अमर उजाला ब्यूरो

झांसी। सीपरी बाजार इलाके में जिस जगह आग लगी वह करीब बारह मीटर चौड़ी सड़क पर स्थित है। इस वजह से फायर ब्रिगेड की गाड़ियां बिना किसी परेशानी के यहां पहुंच भले गईं लेकिन, उनके पास इस विकराल आग से निपटने के लिए कोई आधुनिक संसाधन नहीं था। आग से लड़ने के लिए वह फुंके हुए उपकरणों के सहारे पहुंचे थे। आग बुझाने में जिस वाहन को लाया गया वह कंडम हो चुका। आग बुझाने के लिए पीछे की इमारत पर सीढ़ी लगाने की कोशिश हुई लेकिन, भयानक लपटों के आगे यह बेकार साबित हुईं। स्थानीय निवासी राजेंद्र शिवहरे, अभिषेक कुमार, दिलीप मिश्र आदि का कहना है आग बुझाने में इस्तेमाल होने वाले प्रेशर पाइप से प्रेशर भी नहीं बन रहा था। इस वजह से फायर ब्रिगेड की गाड़ियां आग बुझाने में कामयाब नहीं हो पा रही थीं। फायर कर्मियों के पास एंटी स्मोक मॉस्क भी नहीं थे। एंटी फायर उपकरण भी नहीं थे। इस वजह से सिर्फ पानी की फुहारें ही छोड़ी जा रही थीं। करीब दो घंटे बाद जब सेना की गाड़ियां पहुंची तब जाकर बचाव कार्य तेज हो सका।

सेना के पास मौजूद उपकरणों की मदद से आग पर किसी तरह चार घंटे बाद काबू पाया जा सका। सेना के वरिष्ठ अफसरों की मौजूदगी में दमकल वाहन आग बुझाने में जुटे रहे। वहीं, आसपास के लोगों का कहना है कि अगर यह आग किसी सघन इलाके में लगती तब वहां आग बुझा पाना भी इन संसाधनों के भरोसे संभव नहीं हो पाता।

इनसेट

फायर ब्रिगेड के पास मौजूद उपकरण

फायर टेंडर एक

वाटर बाउजर एक

वाटर टेंडर (छोटा) एक

हाईप्रेशर मिनी वाटर एक

बोलरो कैंपर रेस्क्यू एक

बहुमंजिली इमारत के पास न एनओसी, न आग से बचाव के उपकरण

महानगर के भीतर करीब 25 हजार व्यावसायिक बहुमंजिली इमारतें हैं। लेकिन, इनके पास आग से बचाव को लेकर कोई भी एनओसी नहीं है। नियमों के मुताबिक व्यावसायिक बहुमंजिली इमारतों के लिए न सिर्फ फायर ब्रिगेड से एनओसी की आवश्यकता होती है बल्कि भवन के अंदर आग से बचाव के उपकरण भी लगाने होते हैं। इनमें फायर सिलिंडर समेत फायर फाइटिंग पाइप भी लगाना होता है। न्यूनतम फायर सिलिंडर को रखना आवश्यक होता है। आग भड़कते ही इसके इस्तेमाल से आग को बेकाबू होने से रोका जा सकता है लेकिन, अधिकांश इमारतों के पास फायर ब्रिगेड की एनओसी ही नहीं है। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है इन शोरूम में फायर सिलिंडर भी नहीं रखे गए थे।

इमारत में अंदर एवं बाहर जाने का सिर्फ एक रास्ता

बीआर ट्रेडर्स एवं वैल्यू प्लस इमारत में अंदर एवं बाहर जाने का सिर्फ एक ही रास्ता था जबकि नियमों के मुताबिक बहुमंजिली इमारतों में प्रवेश एवं निकास का रास्ता अलग-अलग होना चाहिए। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि आग लगते ही सबसे पहले आग दरवाजे के आसपास ही भड़क उठी। इस वजह से अंदर के लोग वहीं फंस गए। वह बाहर नहीं निकल पा रहे थे। अंदर धुआं भरने पर कुछ लोग दूसरी मंजिल से नीचे कूद गए। अगर इन इमारतों में बाहर जाने का कोई इमरजेंसी रास्ता होता तब अंदर फंसे लोगों को आसानी से बाहर निकाला जा सकता था।

नक्शे के मुताबिक इमारतों के न बनने पर जेडीए भी रहा खामोश

जिस जगह अग्निकांड हुआ वहां अधिकांश व्यावसायिक इमारतें जेडीए के नक्शे के मुताबिक नहीं बनी हैं। नियमों के मुताबिक सिर्फ उन्हीं व्यावसायिक इमारतों के नक्शे पास किए जा सकते हैं, जिनके चारों ओर न्यूनतम फायर ब्रिगेड की गाड़ियों के घूमने की जगह छोड़ी गई हो लेकिन, इन दोनों ही बहुमंजिली इमारतों के अगल-बगल कोई भी जगह नहीं छोड़ी गई थी। दोनों ही इमारतें एक दूसरे से बिल्कुल सटकर बनी हुई थीं। इनकी दीवार से दीवार मिली हुई थी। पीछे की ओर से इनका रास्ता नहीं दिया गया था। इस वजह से बचाव का काम काफी देर से हो सका।



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