झांसी में सत्यम कॉलोनी, गायत्री कॉलोनी और मद्रासी कॉलोनी में लोगों ने घर बेचने के लिए लगाए पोस्टर
-बरसों से पानी संकट झेल रही एक लाख की आबादी, अपना घर छोड़कर किराये पर रहने लगे कई परिवार
संवाद न्यूज एजेंसी
झांसी। देश को आजाद हुए 76 साल बीत गए। आजादी की इस लड़ाई में शामिल रानी लक्ष्मीबाई की गाथा को कौन नहीं जानता। लेकिन, झांसी के लिए मरते दम तक लड़ीं रानी लक्ष्मीबाई ने शायद कभी नहीं सोचा होगा कि उनकी झांसी के लोगों को जिंदगी भर पानी की जंग भी लड़नी पड़ेगी। इस जंग में लोगों को अपना घर-द्वार और सुख-चैन ही नहीं नाते-रिश्तेदारी भी छोड़नी पड़ेगी। जिस झांसी की खुशहाली के लिए उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया। वहां एक दिन ऐसा आएगा कि लोग अपने रिश्तेदारों को एक गिलास पानी नहीं पिला सकेंगे। उल्टा अपने घरों के बाहर यह लिख देंगे कि खाना मांगे, लेकिन पानी न मांगे। पानी हमको खरीदकर लाना पड़ता है…।
ये किसी किताब में लिखी इबारत नहीं है…ये झांसी में शहर के बीच बसी सत्यम कॉलोनी, गायत्री कॉलोनी और मद्रासी कॉलोनी की तकरीबन एक लाख की आबादी की जिंदगी की सच्चाई है। इतनी बड़ी आबादी को बरसों से खरीदकर पानी पीना पड़ रहा है। जो पानी खरीदने में सक्षम नहीं हैं, वह सुबह-शाम एक से पांच किलोमीटर तक रोज पानी की तलाश में भटकते हुए मोटरसाइकिल, रिक्शा, टेंपो और साइकिलों से पानी ढोने को मजबूर हैं।
लेकिन, अब शहर को स्मार्ट सिटी में शामिल हुए पांच साल बीत जाने के बाद भी पानी का संकट खत्म होने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है तो इनकी आस टूट रही है, इन मुहल्लों में कई घरों के दरवाजे पर मकान बिकाऊ है के पोस्टर चस्पा कर दिए गए हैं। कई मकान मालिकों ने तो अपने घरों के बाहर …खाना मांगे, पानी न मांगे, पानी हमको खरीदकर लाना पड़ता है… तक लिखवाकर चस्पा कर रखा है। स्थिति यह है कि यहां के लोग कम से कम कीमत पर मकान बेचने को तैयार हैं, लेकिन पानी का संकट देख इन्हें कोई खरीददार भी नहीं मिल रहा। स्थिति यह है कि किरायेदार यहां आते नहीं हैं, और जिन्होंने यहां मकान बनवा लिए हैं वह अपना घर छोड़कर खुद दूसरी जगह किराये पर रहने लगे हैं। इनमें लगभग 350 मकान ऐसे हैं जो खाली पड़े हैं। वहीं, हर माह प्रत्येक परिवार दो से ढाई हजार रुपये खर्च करता है। नगर निगम का टैक्स भी देते हैं।
वहीं, जलसंस्थान द्वारा यहां रोजाना टैंकर से पानी पहुंचाया जाता है, फिर भी यहां पेयजल संकट कम नहीं होता है। यहां रहने वाली आबादी प्राइवेट जलसंस्थान और हैंडपंप पर ही निर्भर है।
सीन-1
सत्यम कॉलोनी : खाना हमारे घर जरूर खा लेना, पानी नहीं दे पाएंगे
