Lok Sabha Elections: No matter who the leader is, familyism is liked by everyone.

इस मामले में कोई दल शायद ही अपवाद हो…
– फोटो : अमर उजाला

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सत्ताधारी भाजपा के नेता परिवारवाद पर हमला बोलना शुरू करते हैं, तो विपक्षी नेता उसके ही कई नेताओं के नाम लेकर पलटवार करते हैं। भाजपा की ओर से परिवारवादी पार्टियां कहकर संगठन और सरकार के शीर्ष पद एक ही परिवार को विरासत में मिलने का उदाहरण देकर हमला बोला जाता है।…तो विपक्षी नेता भाजपा के कई नेताओं के परिवार में सांसद, विधायक, प्रमुख या जिला पंचायत अध्यक्ष गिनाकर हमला बोलने लगते हैं। इस चुनाव में भी ऐसे परिवारों की धूम है। एक ही परिवार से एक साथ कई लोगों को टिकट देने से परहेज के बावजूद भाजपा पूरी तरह से परिवारवाद से मुक्त नहीं हो पा रही है। इसी तरह मुख्य विपक्षी पार्टियां परिवारवाद की कीमत चुकाती साफ दिख रही हैं। पर, अपने परिवार का मोह छोड़ नहीं पा रही हैं।

परिवारवाद पर हमले बढ़े तो  बड़े दलों की चुनौतियां बढ़ीं

समाजवादी पार्टी 

2014 में सिर्फ परिवार के लोग जीते, 2019 में परिवार के भी हारे 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा अपने परिवार तक सीमित हो गई। परिवार से मुलायम सिंह यादव (दो सीट पर), अक्षय यादव, धर्मेंद्र यादव और डिंपल यादव ही जीत पाए थे। 2019 में हमला और बढ़ा तो मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव ही जीत पाए। इस बार भी परिवार से चार लोग मैदान में हैं, वहीं अखिलेश यादव यह चुनाव लड़ने से फिलहाल बचते नजर आ रहे हैं।

सपा का परिवारवाद

अखिलेश यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष, डिंपल यादव सांसद व प्रत्याशी, प्रो. राम गोपाल यादव राज्यसभा सांसद, शिवपाल सिंह यादव विधायक व प्रत्याशी, धर्मेंद्र यादव प्रत्याशी, अक्षय यादव प्रत्याशी।

कांग्रेस : परिवार ही मैदान से बाहर! 

पिछले चुनाव तक यूपी की रायबरेली सीट से सोनिया गांधी और अमेठी सीट से राहुल गांधी उम्मीदवार हुआ करते थे। पिछला चुनाव राहुल हार गए थे। सिर्फ सोनिया ही जीती थीं। सोनिया ने इस चुनाव में न उतरने का एलान कर दिया है। इसके बाद से ही कांग्रेस के कई नेता राहुल व प्रियंका से इन सीटों से चुनाव लड़ने का आग्रह करते आ रहे हैं। लेकिन वे यूपी से चुनाव के लिए मन नहीं बना पा रहे हैं। दशकों बाद कांग्रेस के गांधी परिवार की यूपी के मैदान से बाहर होने की नौबत नजर आ रही है।

बसपा : मायावती भी परिवार से दूर नहीं जा पाईं

बसपा सुप्रीमो मायावती वर्षों से यह बात दोहराती नजर आ रही थीं कि उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी परिवार से नहीं होगा। मगर, इसे नजरअंदाज करते हुए उन्होंने भतीजे आकाश आनंद को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। मायावती ने भाई आनंद कुमार को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप रखी है। हालांकि, इस चुनाव में मायावती के परिवार से किसी के मैदान में आने के फिलहाल संकेत नहीं हैं। 

…लेकिन छोटे दलों की पौ बारह, खूब उठा रहे फायदा

सुभासपा : प्रदेश के पंचायतीराज मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने सुभासपा बना रखी है। लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा से गठबंधन हुआ है। लोकसभा की एक मात्र घोसी सीट मिली है। राजभर ने अपने बेटे डाॅ. अरविंद राजभर को प्रत्याशी बना दिया है। दूसरे बेटे अरुण राजभर को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव व मुख्य प्रवक्ता बना रखा है।

अपना दल (एस) : भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल एस की मुखिया केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल हैं। केंद्र के बाद राज्य सरकार में हिस्सेदारी की नौबत आई तो पति आशीष पटेल को कैबिनेट का ओहदा दिलाया।

अपना दल, कमेरावादी : अपना दल के नेता स्वर्गीय सोनेलाल पटेल की पत्नी कृष्णा पटेल ने अपना दल कमेरावादी बना रखा है। कृष्णा को अवसर मिला तो सबसे पहले बड़ी बेटी पल्लवी पटेल को आगे किया। सपा से गठबंधन कर पल्लवी विधायक बनने में सफल रहीं।

रालोद : पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का परिवार पश्चिम यूपी का सबसे रसूख वाला सियासी परिवार माना जाता है। चौधरी चरण सिंह के बाद चौधरी अजित सिंह ने राष्ट्रीय लोकदल का गठन कर इसे आगे बढ़ाया। अब अजित के बेटे चौधरी जयंत सिंह पार्टी की अगुवाई कर रहे हैं। जयंत एनडीए का हिस्सा हैं।

निषाद पार्टी : प्रदेश सरकार में मंत्री संजय निषाद राजग में हैं। राज्य सरकार में शामिल होने का मौका मिला तो सबसे पहले स्वयं मंत्री बने। बेटों को आगे बढ़ाने के लिए भाजपा के सिंबल पर टिकट स्वीकार कर लिया। बड़े बेटे प्रवीण निषाद को सांसद (संतकबीरनगर) और छोटे बेटे सरवन निषाद को विधायक (चौरीचौरा) बनवाने में सफल रहे हैं। 

