Kargil Vijay Diwas 2024: These fighters gave their life in war.

कैप्टन मनोज पांडेय
– फोटो : amar ujala

विस्तार


परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पांडेय, लांसनायक केवलानंद द्विवेदी, राइफलमैन सुनील जंग, मेजर रीतेश शर्मा, कैप्टन आदित्य मिश्र…ये उन जांबाजों के नाम हैं, जो कारगिल युद्घ में अदम्य शौर्य व पराक्रम का परिचय देते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी जांबाजी के किस्से आज भी लखनऊ में सुनाए जाते हैं। इन वीर सपूताें ने पाकिस्तानी घुसपैठियों के कब्जे से कारगिल को मुक्त कराने में अहम योगदान दिया। शुक्रवार को कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ है। पेश है एक रिपोर्ट :

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कैप्टन मनोज पांडेय : दुश्मनों के चार बंकर किए ध्वस्त

रेजीमेंट: 11 गोरखा राइफल्स

शहादत : 3 जुलाई, 1999

कैप्टन मनोज पांडेय कारगिल युद्घ के मुख्य नायक रहे हैं। 4 मई, 1999 को उन्हें कारगिल में भारतीय चौकियों को खाली कराने की जिम्मेदारी मिली। उन्होंने दुश्मनों के चार बंकर ध्वस्त कर दिए। इस बीच दुश्मन की गोली का शिकार भी हो गए। शहीद होने पर उन्हें परमवीर चक्र से नवाजा गया।

लांसनायक केवलानंद : बीमार पत्नी को छोड़ रणभूमि पहुंचे

रेजीमेंट : कुमाऊं

शहादत : 6 जून, 1999 कारगिल सेक्टर

शहीद लांसनायक केवलानंद द्विवेदी की पत्नी कमला बीमार थीं। वह उन्हें छोड़कर कारगिल युद्ध के लिए कूच कर गए थे। दुश्मनों के छक्के छुड़ाते हुए वह वीरगति को प्राप्त हुए। शहीद की पत्नी कमला ने बताया कि जैसे-तैसे परिवार का खर्च चलाया और बेटों तीरथराज व हेमचंद को पढ़ाया।

राइफलमैन सुनील जंग : देश के लिए दांव पर लगाई जान

रेजीमेंट: 11 गोरखा राइफल्स

शहादत: 15 मई, 1999

वर्ष 1995 में गोरखा राइफल्स में भर्ती हुए राइफलमैन सुनील जंग सिर्फ 16 साल के थे। वह कारगिल में लखनऊ के पहले शहीद थे। 10 मई, 1999 को सेना की ओर से उन्हें कारगिल सेक्टर भेजा गया। तीन दिन तक पराक्रम दिखाने के बाद 15 मई को वह शहीद हो गए। उनकी मां बीना महत छावनी के तोपखाने में रहती है। बताया कि सुनील के दादा मेजर नकुल जंग व पिता नर नारायण जंग भी सेना में सेवाएं दे चुके थे।

मेजर रीतेश शर्मा : बुलाने से पहले ही पहुंच गए कारगिल

रेजीमेंट: 17 जाट रेजीमेंट

शहादत: 6 अक्तूबर, 1999

लामार्टीनियर कॉलेज के छात्र रहे मेजर रीतेश शर्मा 9 दिसम्बर, 1995 को सेना में भर्ती हुए। ड्यूटी के दौरान वह मई, 1999 में 15 दिन की छुट्टी लेकर लखनऊ आए थे। इसी दौरान कारगिल युद्ध की सूचना मिली। इससे पहले कि रेजीमेंट उन्हें बुलाती, वह बगैर बुलाए ही ड्यूटी पर पहुंच गए। चूंकि, जाट रेजीमेंट पहले ही कारगिल की ओर कूच कर चुकी थी, इसलिए मेजर रीतेश ने यूनिट के साथ दुश्मनों से मोर्चा लेते हुए चोटी पर तिरंगा फहरा दिया था। कारगिल के बाद 25 सितम्बर, 1999 को कुपवाड़ा में आतंकी ऑपरेशन के दौरान मेजर शर्मा खाई में गिर गए और इलाज के दौरान उनका निधन हो गया था।

कैप्टन आदित्य मिश्र : बिछाते रहे सिग्नलिंग के तार

रेजीमेंट : सिग्नल कोर

शहादत : जून, 1999

8 जून, 1996 को कैप्टन आदित्य मिश्र सेना के सिग्नल कोर में सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में भर्ती हुए। सितम्बर, 1999 में लद्दाख स्काउट में तैनाती मिली। कारगिल युद्ध छिड़ने पर वह बटालिक पहुंचे, जहां 17 हजार फुट ऊंची चोटी पर भारतीय पोस्ट को छुड़ाने के लिए उन्होंने दुश्मनों को निपटाकर चोटी फतह कर ली। पोस्ट पर संचार के लिए तार बिछाने बहुत जरूरी थे, तभी दुश्मनों की गोलीबारी में वह घायल होकर वीरगति को प्राप्त हुए। उनके पिता जीएस मिश्र सीनियर आर्मी ऑफिसर रहे हैं।

विवेक गुप्ता ने दिखाया अदम्य साहस

राष्ट्रीय राइफल रेजीमेंट मेजर विवेक गुप्ता ने भी कारगिल के युद्ध में अपनी वीरता का परिचय दिया था और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुए थे। उन्होंने 11 जून, 1999 को तोलोलिंग चोटी पर हमलों के दौरान दुश्मनों के कई ठिकानों पर कब्जा कर लिया था। उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से नवाजा गया था।



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