सत्यम कॉलोनी में रहने वाले लोगों को सिर्फ टैंकर से ही पानी मिलता है, नलों में तो बरसों से यहां पानी नहीं आया। यहां के बुजुर्ग बताते हैं कि घर में टोटी से पानी आएगा, इसी उम्मीद में वह बच्चे से बुजुर्ग हो गए। ब्याह कर आईं महिलाएं दादी-परदादी बन गईं लेकिन, उन्हें अब भी पानी ढोकर लाना पड़ रहा है। मुहल्ले के सौरभ अग्रवाल, गौरव, महावीर शरण और राजकुमार साहू बताते हैं कि अपना गुजारा तो जैसे-तैसे हो पाता है, कोई रिश्तेदार आ जाए तो हाथ-पांव फूल जाते हैं। अब तो रिश्तेदारों से भी कह दिया है कि भइया खाना हमारे घर जरूर खा लेना, लेकिन पीने का पानी नहीं दे पाएंगे।
सीन-2
गायत्री कॉलोनी : पानी न मांगे, पानी हमको खरीदकर लाना पड़ता है
गायत्री कॉलोनी में रहने वाले लोगों ने अपने घरों के बाहर यह तक लिखवा लिया है कि खाना मांगे, पानी न मांगे। पानी हमको खरीदकर लाना पड़ता है। क्षेत्र में रहने वाले लोगों का कहना है कि यहां मकान बेचने के लिए तैयार हैं, लेकिन सालों से कोई खरीददार नहीं मिल रहा है। कमलेश कुशवाहा, शैलेंद्र पंडित, ओम प्रकाश बिस्वारी बताते हैं कि लोग अब मकान को बेचने की योजना बना रहे हैं। लोगों ने अपने घरों के बाहर मकान बिकाऊ है लिख दिया है। लेकिन, मकान खरीदने वाला कोई नहीं है। शादी-समारोह में भी पानी के इंतजाम में ही आठ-दस हजार रुपये खर्च हो जाते हैं।
केस-3
मद्रासी कॉलोनी: मकान बिकाऊ है कृपया संपर्क करें
मद्रासी कॉलोनी में बरसों पहले पानी की लाइनें बिछाई गई थीं। अब ये लाइनें जर्जर हो गईं। इसमें तमाम लीकेज हो चुके हैं, इससे पानी लोगों के घर नहीं आता है। ऐसे में यहां रहने वाले अधिकांश लोगों ने पानी के लिए सड़क पर पाइपलाइन के सहारे गहरे गड्ढे खोद दिए हैं। रात को दो-तीन बजे जब लाइनों में प्रेशर से पानी आता है तब ये अधिकांश लोग मोटर से पानी खींचकर किसी तरह पानी भरते हैं। मुहल्ले के राजेेश शर्मा, कुलदीप और सचिन जैन का कहना है कि लोग आधी-आधी कीमत में मकान बेचकर लोग चले गए हैं। कई के मकान बिक नहीं रहे। लोगों ने घर के बाहर पोस्टर लगा रखे हैं।
वर्जन
बड़ागांव गेट बाहर जल जीवन मिशन के तहत पाइपलाइन जल निगम द्वारा डाली गई है, मोहल्लों में जल्द ही पानी पहुंच जाएगा। अभी जलसंस्थान द्वारा इन क्षेत्रों में अधिक से अधिक टैंकर का संचालन कराया जा रहा है। – हिमांशु नेगी, अधिशासी अभियंता, जल निगम
जब जमीन खरीदी थी, तब लगा था कि बोरिंग से पानी निकल आएगा, लेकिन बोरिंग से पानी नहीं आया है। अब प्राइवेट टैंकर मंगवाकर काम चलाना पड़ता है। लेकिन, टैंकर कब तक मंगाते रहेंगे, इसलिए मकान बेच रहे हैं। – विक्रम सिंह पवार, सत्यम कॉलोनी
नौकरी से लौटने के बाद रोज रात को 9-10 बजे पांच किलोमीटर दूर से पानी भरकर लाते हैं, मोहल्ले में हैंडपंप और टैंकरों के सहारे ही पूरे साल जलापूर्ति होती है, सरकारी टैंकर आते हैं जाे पूरे नहीं पड़ते हैं। – अमित चक्रवर्ती, गायत्री कॉलोनी