मानसिक रोगियों में झाड़फूंक में समय बर्बाद करना बिल्कुल ठीक नहीं होता।
केस-1
25 साल की एक युवती रात में उठकर घर से बाहर निकल जाती थी। वह बैठे-बैठे चीखने लगती थी। बताती थी कोई उसके पास आता है, उससे बातें करता था, उसे बाहर जाने को कहता है। घरवाले इसे प्रेत-बाधा समझकर तीन साल तक लड़की को बाबा और झाड़फूंक करने वाले के पास ले गए। उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी। जिला अस्पताल जाने पर पता चला कि वह सिजोफ्रेनिया की शिकार है।
केस-2
दो बच्चों की मां को एक दिन घर में काम करते वक्त सांप ने डस लिया। पति और उसके घरवाले महिला को लेकर छह-सात घंटे तक ललितपुर, मड़ावरा और झांसी ले जाकर झाड़फूंक कराते रहे। लेकिन, जब वह मरणासन हो गई तो उसे लेकर मेडिकल कॉलेज पहुंचे। वहां डॉक्टरों ने महिला को मृत बता दिया। जबकि परिजन डॉक्टरों से उसे बचा लेने की गुहार लगाते रहे।
केस-3
तीन माह के छोटे से बच्चे को निमोनिया हो गया था। बुंदेलखंड में प्रचलित झाड़फूंक की प्रथा के चलते परिजनों ने बच्चे को लोहे की गर्म सलाखों से कई बार दगवाया। बच्चे के पेट में कई जगह घाव हो गए। उसकी हालत बिगड़ गई तो उसे मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया। जहां डॉक्टरों ने बड़ी मुश्किल से बच्चे की जान बनाई और परिजनों को दोबारा ऐसा करने से मना किया।
केस-4
35 साल के एक युवा को पीलिया हो गया था। बीमारी समझ में आते ही परिजन अपने बेटे को झाड़फूंक कराने के लिए झांसी, मऊरानीपुर और एरच के साथ कई जगह ले गए। जहां पीलिया की झाड़फूंक करने वालों ने उसे धागा बांधकर गले में जड़ी-बूटी की कई मालाएं पहनाईं। डेढ़ महीने तक वह लोग झाड़फूंक कराते रहे। हालत बिगड़ गई तो उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया।