Khatauli मुजफ्फरनगर: पूरे देश में जैन धर्मावलंबियों ने छठवें तीर्थंकर भगवान पदम प्रभु का निर्वाण महोत्सव अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया। देशभर के जैन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना, अभिषेक, विधान और लाडू चढ़ाने की परंपरा निभाई गई।

खतौली के प्रमुख जैन मंदिरों में भव्य आयोजन
खतौली के विभिन्न जैन मंदिरों में भगवान पदम प्रभु के निर्वाण महोत्सव को लेकर विशेष आयोजन किए गए। बाबा भागीरथी जैन मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की गई, जिसमें मुख्य रूप से श्री अरुण जैन के निर्देशन में श्रद्धालुओं ने भगवान पदम प्रभु का गुणगान किया।

इसके अलावा, पीसनोपाडा मंदिर में भी भव्य विधान आयोजित किया गया। पंडित कल्पेंद्र जी के मार्गदर्शन में श्रद्धालुओं ने तीर्थंकर के निर्वाण की महिमा को आत्मसात किया और भक्ति भाव से पूजा की।

भगवान पदम प्रभु: न्यायप्रिय राजा से तीर्थंकर बनने तक का सफर

भगवान पदम प्रभु का जन्म कौशांबी नगरी में हुआ था। वे बचपन से ही अत्यंत तेजस्वी, करुणा से भरपूर और न्यायप्रिय राजा के रूप में प्रसिद्ध हुए। कौशांबी की जनता उनके कुशल नेतृत्व में सुख और समृद्धि का अनुभव कर रही थी।

लेकिन सांसारिक मोह-माया से विमुख होकर भगवान पदम प्रभु ने वैराग्य धारण कर लिया और कठोर तपस्या में लीन हो गए। उन्होंने गहन साधना की और अंततः झारखंड स्थित श्री सम्मेद शिखरजी पर निर्वाण प्राप्त किया।

आज भी कौशांबी नगरी के खंडहर भगवान पदम प्रभु की न्यायप्रियता और ऐतिहासिक यशोगाथा की गवाही देते हैं। श्रद्धालु इन तीर्थों की वंदना कर आध्यात्मिक आनंद का अनुभव करते हैं।

मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़, भव्य पूजा-विधान और भक्ति का माहौल

भगवान पदम प्रभु के निर्वाण महोत्सव के अवसर पर जैन मंदिरों में विशेष भक्ति अनुष्ठान हुए। श्रद्धालुओं ने मंदिरों में पहुंचकर तीर्थंकर की अभिषेक पूजा, आरती, लाडू चढ़ाने और गुणानुवाद के माध्यम से अपनी श्रद्धा व्यक्त की।

मुजफ्फरनगर और आसपास के क्षेत्रों में स्थित जैन मंदिरों में दिनभर धार्मिक आयोजन चलते रहे। मंदिरों को आकर्षक फूलों, दीपों और रंग-बिरंगे सजावट से सजाया गया था। भव्य आरती के समय श्रद्धालुओं ने “जय जय जिनेंद्र” के जयघोष के साथ वातावरण को भक्तिमय बना दिया।

सम्मेद शिखरजी: जैन धर्म का पवित्र निर्वाण तीर्थ

झारखंड स्थित श्री सम्मेद शिखरजी को जैन धर्म के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है। यहाँ 24 में से 20 तीर्थंकरों ने निर्वाण प्राप्त किया है। भगवान पदम प्रभु भी उन्हीं महान तपस्वियों में से एक थे, जिन्होंने घोर तपस्या कर आत्ममोक्ष प्राप्त किया।

श्री सम्मेद शिखरजी की वंदना करने का महत्व

  • श्रद्धालु यहां जाकर मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ने की प्रेरणा लेते हैं।
  • कहा जाता है कि इस तीर्थ की यात्रा करने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।
  • देशभर से जैन अनुयायी प्रतिवर्ष यहाँ निर्वाण भूमि की वंदना करने आते हैं।

निर्वाण महोत्सव के दौरान हुई प्रमुख धार्मिक गतिविधियाँ

भगवान पदम प्रभु के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में देशभर के जैन मंदिरों में निम्नलिखित धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए गए:

अभिषेक एवं शांतिधारा: तीर्थंकर की प्रतिमा पर दुग्धाभिषेक और जलाभिषेक किया गया।
निर्वाण लाडू चढ़ाया गया: जैन परंपरा के अनुसार मंदिरों में विशेष लाडू समर्पित किए गए।
विशेष विधान एवं प्रवचन: मंदिरों में धर्मगुरुओं ने भगवान पदम प्रभु के जीवन और शिक्षाओं पर प्रवचन दिए।
तीर्थंकर गुणानुवाद: श्रद्धालुओं ने भगवान के तप, त्याग और उपदेशों का गान किया।
महाआरती एवं दीपदान: भव्य आरती के बाद दीपदान किया गया, जिससे पूरा मंदिर परिसर प्रकाशमय हो गया।

जैन धर्म में निर्वाण महोत्सव का महत्व

निर्वाण महोत्सव जैन धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक माना जाता है। यह आत्मशुद्धि, तप और धर्म की राह पर चलने की प्रेरणा देता है। जैन धर्मावलंबी इस दिन भगवान के उपदेशों का अनुसरण करने का संकल्प लेते हैं।

भगवान पदम प्रभु की अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह और तपस्या की शिक्षाएँ आज भी अनुकरणीय हैं। जैन धर्म के अनुसार, जो व्यक्ति इन मूल्यों को अपनाता है, वह भी आत्ममोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होता है।

देशभर में जैन समाज की भागीदारी

मुजफ्फरनगर ही नहीं, बल्कि संपूर्ण भारत में जैन समुदाय ने इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया। जयपुर, मुंबई, दिल्ली, इंदौर, अहमदाबाद, कोलकाता और बेंगलुरु जैसे शहरों में जैन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की गई।

देश के प्रसिद्ध जैन तीर्थ स्थलों जैसे श्रवणबेलगोला, गिरनार, पालीताणा, सम्मेद शिखरजी और राजगृह में भी भव्य अनुष्ठान हुए।

श्रद्धालुओं में उत्साह, मंदिरों में उमड़ी भीड़

निर्वाण महोत्सव के अवसर पर जैन अनुयायियों ने तीर्थयात्राएँ, ध्यान साधना, दान-पुण्य और भोजन वितरण जैसी गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लिया।

कई मंदिरों में विशेष संयम सप्ताह मनाया गया, जिसमें श्रद्धालुओं ने उपवास, मौन व्रत और स्वाध्याय का पालन किया।

एक संदेश

भगवान पदम प्रभु का निर्वाण महोत्सव केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरूकता का संदेश है। उनकी शिक्षाएँ हमें आत्मशुद्धि, करुणा और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।

समस्त जैन अनुयायियों ने इस पर्व को धूमधाम से मनाकर भगवान पदम प्रभु को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके बताए धर्ममार्ग को अपनाने का संकल्प लिया।



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