मेडिकल कॉलेज के एनआईसीयू में 50 शिशु भर्ती, हर महीने 100 से 130 केस आ रहे, जगह न होने से कई वापस लौटाए जा रहे

कई बच्चों का वजन सात-आठ सौ ग्राम के करीब

फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं

अमर उजाला ब्यूरो

झांसी। यूं तो बार-बार रोना सेहत के लिए खराब होता है, लेकिन जब एक शिशु जन्म के बाद न रोए तो स्थिति गंभीर हो जाती है। भागदौड़ भरी जिंदगी में गर्भावस्था के दौरान सही देखभाल न होने से जन्म के बाद न रोने वाले शिशुआें की संख्या झांसी में बढ़ रही है। मेडिकल कॉलेज के एनआईसीयू (नवजात गहन चिकित्सा इकाई) में हर महीने ऐसे 100 से 130 नवजात आ रहे हैं। वर्तमान में तो 50 शिशु भर्ती भी हैं। जगह न होने से कई वापस लौटाए जा रहे हैं। मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर बता रहे हैं कि अधिकांश मामलों में ऐसा जन्म के समय शिशु के दिमाग में ऑक्सीजन ठीक से न पहुंचने के कारण हो रहा है।

झांसी मेडिकल कॉलेज में पूरे बुंदेलखंड से मरीज इलाज कराने आते हैं। इनमें गर्भवती भी शामिल हैं। हर रोज 100 से अधिक महिलाएं आेपीडी ेमं पहुंचती हैं। वहीं बालरोग विभाग की आेपीडी में भी रोज 100 से अधिक केस आ रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इधर, मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी के चलते बीमार शिशुआें की संख्या तेजी से बढ़ रही है। मेडिकल कॉलेज के एनआईसीयू में 50 बच्चे भर्ती हैं।

डॉक्टर बता रहे हैं कि इस स्थिति को न्यूनेटेल एसफिक्सिया भी कहा जाता है। यह समस्या शिशु को जन्म के तुरंत बाद होती है। इस स्थिति में शिशु के मस्तिष्क में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाता है और उसे सांस लेने में तकलीफ होती है। ऑक्सीजन न लेने के कारण बच्चे के शरीर में ऑक्सीजन की भारी कमी हो जाती है। शरीर में एसिड का स्तर बढ़ जाता है। यह स्थिति जानलेवा हो सकती है।

ऐसे में बच्चा जन्म के बाद बिल्कुल भी रोता नहीं है। आमतौर पर जन्म के बाद न रोने वाले शिशु की पीठ और कमर के आसपास थपकी देकर या उसे उल्टा कर दिया जाता है ताकि बच्चा रोए, लेकिन ऐसी हालत में बच्चा प्रतिकि्रया नहीं करता। भर्ती होने वाले बच्चों का वजन सात-आठ सौ ग्राम के आसपास है।

इसका एक कारण समय से पूर्व प्रसव होना भी है। चूंकि 37 सप्ताह से पहले बच्चे के फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते, ऐसे में इस अवधि से पहले प्रसव हो जाए तो शिशु को सांस लेने में दिक्कत होती है। इससे भी बच्चा रो नहीं पाता है। प्रसव में काफी समस्या होना और गर्भवती में रक्त या ऑक्सीजन की कमी होने से भी दिक्कत पैदा हो जाती है। विभाग के अनुसार ऐसे बच्चों को भर्ती करने के लिए जल्द ही नया एनआईसीयू तैयार किया जा रहा है, इसमें कई बच्चों को एक साथ भर्ती किया जा सकेगा। इसका काम तेजी से चल रहा है।

गर्भावस्था में ध्यान न देना शिशु को संकट में डाल रहा

एनआईसीयू में इन दिनों 50 शिशु भर्ती हैं। कई शिशुआें की हालत काफी खराब होती है, ऐसे बच्चों को एक से डेढ़ महीने तक भर्ती करना पड़ रहा है। अधिकांश केस में बच्चा जन्म के बाद रो नहीं रहा। वहीं, सांस लेने में दिक्कत, वजन काफी कम होना और संक्रमण सहित अन्य कई कारण हैं। इसमें गर्भावस्था के दौरान ठीक से देखभाल न करना, प्रसव के दौरान, जंक फूड, फास्ट फूड अधिक खाना, अच्छे खानपान में कमी और समय पर डॉक्टर से चेकअप न कराना भी शिशु के लिए मुश्किलें पैदा करता है।

डॉ. आेमशंकर चौरसिया, विभागाध्यक्ष बालरोग, मेडिकल कॉलेज

ये भी हैं कारण

शिशु को चोट लगना, नाभि नाड़ी में समस्याएं, नाभिक कॉर्ड फैला होना, नाभि गर्भनाल का आगे की आेर बढ़ जाना, जन्म के दौरान महिला को संक्रमण होना, प्रसव का दर्द ज्यादा देर तक होना, सुरक्षित प्रसव न होना, गर्भवती का अल्ट्रासाउंड न होना ताकि उससे प्लेसेंटा (नाभि) की सही स्थिति का अंदाजा लग सके। एमनियोटिक द्रव्य (गर्भाशय के अंदर तरल पदार्थ से भरी थैली, जिसमें बच्चा सुरक्षित रहता है) की थैली का फट जाना या द्रव्य की कमी होना, समय से पूर्व गर्भनाल का गर्भाश्य से अलग हो जाना, गर्भावस्था में हाई या लो ब्लडप्रेशर होने के कारण भी ऐसी समस्या देखने को मिलती है।

ये हैं लक्षण

-शिशु की त्वचा की रंगत असामान्य होना।

-प्रसव के बाद शिशु का शांत होना या न रोना।

-ह्रदय गति कम होना, सांस लेने में दिक्कत।

-दौरे पड़ना, बच्चे का सुस्त होना।

-खून का दबाव कम होना,

-पेशाब कम होना, रक्त के थक्के जमना।



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