लखनऊ। कालिदास-भारत के शेक्सपियर, सूरदास-मिल्टन ऑफ इंडिया, कश्मीर- स्विट्जरलैंड ऑफ इंडिया, इलाहाबाद- ऑक्सफोर्ड ऑफ ईस्ट… ये कुछ ऐसी उपमाएं हैं जो पाठ्यपुस्तकों में बच्चाें को पढ़ाई जाती रही हैं। भारतीय लेखकों और यहां के शहरों को विदेशी उपमाओं से विभूषित करने के इस कृत्य पर राजधानी के हास्य-व्यंग्य कवि पंकज प्रसून ने आपत्ति जताई है। सीडीआरआई में तकनीकी अधिकारी के तौर पर काम कर रहे पंकज प्रसून का कहना है कि देश की आजादी के 77 साल बाद भी कई पाठ्यपुस्तकों व सामान्य ज्ञान साहित्य में ऐसी विदेशी उपमाएं पढ़ाया जाना भारतीय अस्मिता का अपमान है।

इस संबंध में पंकज प्रसून ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने लिखा है कि ये उपमाएं औपनिवेशिक मानसिकता की उपज थीं जिनका उद्देश्य भारतीय साहित्य, संस्कृति और नगरों की मौलिकता को कमतर सिद्ध करना था। उन्होंने लिखा है कि आज भी जब हमारे नौनिहाल इन तुलनाओं को पाठ्यपुस्तकों में पढ़ते हैं तो उनके मन में यह धारणा बैठ जाती है कि भारत की महानता तभी मान्य है जब उसकी तुलना यूरोप या अन्य विदेशी उपमाओं से की जाए। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति का मूल उद्देश्य भारतीयता को केंद्र में लाना है। पंकज प्रसून ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में पाठ्यपुस्तकों में दर्ज इन उपमाओं की प्रतियां भी संलग्न की हैं।

पत्र के माध्यम से उठाईं ये मांगें –

– शिक्षा मंत्रालय और एनसीईआरटी को निर्देशित किया जाए कि सभी विदेशी उपमाओं को पाठ्यपुस्तकों से हटाया जाए।

– भारतीय महापुरुषों, साहित्यकारों व नगरों का परिचय उनकी मौलिक विशेषताओं व गौरवशाली परंपरा के आधार पर दिया जाए।

– प्रतियोगी परीक्षाओं व सामान्य ज्ञान की पुस्तकों में भी यही सुधार सुनिश्चित हो।



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