Lok Sabha Elections: Crisis on the existence of Congress in UP

सोनिया गांधी और राहुल गांधी file

विस्तार


राज्यसभा में यूपी से कांग्रेस का एक भी सदस्य नहीं है। यूपी के वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी राज्यसभा में राजस्थान की नुमाइंदगी कर रहे हैं। यूपी विधान परिषद में भी कांग्रेस का एक भी सदस्य नहीं रह गया है। इसके बावजूद ऐसा नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस पूरी तरह से शक्तिविहीन हो गई है। वजह, यूपी की विधानसभा में अब भी उसके दो विधायक हैं। पर, इस कड़वी हकीकत से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कभी लोकसभा की 85 (उत्तराखंड भी यूपी में था) सीटों में से 83 सीट जीतकर इतिहास रचने वाली कांग्रेस के पास आज यूपी में लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए एक भी सिटिंग सांसद नहीं है। 

पार्टी लगातार अपना जनाधार खोती जा रही है। एक-एक कर हर तरह के प्रयोग और समझौते कर चुकी पार्टी 80 सीटों वाले राज्य में आजादी के बाद सबसे कम सिर्फ 17 सीटों पर चुनाव लड़ने की हैसियत में आ गई है। उसे समाजवादी पार्टी के जूनियर साथी की हैसियत में रहकर यहां चुनाव लड़ना पड़ रहा है।

यही नहीं, यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने इस बार रायबरेली के मैदान से खुद को बाहर कर लिया है। वहीं कांग्रेस का चेहरा और सपा के साथ ‘दो लड़कों का साथ पसंद है’ जैसा प्रयोग दोबारा आजमा रहे पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, केंद्रीय मंत्री स्मृति जूबिन इरानी से हारने के बाद अमेठी के मैदान में लौटते नजर नहीं आ रहे हैं। पार्टी की आखिरी उम्मीद प्रियंका गांधी वाड्रा ने राष्ट्रीय महासचिव और यूपी प्रभारी के तौर पर ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ जैसा भावनात्मक प्रयोग आजमा लिया।

पर, प्रदेश के कांग्रेसियोंं की लाख मनुहार के बाद भी वह यूपी से चुनाव लड़ेंगी, अभी तक साफ नहीं है। बेहद कठिन दौर से गुजर रही कांग्रेस इस चुनाव में यूपी से अपनी मौजूदा संख्या एक को आगे बढ़ा पाएगी तो कितना या 1977 और 1998 वाला शून्य का इतिहास दोहराएगी, यही सबसे बड़ा सवाल है। 1977 और 1998 में प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का खाता तक नहीं खुल सका था।

कैसी-कैसी चुनौती

  • 2019 : सिर्फ सोनिया जीतीं, राहुल तक हारे,   वोट शेयर 6.36%

पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 80 में से 67 सीटों पर रायबरेली में सोनिया गांधी की सीट जीत पाई थी। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी परंपरागत अमेठी सीट केंद्रीय मंत्री स्मृति जूबिन इरानी से हार गए थे।

  • 2022 : सिर्फ दो विधायक जीते, वोट शेयर 2.33% 

प्रदेश की अधिकतम सीटें जीतने का रिकॉर्ड बनाने वाली कांग्रेस की सियासी हैसियत का अंदाजा सिर्फ इससे लगा सकते हैं कि प्रदेश में सबसे नजदीक 2022 में हुए विधानसभा चुनावों में उसके सिर्फ दो विधायक ही जीत पाए। पार्टी का जनाधार मात्र 2.33 प्रतिशत वोट तक सिमट गया।

  • 2024 : जिन 17 सीटों पर मैदान में, कई पर जमानत हो गई थी जब्त

समाजवादी पार्टी से गठबंधन में जो 17 सीटें कांग्रेस को मिली हैं, पिछले चुनाव में उनमें से कई सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। इन सीटों में अमरोहा, गाजियाबाद, फतेहपुर सीकरी, झांसी, बाराबंकी, इलाहाबाद, महाराजगंज, देवरिया और वाराणसी शामिल हैं।

