
प्रतीकात्मक तस्वीर
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विस्तार
उत्तर प्रदेश में बनने वाली बहुमंजिला इमारतों में लिफ्ट और एस्केलेटर लगाने पर बिल्डर को लिफ्ट खराबी की स्थिति में अंदर फंसे लोगों को बचाने के लिए स्वचालित बचाव यंत्र लगवाना होगा। वहीं सार्वजनिक स्थलों पर लगे लिफ्ट में सीसीटीवी कैमरे भी लगाने होंगे। प्रदेश में लिफ्ट और एस्केलेटर को सुरक्षित और व्यवस्थित रूप से लगाने के लिए विधानसभा में शुक्रवार को उत्तर प्रदेश लिफ्ट और एस्केलेटर विधेयक 2024 को पुनर्स्थापित किया गया।
विधेयक में दिए गए प्रावधान के तहत लिफ्ट बनाने वाली कंपनियों, मरम्मत करने वाली एजेंसियों का भी अब पंजीयन होगा। पिछले कुछ दिनों में उत्तर प्रदेश में बहुमंजिला इमारतों में लिफ्ट से कई दुर्घटनाएं हुई हैं। ऐसी में यहां भी एक्ट तैयार किया गया है। अधिनियम न होने से सुरक्षा की अनदेखी होने पर कार्रवाई में मुश्किल आती थी। अब अधिनियम लागू होने के बाद लिफ्ट और एस्केलेटर के निर्माण, गुणवत्ता, सुरक्षा सुविधाओं, स्थापना, संचालन और रखरखाव के लिए मानक तय कर दिए गए हैं।
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प्रमुख प्रावधान
– लिफ्ट और एस्केलेटर बनाने वाली कंपनियों, इसे स्थापित करने वाली एजेंसियों और रखरखाव करने वाली एजेंसियों को विद्युत सुरक्षा निदेशालय में पंजीयन कराना होगा। संबंधित एजेंसी में कार्यरत कर्मियों की शैक्षिक योग्यता की भी जानकारी देनी होगी। कंपनी को हर पांच साल में नवीनीकरण कराना होगा।
– हर भवन में लगने वाली लिफ्ट और एस्केलेटर के संचालन की अवधि 15 साल होगी। इसके बाद नए सिरे से जांच कराई जाएगी। फिर प्रमाण पत्र देना होगा कि संबंधित लिफ्ट के पार्ट व अन्य उपकरणों की नए सिरे से मरम्मत कर दी गई है। यह पूरी तरह से सुरक्षित है।
– भवन निर्माण करने वाली संस्था को लिफ्ट के आकार के आधार पर जगह छोड़ना होगा।
– हर भवन में लगी लिफ्ट और एक्सेलेटर की हर साल जांच कराई जाएगी। इसके लिए 1500 रुपया शुल्क जमा करना होगा।
– मरम्मत नहीं कराने, मानक की अनदेखी करने पर संबंधित भवन स्वामी अथवा सोसायटी या संस्था पर जुर्माना लगाया जाएगा।
– यदि कोई संस्था लिफ्ट व एक्सेलटर की निर्धारित समय पर मरम्मत नहीं कराती है तो उसे प्रयोग करने वाला व्यक्ति शिकायत कर सकता है।