वे नेता जिनका परिवार खूब फला-फूला

कल्याण सिंह : पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह उर्फ राजू भैया एटा से सांसद हैं। इस बार फिर प्रत्याशी बनाया गया है। राजू भैया के बेटे संदीप सिंह राज्य सरकार में बेसिक शिक्षा मंत्री हैं। वहीं राजू भैया की पत्नी प्रेमलता वर्मा भी विधायक रही हैं।

हसन परिवार (कैराना) : कैराना सीट पर हसन परिवार का सियासी रसूख जगजाहिर है। मुनव्वर हसन सपा से व उनकी पत्नी तबस्सुम हसन बसपा से सांसद रहीं। बेटा नाहिद हसन कैराना से विधायक है। अब मुनव्वर की बेटी इकरा हसन की सियासत में एंट्री हुई है। वह सपा प्रत्याशी हैं।

आजम परिवार : पूर्व मंत्री आजम खां विधायक व सांसद और उनकी पत्नी तजीन फात्मा सांसद रही हैं। बेटा अब्दुल्ला आजम भी विधायक बना।  इस बार जेल में हैं और चुनावी मैदान से बाहर हैं।

हरिशंकर तिवारी : गोरखपुर में हरिशंकर तिवारी का भी लंबे समय तक दबदबा रहा। खुद विधायक और मंत्री रहे। बड़ा बेटा भीष्म शंकर सांसद व छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी विधायक रहे।

मुख्तार परिवार : पूर्वांचल में माफिया मुख्तार अंसारी के सियासी रसूख की चर्चा खूब होती रही है। उसकी मृत्यु के बाद तमाम किस्से सामने आ रहे हैं। इस परिवार की समृद्ध सियासी विरासत रही है। परिवार में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, देशभक्त सैनिक और उपराष्ट्रपति तक रहे हैं। लेकिन, मुख्तार के सियासत में कदम रखने के बाद परिवार की छवि बदल गई। इस परिवार में अभी भी दो विधायक और सांसद हैं। 

  • मुख्तार अंसारी पूर्व विधायक, अफजाल अंसारी सांसद (भाई), अब्बास अंसारी विधायक (बेटा), सुहेब उर्फ मन्नू अंसारी विधायक (भतीजा- पूर्व विधायक सिगबतुल्ला अंसारी का बेटा)

बृजेश परिवार : पूर्वांचल के एक अन्य चर्चित माफिया बृजेश सिंह की सियासी पकड़ जगजाहिर है। इस परिवार में उदयनाथ सिंह उर्फ चुलबुल भाजपा के एमएलसी रहे हैं। लेकिन बृजेश के सियासत में आने के बाद परिवार की छवि बदल गई। उसकी छवि मुख्तार अंसारी के कट्टर प्रतिद्वंद्वी के रूप में हुई।  nबृजेश सिंह पूर्व एमएलसी, अन्नपूर्णा सिंह (पत्नी), एमएलसी, सुशील सिंह विधायक (भतीजा)।

ब्रजभूषण परिवार : ब्रजभूषण शरण सिंह गोंडा, बलरामपुर (पूर्व संसदीय क्षेत्र) व कैसरगंज मिलाकर छह बार सांसद चुने गए। जेल में थे तो पत्नी केतकी सिंह सांसद बनीं। भाजपा के अलावा वह सपा से भी सांसद रहे हैं। महिला पहलवानों के शोषण से जुड़े आरोपों के बाद पहली बार उन्हें टिकट के लाले पड़े हैं। बेटा प्रतीक भूषण सिंह गोंडा सदर से सांसद हैं।

स्वामी प्रसाद परिवार : पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य परिवार को आगे बढ़ाने की महत्वकांक्षा में बसपा, भाजपा के बाद सपा की भी यात्रा कर चुके हैं। बेटी संघमित्रा मौर्य व बेटे उत्कर्ष को आगे बढ़ाने में लगे रहे। भाजपा में रहते हुए संघमित्रा को बदायूं से टिकट दिलाया और वह सांसद बनीं। बसपा में रहते हुए बेटे को विधायक का टिकट दिलाया लेकिन हार गया। इस बार बेटी का टिकट कट गया और वह सपा छोड़कर अपनी पार्टी बना चुके हैं।

राजनाथ सिंह : केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह पार्टी के दिग्गज नेता और लखनऊ से सांसद हैं। एक बार फिर लखनऊ से प्रत्याशी हैं। उनके बड़े बेटे पंकज सिंह नोएडा से विधायक हैं।

कौशल किशोर : केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर मोहनलालगंज से सांसद हैं। पत्नी जयदेवी मलिहाबाद से विधायक हैं। कौशल फिर मैदान में हैं।

रितेश पांडेय : बसपा के अंबेडकरनगर सांसद रितेश पार्टी छोड़कर भाजपा में आए हैं। भाजपा ने प्रत्याशी बना दिया है। रितेश के पिता पूर्व सांसद राकेश पांडेय मौजूदा विधायक हैं।

कीर्तिवर्धन सिंह : गोंडा के भाजपा सांसद कीर्तिवर्धन सिंह मनकापुर राजघराने के उत्तराधिकारी हैं। पिता कुंवर आनंद सिंह भी सांसद, विधायक व मंत्री रहे।

यहां परिवारवाद पर अंकुश

मां को टिकट दिया, बेटे का काटा : भाजपा ने इस बार मेनका गांधी को सुल्तानपुर से टिकट दिया, लेकिन पीलीभीत से वरुण का काट दिया। चर्चा है कि वरुण पीलीभीत नहीं छोड़ना चाहते थे। पार्टी ने अनुशासन पर नरमी न दिखाते हुए वरुण का टिकट काट दिया।



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