लगातार घट रहा जनाधार, हर प्रयोग फेल

  • 2004 में कांग्रेस खुद 73 सीटों पर चुनाव लड़ी। पार्टी ने 9 सीटें जीतीं। बाकी सीटें लोकजन शक्ति पार्टी या कांग्रेस समर्थित निर्दल उम्मीदवारों के लिए छोड़ दी। सहयोगी व समर्थक एक भी सीट नहीं जीत सके। कांग्रेस को 12.18 प्रतिशत वोट मिले।
  • 2009 में कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए 69 सीटों पर चुनाव लड़ा। पार्टी ने 21 सीटें जीतीं। वोट शेयर बढ़कर 18.25 प्रतिशत हो गया।
  • 2014 में आरएलडी और महान दल से गठबंधन कर कांग्रेस चुनाव लड़ी। कांग्रेस अमेठी व रायबरेली की सीट ही जीत सकी। 
  • 2019 में कांग्रेस फिर अकेले मैदान में आई। 67 सीटों पर भाग्य आजमाया। महज सोनिया गांधी रायबरेली सीट जीत पाईं। राहुल गांधी तक अमेठी सीट हार गए। 
  • 2024 में कांग्रेस ने सपा से हाथ मिलाया है। गठबंधन में 17 सीटें मिली हैं। 

  वर्ष     लड़ी    जीती

1952     86     81

1957     86     70

1962     86     62

1967     85     47

1971     78     73

1977     85     00

1980     85    51

1984     85    83

1989     84     15

1991     80     05

1996     85     05

1998     76     00

1999     77     10

2004     93     09

2009     69     21

2014     66     02

2019     67     01 

उधर, सहयोगी छोड़कर जा रहे साथ

कांग्रेस की कामयाबी का पूरा दारोमदार सपा पर निर्भर है। कांग्रेस को सपा का साथ देने वाले यादव व मुस्लिम के अलावा भाजपा विरोध में वोट करने वाले मतदाताओं से बड़ी उम्मीद होगी। मगर, सुभासपा, राष्ट्रीय लोकदल और अपना दल कमेरावादी के अलावा स्वामी प्रसाद मौर्य व दारा सिंह चौहान जैसे नेताओं के सपा का साथ छोड़ने के बाद सपा की ताकत में कमी ही हुई है।

सांगठनिक ढांचा कमजोर, प्रत्याशियों के व्यक्तिगत प्रबंधन पर दारोमदार

कांग्रेस लंबे समय से प्रदेश में मजबूत सांगठनिक ढांचा तैयार नहीं कर पाई है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के पद पर पूर्व मंत्री अजय राय की तैनाती चुनाव नजदीक आने पर हुई। राय को संगठन तैयार करने की जगह सीधे चुनावी तैयारी में जुटना पड़ा। भाजपा 80 में 51 व सपा करीब 44 सीटों पर प्रत्याशी उतार चुकी है। लेकिन, कांग्रेस प्रत्याशियों का एलान भी नहीं कर पा रही है। उसके प्रत्याशियों को जनता के बीच भी कम समय मिलने वाला है। प्रत्याशियों का व्यक्तिगत जनाधार व प्रबंधन ही कांग्रेस के प्रदर्शन में मददगार हो सकता है।

  • शुरुआत में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से लेकर सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी तक के चुनाव लड़ने की अटकलें लगती रहीं। 
  • यूपी के कांग्रेस नेताओं ने इन नेताओं से मिलकर चुनाव लड़ने के लिए आग्रह भी किया। लेकिन, कोई भी प्रमुख चर्चित राष्ट्रीय नेता प्रदेश के चुनावी मैदान में फिलहाल उतरता नजर नहीं आ रहा है।  

जीरो से हीरो भी बनी पार्टी

आजादी के बाद कांग्रेस ने बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं। आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में पार्टी जमीन पर आ गई थी। उसे प्रदेश की सभी 85 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। 1996 में भाजपा की अटल सरकार सदन में जिस तरह गिरी, एनडी तिवारी ने कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाई थी। इन सब कारणों से कांग्रेस के खिलाफ माहौल बना। नतीजतन 1998 में भी यूपी से कांग्रेस का खाता नहीं खुल सका। 1980 में कांग्रेस ने 51 सीटें हासिल कीं। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद चुनाव हुए तो 83 सीटें मिलीं। वहीं 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने प्रदेश की 21 सीटें हासिल की थी। 



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *