Know why sevayats repeatedly pull curtain in temple of Shri Banke Bihari in Vrindavan

बांके बिहारी मंदिर
– फोटो : अमर उजाला

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तीर्थनगरी मथुरा के वृंदावन में दुनिया भर से भक्त श्री बांके बिहारी के दर्शन को आते हैं। दर्शन के समय उनसे आंख मिल पाती कि सेवायत पर्दा खींच देते हैं। भक्त मन मसोस कर रह जाते हैं। ऐसा हो भी क्यों न। कस के नैन लड़े नहीं कि बांके बिहारी कब, किसके साथ चल दें। ढूंढते-ढूंढते कितना वक्त लग जाए। क्या पता…इस बार मिलें भी या न। और वृंदावन बेहाल हो जाए।

बांके बिहारी कई बार भक्तों के प्रेम में वशीभूत होकर उनके साथ जा चुके हैं। हर बार बड़ी मुश्किल से मिले। यहां के संत हरिदास बताते हैं कि कई साल पहले का वाकया है। एक निःसंतान विधवा बांके बिहारी के दर्शन करने मंदिर आई थी। उसके मन में बांके बिहारी की तरह बेटे की कामना हुई। वह बांके बिहारी को एकटक देखती रही। बांके बिहारी मोहित हो गए। बेटा बनकर उसके साथ चले गए।

बांके बिहारी को मंदिर से नदारद देख सेवायत परेशान और हैरान हो गए। उन्हें ढूंढना शुरू किया। बांके बिहारी मुश्किल से मिले। तमाम मन्नतें की गईं, तब लौटे। वह बताते हैं कि एक और वाकया है। राजस्थान की एक राजकुमारी दर्शन करने आईं। बांके बिहारी राजकुमारी की भक्ति पर मुग्ध हो गए। उसके साथ चले गए। फिर ढूंढा गया। इस बार भी मिल गए। लौटे तमाम जी हुजूरी के बाद ही। 

यहीं के सुरेशानंद बताते हैं कि एक बार अलीगढ़ से भक्त आया। बांके बिहारी से उसके नैन लड़ गए। वह उसके साथ चले गए। सुबह सेवायत मंदिर पहुंचे। पट खोले। बांके बिहारी लापता। सब लग गए खोजने। अलीगढ़ अदालत में भक्त की गवाही देते मिले। फिर मनुहार की गई। लौट आए। अब फिर किसी से नैन न लड़ जाएं, फिर न चले जाएं। इससे सेवायत अब उनकी किसी से आंख नहीं लड़ने देते। थोड़ी-थोड़ी देर में पर्दा खींचते रहते हैं। 



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