ड्यूटी की थकान मिटने से पहले ही आ जाता है बुलावा, संभालनी पड़ जाती है ट्रेन की कमान
अमर उजाला ब्यूरो
झांसी। भले ही रेलवे की ओर से लोको पायलट के लिए नौ घंटे की ड्यूटी निर्धारित कर दी गई है। लेकिन, यह नियम-कानून सिर्फ कागजी है। हकीकत में अक्सर लोको पायलट को लगातार 15-16 घंटे तक रोबोट की तरह ड्यूटी करनी पड़ जाती है। इससे उन पर थकान हावी हो जाती है, आलम यह है कि थकान मिटने से पहले ही ड्यूटी का बुलावा आ जाता है। जिसका सीधा असर गाड़ी की संरक्षा पर पड़ता है।
आेडिशा में हुए भीषण रेल हादसे के बाद लोको पायलट की लंबी और थकाऊ ड्यूटी को लेकर रेलवे में चर्चा चरम पर है। हालांकि, ऐसा ही एक हादसा अप्रैल माह में विलासपुर में हुआ था। जिसमें दो मालगाड़ियों के बीच आमने-सामने की भिड़ंत हो गई थी। इस घटना में एक लोको पायलट की मौत भी हो गई थी। जांच में सामने आया था कि एक मालगाड़ी का ड्राइवर लगातार 14 घंटे से गाड़ी चला रहा था, जिससे उसे झपकी आ गई थी और इसी बीच गाड़ी सिग्नल पार कर दूसरी ट्रेन से जा भिड़ी थी।
इसके बाद रेलवे ने लोको पायलट से नौ घंटे से अधिक ड्यूटी न लेने का नियम बनाया था। आकस्मिक स्थिति में उनसे दो घंटे और गाड़ी चलवाने का प्रावधान किया गया था, इसके लिए लोको पायलट की सहमति भी अनिवार्य कर दी गई थी। लेकिन, रेलवे का यह नियम धरातल पर नहीं उतर पाया है।
असल में इसकी सबसे बड़ी वजह कर्मचारियों की कमी है। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि झांसी में मालगाड़ी के ड्राइवरों के 874 पद हैं, लेकिन कार्यरत 445 ही हैं। इनमें से भी 10 से 15 प्रतिशत ड्राइवर बीमारी व अन्य वजहों से अवकाश पर रहते हैं। जबकि, गाड़ियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
वर्तमान में झांसी से होकर अप और डाउन की लगभग 200 गाड़ियां रोजाना गुजरती हैं। ड्राइवरों की कमी का असर कार्यरत स्टाफ पर पड़ता है। उन्हें तय से चार-पांच घंटे ज्यादा ड्यूटी करनी पड़ जाती है।
छुट्टी मांगना मतलब गुनाह करना
झांसी। एक लोको पायलट ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि लोको पायलट के लिए छुट्टी मांगना कोई गुनाह करने से कम नहीं होता है। ड्राइवरों को छुट्टी के लिए अफसरों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता है। लोको पायलट रिश्तेदार तो दूर की बात, परिवार के साथ भी ढंग से समय नहीं बिता पाते हैं। गाड़ी से उतरने के बाद उन्हें 16 घंटे का ब्रेक मिलता है। इस समय में उसे आराम और घर के दूसरे काम भी करने पड़ते हैं। लेकिन, यह समय पूरा होने से पहले ही मोबाइल पर ड्यूटी कॉल आ जाती है। ब्यूरो
इन समस्याओं से भी जूझते हैं रेलवे के ड्राइवर
– इंजन में टॉयलेट की सुविधा नहीं है। घंटों लघुशंका रोके रहना पड़ता है। इससे ड्राइवर किडनी संबंधी बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं।
– इंजन में एसी तो दूर की बात, कई गाड़ियों में पंखे तक नहीं हैं। ऐसे में खासतौर पर गर्मियों में लोको पायलट हीट स्ट्रोक का शिकार हो जाते हैं।
– इंजन में लोको पायलट के लिए लगी सीट की बनावट ऐसी होती है, जिससे वह अपनी पीठ ढंग से नहीं टिका पाते हैं। इससे वह स्पाइनल संंबंधी दिक्कत हो जाती है।
वर्जन
लोको पायलट को निर्देश दिए गए हैं कि वे किसी भी तरह की समस्या होने पर गाड़ी को किसी भी स्टेशन पर लूप लाइन में खड़ी कर सकते हैं। इसकी सूचना उन्हें कंट्रोल रूम में देनी होगी। इसके अलावा लोको पायलट की कमी जल्द दूर होने जा रही है। प्रमोशन प्रस्तावित हैं। नई भर्तियां भी लगातार हो रहीं हैं।
– मनोज कुमार सिंह, जनसंपर्क अधिकारी
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सिग्नल न करें पार, हर हाल में रखें ख्याल
झांसी। आेडिशा में हुई रेल दुर्घटना के बाद शनिवार को क्रू लॉबी में लोको पायलट व सहायक लोको पायलट की काउंसलिंग हुई। इस दौरान चीफ इलेक्टि्रकल
लोको इंजीनियर पुष्पेष त्रिपाठी ने कहा कि ड्राइवर सिग्नल का हर हाल में ख्याल रखें। इसे कतई पार न करें। इसके अलावा संकेत के हिसाब से निर्धारित गति में ही गाड़ी चलाएं। इस दौरान रेलवे के अन्य अधिकारी भी मौजूद रहे। ब्यूरो
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दुर्घटना में मारे गए लोगों को दी श्रद्धांजलि
झांसी। ट्रेन दुर्घटना में मारे लगे लोगों को शनिवार को आंतिया तालाब पर आयोजित एक शोक सभा में युवाओं ने मोमबत्तियां जलाकर श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर डीके साहू, चंद्रपाल कुशवाहा, शिवम यादव, देवेश पस्तोर, वंशिका बबेले, क्रिस साहू, अमन, स्नेहा राय, शशांक, हंसिका, हिमांशी आदि मौजूद रहीं। ब्यूरो