Lok Sabha Elections: Now a big fight is taking place on the virtual platform

बदल गये हैं चुनाव प्रचार के माध्य्म…
– फोटो : अमर उजाला

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याद करें बीस साल पहले का चुनावी माहौल। कुछ तस्वीरें आंखों के सामने तैर जाएंगी। वो बिल्ले, जिसके छोटे-बड़े सभी दीवाने थे। लाउडस्पीकर लगी गलियों की खाक छानती वो गाड़ियां याद आई होंगी। वह दौर था जब घरों पर लगे झंडे बता देते थे कि हवा का रुख किधर का है। पर, आज माहौल बदल गया है। सड़कों पर चुनाव का शोर कम हो गया है। चुनावी खुमारी में डूबे कार्यकर्ताओं की संख्या घट गई है। ऐसे में सोशल मीडिया जन-जन तक अपनी बात पहुंचाने का सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। अब प्रचार जमीन से ज्यादा आभासी मंच पर हो रहा है।

फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स और व्हाट्सएप के जरिये प्रत्याशी अपनी बातें लोगों तक पहुंचा रहे हैं। यूपी में इसका जोर कुछ ज्यादा ही है, क्योंकि 17 करोड़ लोगों के हाथ में मोबाइल फोन है। अनुमान है कि अकेले यूपी में सोशल मीडिया का चुनावी बाजार 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा का है।

इंफ्लुएंसर, यूट्यूबर्स की फौज यूपी में

लोकसभा की 80 सीटों के साथ सबसे बड़ा राज्य यूपी है। राज्य के चुनावी रण में सोशल मीडिया बड़ी ताकत बना है। यही वजह है कि 110 से ज्यादा छोटी-बड़ी सोशल मीडिया कंपनियां यहां काम कर रही हैं। 

  • 400 से ज्यादा इंफ्लुएंसर और यूट्यूबरों की टीम ने यूपी में डेरा डाल रखा है। ये राजनीतिक दलों के साथ ही प्रत्याशियों के लिए भी काम कर रहे हैं।
  • कंटेंट राइटरों की भारी मांग है। करीब 600 कंटेंट राइटर चुनावी थीम पर लिख रहे हैं। सोशल मीडिया फ्रेंडली और युवाओं के मन की बात को समझने वाले कंटेंट राइटर राजनीतिक दलों की पहली पसंद बन गए हैं। एक बड़े प्रत्याशी के लिए काम कर रहीं क्रिएटिव राइटर ज्योति निगम बताती हैं कि सोशल मीडिया पर वन लाइनर का ट्रेंड है। यानी…मतलब की बात, जो सीधे लोगों, खासतौर पर युवाओं को हिट करे।

तमाम पाबंदियां भी वर्चुअल प्लेटफाॅर्म पर सक्रियता की बड़ी वजह : चुनाव को लेकर आयोग की ओर से जनसभा, पदयात्रा, साइकिल रैली, बाइक रैली व रोड शो की पैनी निगरानी की जा रही है। हर खर्च का रेट फिक्स है, जिसमें कोई हेरफेर नहीं कर सकते। इससे बचने के लिए भी प्रत्याशियों ने सोशल मीडिया पर अपनी ताकत झोंक दी है। हालांकि, आयोग ने सोशल मीडिया के लिए भी आचार संहिता लागू की है। पर, आज भी सोशल मीडिया प्रचार के बाजार में 70 फीसदी असंगठित क्षेत्र हावी है। सिंगल मैन शो वाले एक्सपर्ट की भरमार है और भारी मांग भी है। इसलिए प्रत्याशी जो खर्च का ब्योरा दे वही मानना होगा।

गर्मी से भी जंग : कार्यकर्ताओं और सोशल मीडिया का ही सहारा

इस बार चुनाव भीषण गर्मी के बीच हो रहे हैं। अप्रैल से मई के बीच तापमान 36 से 46 डिग्री सेल्सियस तक रहने का अनुमान है। ऐसे में कार्यकर्ता सड़क पर उतरकर कितना प्रचार कर पाएंगे, ये प्रत्याशियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। सुबह 10 बजे के बाद प्रचंड गर्मी और झुलसाने वाली धूप होगी। रात आठ बजे तक ही प्रचार कर सकते हैं। ऐसे में प्रत्याशी सोशल मीडिया के जरिये मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाने की रणनीति तैयार कर रहे हैं। इलेक्शन मैनेजमेंट से जुड़ी एक कंपनी के मुताबिक वर्ष 2014 में फेसबुक-ट्विटर ज्यादा लोकप्रिय थे, जबकि 2019 में व्हाट्सएप। पर, अभी यूट्यूब और इंस्टाग्राम का क्रेज है। व्हाट्सएप तो सदाबहार है।

सोशल मीडिया की ऐसे निगरानी कर रहा आयोग

सोशल मीडिया के किसी भी माध्यम से चुनाव प्रचार करने के लिए संबंधित चुनाव अधिकारी से इसके लिए इजाजत लेनी होती है। राजनीतिक पार्टी या उम्मीदवार इसके लिए किसी टीम या स्टाफ को हायर करते हैं, तो इसकी जानकारी चुनाव अधिकारी को देनी होती है। साथ ही रील बनाने या अन्य प्रचार पर किए जाने वाले खर्चों की जानकारी भी चुनाव अधिकारी को देनी होगी।

  • चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया समेत आचार संहिता उल्लंघन पर निगरानी रखने के लिए राज्य एवं जिला स्तर पर कंट्रोल रूम बनाए हैं। सी-विजिल, पीजी सेल की मदद से निगरानी करने के अलावा इनपर मिलने वाली शिकायतों के निपटारे के लिए भी काम किया जाता है।

महज 20 फीसदी ही बचा कारोबार 30 साल से प्रचार सामग्री के कारोबार में हूं। दस साल पहले तक खासा काम था। चार लोगों के स्टाफ को बढ़ाकर 15 करना पड़ता था। छह लोगों का काम तो केवल दिल्ली से माल लाना होता था। पांच-पांच प्रेस को एक साथ ऑर्डर देते थे। दो महीने तो रात-दिन काम चलता था। एक चुनाव साल-दो साल का खर्च निकाल देता था। पर, अब महज 20 फीसदी काम बचा है।

-सुशील वर्मा, थोक प्रचार सामग्री विक्रेता

जितना क्रिएटिव, उतनी कीमत  दस साल पहले ब्लाॅगर से काॅमर्शियल कंटेंट राइटर बना। अब अपनी कंपनी खोल ली है। 31 प्रत्याशियों की सोशल मीडिया हैंडलिंग कर रहे हैं। इस प्लेटफॉर्म पर आप जितना क्रिएटिव होंगे, उतना ही मुंहमांगा दाम मिलेगा। फीस नहीं बता सकता, लेकिन इतना जरूर  संकेत दे सकता हूं कि सालभर का खर्च और मुनाफा इस चुनाव से निकल जाएगा।

-विक्रांत सिंह, इलेक्शन मैनेजमेंट कंपनी हेड



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