भोपा। Kartik Purnima का पर्व भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है, जो हर वर्ष हज़ारों श्रद्धालुओं को अपने आस्था की ओर आकर्षित करता है। इस बार भी पौराणिक तीर्थ स्थल शुकतीर्थ में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा स्नान के लिए हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। यह दृश्य वाकई में आस्था और विश्वास की शक्ति को दर्शाता है, जहाँ श्रद्धालु पवित्र गंगा में डुबकी लगाकर अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं और अपने पितरों को गंगाजल अर्पित करते हैं।
कार्तिक माह की पूर्णिमा का महत्व विशेष रूप से गंगा स्नान और पितृ पूजा के लिए अधिक माना जाता है। शुकतीर्थ, जो एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है, पर श्रद्धालु आते हैं और गंगा के पानी में स्नान करके पापों का नाश करते हैं। इस दिन का धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है जब श्रद्धालु मंदिरों में पूजा करते हैं, दान करते हैं और अन्य धार्मिक कृत्य संपन्न करते हैं।
शुक्रताल क्षेत्र में आयोजित इस मेले में, श्रद्धालुओं ने शुकदेव मंदिर, महाभारत कालीन विशाल वट वृक्ष की परिक्रमा की और अन्य धार्मिक स्थलों जैसे हनुमद्धाम, गणेश धाम, दुर्गा धाम और प्राचीन गौरी-शंकर मंदिर में दर्शन किए। इन स्थानों की धार्मिक और ऐतिहासिक महिमा श्रद्धालुओं के मन में एक अद्भुत शांति और आस्था का संचार करती है। इस दौरान, मंदिरों के महंत, साधु-सन्यासी श्रद्धालुओं से आशीर्वाद प्राप्त कराते हैं, जिससे समग्र वातावरण में एक आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।
जिला प्रशासन और पुलिस की तत्परता
कार्तिक मेला के आयोजन में जिला पंचायत और प्रशासन का अहम योगदान रहा। मेला क्षेत्र में व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन ने पहले से ही विभिन्न व्यवस्थाएँ सुनिश्चित की थीं। जिला पंचायत अध्यक्ष डा. वीरपाल निर्वाल, जिलाधिकारी उमेश मिश्रा, एसएसपी अभिषेक सिंह, एडीएम प्रशासन नरेन्द्र बहादुर सिंह, एसपी देहात आदित्य बंसल, एसपी क्राइम प्रशांत कुमार प्रसाद सहित कई प्रशासनिक अधिकारियों ने मेला स्थल का दौरा किया और वहां की व्यवस्थाओं का निरीक्षण किया।
मेला क्षेत्र में श्रद्धालुओं के ठहरने, उनके भोजन, गंगा घाट पर सुविधाओं, और यातायात की व्यवस्था को लेकर कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए थे। बैरीकेटिंग, वाहन पार्किंग व्यवस्था, गंगा घाट पर बल्लियाँ लगवाने, पथप्रकाश व्यवस्था, साफ-सफाई, पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती, पीने का पानी और अन्य आवश्यक व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से सुनिश्चित किया गया।
विभिन्न सुरक्षा उपायों और व्यवस्थाओं को ध्यान में रखते हुए
मेला क्षेत्र में श्रद्धालुओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रशासन ने हर पहलू पर ध्यान दिया। कई स्थानों पर बैरीकेटिंग की गई, ताकि श्रद्धालु आराम से अपनी पूजा-अर्चना कर सकें। गंगा स्नान के दौरान किसी प्रकार की असुविधा न हो, इसके लिए घाटों पर विशेष व्यवस्था की गई। मेला क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में पानी, सुरक्षा बल और सफाई कर्मचारी तैनात किए गए थे, जिससे श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो। इसके अलावा, श्रद्धालुओं को पार्किंग की सुविधा भी दी गई, जिससे वे बिना किसी असुविधा के मेला स्थल पर पहुंच सके।
श्रद्धालुओं का धार्मिक उत्साह
मेला क्षेत्र में चारों ओर “जय माँ गंगे” के जयकारे गूंज रहे थे। श्रद्धालुओं का उत्साह देखना वाकई अद्भुत था। सैकड़ों लोग गंगा की पवित्र धारा में स्नान करने के लिए हर दिन की दिनचर्या से निकलकर यहां आ पहुंचे थे। हर कोई इस दिन को विशेष मानकर गंगा स्नान करने का संकल्प लेता है, क्योंकि इसे पापों से मुक्ति का दिन माना जाता है। यहां आने वाले श्रद्धालु अपने साथ परिवार और मित्रों को लेकर आते हैं और गंगा के इस पवित्र जल में डुबकी लगाकर शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा और इसके सामाजिक प्रभाव
Kartik Purnima का पर्व केवल धार्मिक महत्व ही नहीं रखता, बल्कि यह समाज में एकता और शांति का प्रतीक भी है। इस दिन को लेकर समाज में एक सकारात्मक माहौल बनता है, जहां लोग अपनी व्यक्तिगत भावनाओं को छोड़कर एकजुट होकर इस धार्मिक पर्व को मनाते हैं। शुकतीर्थ में आयोजित कार्तिक मेले का धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण बेहद अहम है, क्योंकि यह न केवल आस्था का केंद्र बनता है, बल्कि क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में भी योगदान करता है।
श्रद्धालुओं का यह हुजूम अपने साथ शांति, आस्था और एकता का संदेश लेकर जाता है। इस मेले में हर धर्म, जाति, और समुदाय के लोग भाग लेते हैं, जो धर्म के ऊपर मानवता की भावना को स्थापित करता है।
Kartik Purnima का पर्व हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का अहम हिस्सा है। शुकतीर्थ जैसे पवित्र स्थलों पर श्रद्धालुओं की भीड़ इस बात का प्रमाण है कि आज भी लोग अपनी आस्था और विश्वास को प्राथमिकता देते हुए इस दिन को महत्वपूर्ण मानते हैं। प्रशासन द्वारा की गई तैयारियों के कारण श्रद्धालुओं को यहां किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। यह मेला न केवल धार्मिक भावनाओं को जागृत करता है, बल्कि समाज में एकता और भाईचारे का भी संदेश देता है।
इस तरह के आयोजनों से यह भी सिद्ध होता है कि हमारे समाज में धार्मिक भावना अब भी जीवित है और हर व्यक्ति अपने पितरों के प्रति श्रद्धा और आस्था का परिचय देने के लिए इस प्रकार के आयोजनों में भाग लेता है। ऐसे धार्मिक आयोजनों से समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और लोग अपने जीवन को एक नई दिशा में आगे बढ़ाने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं।