
पर्वत सिंह बादल ✍️
(धर्म) कुंभ का अर्थ होता है कलश (घड़ा)! और इस कुंभ नामक महापर्व की कथा भी कलश से ही जुड़ी हुई है। लेकिन कथा का पात्र साधारण कलश न होकर अमृत कलश है और इसी अमृत कलश का आधार है यह कुंभ महापर्व। वेदों- शास्त्रों के अनुसार:-
चतुर: कुम्भांश्चतुर्धा ददामि क्षीरेण पूर्णान् उद्केन्दध्ना।
एतास्त्वाधारा उपयान्तु सर्वा:।।
पूर्ण: कुम्भोऽधिकाल आहितस्तं वै पश्यामो बहुधा न सन्त:।
स इमां विश्वा भुवनानि प्रत्यकालं तमाहु: परमे व्योमन। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि ”रेवा तीरे तप: कुर्यात मरणं जाह्नवी तटे” जिसका अर्थ है कि तप करने की इच्छा हो तो नर्मदा के तट पर करना चाहिए और शरीर को त्यागना हो तो गंगा तट पर जाना चाहिए, क्योंकि गंगा के तट पर प्रयागराज, हरिद्वार, काशी आदि तीर्थ बसे हुए हैं। इन सबमें प्रयागराज का बहुत ही ज्यादा महत्व है। क्योंकि:- ‘प्र‘ का अर्थ होता है बहुत बड़ा तथा ‘याग‘ का अर्थ होता है यज्ञ। ‘’प्रकृष्टो यज्ञो अभूद्यत्र तदेव प्रयाग’’ इस प्रकार इसका नाम ‘’प्रयागराज’’ पड़ा।
पूरी दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक मेला प्रयागराज कुंभ मकर संक्राति के साथ शुरू हो गया है। सन् 2019 में यह कुंभ का मेला पूरे 49 दिन चलने वाला है। कुंभ के मेले में पूरे भारत सहीत दुनिया भर से लाख लोग आते है। तो आईए जानते है कुंभ मेले के बारे में अनसुने रोचक तथ्य।कुंभ मेला भारतीय संस्कृति और धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। इसे चार स्थानों पर आयोजित किया जाता है: प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), हरिद्वार (उत्तराखंड), उज्जैन (मध्य प्रदेश) और नासिक (महाराष्ट्र)। इस मेले की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:
पवित्र स्नान: कुंभ मेले का मुख्य आकर्षण गंगा, यमुना, क्षिप्रा और गोदावरी नदियों में पवित्र स्नान करना है। मान्यता है कि मकर संक्रांति, माघ पूर्णिमा, और अमावस्या जैसे विशेष तिथियों पर स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
धार्मिक महत्व: इस मेले का आयोजन विशेष ज्योतिषीय संयोगों के आधार पर होता है, जब ग्रहों की स्थिति विशेष धार्मिक ऊर्जा का निर्माण करती है।
अखाड़े और संतों का समागम: कुंभ मेले में देशभर के विभिन्न अखाड़ों से साधु-संत आते हैं, जैसे नागा साधु, अवधूत, और संत-महात्मा। उनकी शोभायात्रा और दर्शन का विशेष महत्व होता है।
प्रवचन और सत्संग: मेले के दौरान अनेक साधु-संत और महात्मा प्रवचन, धार्मिक सभाएं और सत्संग का आयोजन करते हैं, जिसमें धर्म, जीवन के उद्देश्य, और मोक्ष प्राप्ति पर विचार किए जाते हैं।
वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण: कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का अद्भुत संगम है, जहां आध्यात्मिकता, धार्मिकता, योग और आयुर्वेद का प्रचार-प्रसार होता है। मेले में आने वाले श्रद्धालु भारतीय ज्ञान, योग, और ध्यान का अनुभव करते हैं।
भक्तों की विशाल संख्या: यह विश्व का सबसे बड़ा समागम माना जाता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं।
अद्वितीय सांस्कृतिक अनुभव: कुंभ मेले में विभिन्न राज्यों और संस्कृतियों के लोग इकट्ठा होते हैं, जिससे यह स्थान भारतीय विविधता का प्रतीक बन जाता है। वर्तमान में कुंभ मेले से जुड़ी जानकारी ℹ️
कुंभ मेले की चमक को आसमान से भी देखा जा सकता है।
भारत सरकार के अनुसार कुंभ मेले का आयोजन लगभग 45 किलोमीटर में फैला है।
पहले के कुंभ मेले केवल 20 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ करते थे।
कुंभ मेले में 4 टेंट सिटी बसाई गई है। जिसकी लागत लगभग 50 करोड़ रूपए आई है।
कुंभ मेले में 4 टेंट सिटी का नाम कल्प वृक्ष, कुंभ कैनवास, वैदिक टेंट सिटी और चौथा है इन्द्रप्रस्थम सिटी है।
कुंभ मेले के समय प्रयागराज में एक पूरी दुनिया का सबसे बड़ा अस्थाई शहर बसाया जाता है।
सरकारी अनुमान के मुताबिक कुंभ मेले के आयोजन में लगभग 4300 करोड़ रूपए खर्च हो रहे है।
पहली बार भारत सरकार 10 करोड़ लोगों को मोबाईल पर संदेश भेजकर कुंभ मेले में आने का न्योता दे रही है।कुंभ का मेला पूरे भारत में चार स्थानों पर होता है। पहला- प्रयागराज, दुसरा- हरिद्वार, तीसरा- उज्जैन और चौथा- नासिक है। इनमें से हर स्थान पर 12 वें साल कुंभ मेला लगता है।
2019 के कुंभ मेले के आयोजन में राज्य सरकार की 20 और केंन्द सरकार की 6 संस्थाएं लगी है।
2019 के कुंभ मेले में 690 किलोमीटर पीने के पानी और 800 किलोमीटर बिजली की सप्लाई की व्यवस्था कि गई है।
पहली बार कुंभ मेले में 25 हजार Street Light लगाई गई है।
2019 के कुंभ मेले में 7 हजार स्वच्छता कर्मचारी और 20 हजार पुलिस कर्मचारी को लगाया गया है।
चार पुलिस लाईन के साथ 40 पुलिस थाना, 3 महिला थाना, 62 पुलिस पोस्ट बनाई गई है।
इस बार 2019 के कुंभ मेले में 2 यूनिट जल पुलिस को भी लगाया गया है।
पहली बार कुंभ में 2 Integrated Control Command and Center बनाए गए है। यह मेला क्षेत्र में आने वाली भीड़ और यातायात को नियंत्रित करने और सुरक्षित बनाने का काम करेगा।
इन दोना Integrated Control Command and Center पर 232 करोड़ का खर्च आया है।पहली बार कुंभ मेले में Artifical Intelligence काा इस्तेमाल हो रहा है।
Artifical Intelligence का इस्तमाल मेले में भीड़ का प्रबंधन करेगा। साथ ही श्रद्धालुओं के लिए Virtual Reality सेवा उपलब्ध करवाने के लिए 10 स्टाल बानए गए हैं।
ज्योतिषियों के अनुसार कुंभ का असाधारण महत्व बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश तथा सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ जुड़ा है।
त्र्यम्बक (नासिक) में बृहस्पति तो सिंहस्थ ही रहते हैं, पर सूर्य और चंद्रमा भी सिंहस्थ हो जाते हैं। यही कारण है कि उज्जैन और त्र्यम्बकेश्वर (नासिक) के कुंभ पर्वों को ‘कुंभ’ न कहकर ‘सिंहस्थ’ नाम से जाना जाता है।
प्रयागराज में ही “अक्षयवट” है। पुराणों के अनुसार पृथ्वी के प्रलय के बाद भगवान इसी “अक्षयवट” पर खेलते हुए पूरी दुनिया का निर्माण करते है।
प्रयागराज की एक खास बात है ‘’अक्षयवट’’, औरंगजेब ने अक्षयवट को नष्ट करने के बहुत प्रयास किया, लेकिन अक्षयवट को नष्ट नहीं कर पाया था।
अक्षयवट को औरंगजेब ने इसे खुदवाया, जलवाया, इसकी जड़ों में तेजाब तक डलवाया। लेकिन अमर वर प्राप्त यह अक्षयवट आज भी विराजमान है।अक्षयवट को औरंगजेब के द्वारा जलाने के चिन्ह आज भी देखे जा सकते हैं। चीनी यात्री ह्वेन सांग ने इसकी विचित्रता से प्रभावित होकर अपने संस्मरण में इसका उल्लेख किया है।
कुंभ मेले में 600 रसोईघर, 48 दुध घर, 200 ATM, 4 हजार Hot Spots लगाए गए हैं।
2019 के कुंभ मेले में 1 लाख 20 हजार Bio Latrine का निर्माण किया गया है।
कुंभ मेले को देखते हुए रेल मंत्रालय ने पूरे भारत से लगभग 800 Special Trains चलाई है।
कुंभ मेले में 300 किलोमीटर रोड का निर्माण किया गया है। साथ ही 40 हजार LED लगाई गई है।
कुंभ मेले के दौरान वाहनों के लिए 5 लाख Parking Area बनाया गया है।
कतिपय शास्त्रों में त्रिवेणी संगम को पृथ्वी का केन्द्र माना गया है और यह त्रिवेणी संगम प्रयागराज में ही है।
पुराणों के अनुसार प्रयागराज को तीर्थों का तीर्थ कहा गया है, साथ ही प्रयागराज में किए गए धार्मिक कर्म का प्रतिफल अन्य तीर्थ स्थलों से अधिक माना जाता है।
प्रयागराज में कुंभ के समय स्नान करने से उस व्यक्ति की 10 पीढ़ियों को पुण्य फल मिलता है।इलाहबाद का प्रचीन नाम प्रयागराज था, लेकिन मुस्लिम शासक ने इसका नाम इल्लाहावास कर दिया था।
अकबर के आने के बाद उसने इस जगह के हिंदू महत्व को समझा, तो उसने इसका नाम 1583 में बदलकर ‘अल्लाह का शहर‘ रख दिया। अकबरनामा में इसका जिक्र है।
भारत पर अंग्रेजों का राज हो गया और रोमन लिपी में इसे ‘अलाहाबाद‘ लिखा जाने लगा, जो बाद में बिगड़कर इलाहाबाद हो गया।
कुंभ मेले का एक प्रमुख आकर्षण साधु-संतों के 13 अखाड़े होते हैं। लेकिन इस बार इसमें दो अखाड़े और शामिल हो गए है। किन्नर अखाड़ा और महिला नागा साधुओं का अखाड़ा।
अमृता कुंभेर संधाने, दिलीप रॉय द्वारा निर्देशित पहली बंगाली फीचर फिल्म थी, जिसने कुंभ मेला का दस्तावेजीकरण किया था। इसे 1982 में जारी किया गया।
.कुंभ मेले में अनुमानित व्यापारिक आय 12,000 करोड़ रुपए (120 अरब रुपए) है। कुंभ मेला के दौरान रोजगार के अवसर लगभग 6,50,00 हैं।
यूनेस्को (UNESCO) ने कुंभ मेला को भारत की सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दी है।