Lok Sabha Elections: UP will miss many veterans who changed the direction of the wind.

Mulayam Singh file pic
– फोटो : अमर उजाला

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प्रदेश की सियासी जमीन से निकले और आसमां तक पहुंचने वाले कई चेहरे इस लोकसभा चुनाव में नहीं दिखेंगे। इनके नाम और काम पर वोट की फसल भले काटी जाएगी, लेकिन मतदाताओं को इनकी कमी खलेगी। ये ऐसे चेहरे थे, जिन्हें देखने और सुनने के बाद मतदाता अपना इरादा तक बदल देते थे। ये नेता मैदान में भले न हों, लेकिन इनके नाम से वोट का ग्राफ बदलता रहा है। ऐसे ही थे सपा संस्थापक मुलायम सिंह, भाजपा के दिग्गज नेता कल्याण सिंह, लालजी टंडन, रालोद के पूर्व अध्यक्ष अजित सिंह जैसे तमाम नेता।

 ये दिग्गज सियासी हवा का रुख मोड़ने का माद्दा रखते थे। यही वजह है कि चुनाव मैदान में उतरने वाले उम्मीदवार इनके नाम, काम और अरमान के जरिए सियासी फसल लहलहाने की कोशिश करते दिखेंगे। हालांकि उनकी अनुपस्थिति में यह सब कितना कारगर होगा, यह तो वक्त बताएगा। बहरहाल बैनर, पोस्टर हो या सोशल मीडिया  प्लेटफाॅर्म, सभी जगह उनके फाॅलोवर्स खुद के साथ उनकी तस्वीरें प्रदर्शित कर रहे हैं।

मुलायम सिंह यादव : सियासी अखाड़े के पहलवान

सियासी अखाड़े के बड़े खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव ने प्रदेश की सियासत में करीब पांच दशक तक अपनी छाप छोड़ी। मरणोपरांत पद्म विभूषण सम्मान दिया गया। उन्होंने अपने पहले चुनाव में-आप मुझे एक वोट और एक नोट दें, अगर विधायक बना तो सूद समेत लौटाऊंगा का नारा दिया।  मुख्यमंत्री से लेकर रक्षामंत्री तक बने। सपा ही नहीं सत्तासीन भाजपा के नेता भी उनकी सियासी दांवपेच के मुरीद रहे। 

कल्याण सिंह : भाजपा के लिए पिछड़ी जातियों की गोलबंदी की

सोशल इंजीनियरिंग के माहिर खिलाड़ी कल्याण सिंह ने मंडल बनाम कमंडल के दौर में तीन फीसदी लोध जाति को गोलबंद कर नए तरीके का माहौल तैयार किया। इसके बाद अन्य पिछड़ी जातियों को जोड़ने का अभियान चला। वह राम मंदिर आंदोलन के नायक के रूप में उभरे। भाजपा के साथ पिछड़ी जातियों को गोलबंद कर सियासत की ठोस बुनियाद तैयार की।

चौधरी अजित सिंह : सीएम की कुर्सी से चंद कदम दूर रह गए

अजित सिंह बीपी सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर मनमोहन सरकार तक में केंद्रीय मंत्री रहे।  वर्ष 1989 के चुनाव के बाद  वीपी सिंह ने अजित सिंह को सीएम बनाने का एलान किया तो मुलायम सिंह ने भी दावेदारी कर दी। विधायक दल की बैठक में महज पांच वोट से अजित सिंह हार गए और मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने। 

अमर सिंह : यूपी की सियासत में रहा दखल

90 के दशक में सियासत में सक्रिय हुए अमर सिंह सपा के महासचिव बने और फिर 1996 में राज्यसभा सदस्य बन गए। उनका यूपी की सियासत में अच्छा दखल रहा। छह जनवरी 2010 को अमर सिंह ने सपा से इस्तीफा दे दिया। वर्ष 2011 में कुछ समय न्यायिक हिरासत में रहे और राजनीति से संन्यास ले लिया।

केशरीनाथ : कड़े फैसले  से पाई पहचान

अधिवक्ता से विधानसभा अध्यक्ष और फिर राज्यपाल की भूमिका निभाते हुए तमाम कड़े फैसलों के लिए पहचाने जाने वाले केशरीनाथ त्रिपाठी भी इस चुनाव में नहीं दिखेंगे।  करीब 88 साल की उम्र में आठ जनवरी 2023 को उनका निधन हो गया।

सुखदेव राजभर:  कांशीराम के विचारों को फैलाया

सुखदेव राजभर कांशीराम के साथ बसपा की नींव रखने वालों में शामिल रहे। मुलायम सरकार में सहकारिता राज्य मंत्री की जिम्मेदारी निभाई। वहीं मायावती सरकार में संसदीय कार्य मंत्री की जिम्मेदारी संभाली। िवधानसभा अध्यक्ष की भूमिका निभाई।

लालजी टंडन : अब नहीं गूंजेगी बाबूजी की आवाज

लालजी टंडन ने वर्ष 1960 में पार्षद से सियासी सफर की शुरुआत की और राज्यपाल तक पहुंचे। विधान परिषद सदस्य, विधायक, मंत्री, सांसद, राज्यपाल तक उन्होंने काफी लंबी सियासी पारी खेली। लखनऊ की रग-रग से वाकिफ थे।



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