Loksabha Election 2024: red about the seats of Devipatan mandal.

– फोटो : amar ujala

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देवीपाटन मंडल की चारों संसदीय सीटों पर विरासत की सियासत का रंग गाढ़ा हो गया है। सियासी घरानों की पीढ़ियों के दांव से राजनीतिक माहौल भी बदला- बदला नजर आ रहा है। पहले तीन संसदीय सीटों पर ही विरासत संभालने की जंग तेज थी, अब कैसरगंज में सियासी पहलवान के बेटे की आमद ने राजनीतिक रंग और जमा दिया है। घरानों के दांवपेच पर अन्य दल भी जोर अजमाइश कर रहे हैं। दलों के दांव से घरानों की बेचैनी भी बढ़ी है। कोई ताकत दिखाकर माहौल अपने पाले में लाने को ताल ठोंक रहा है तो कोई सादगी के सहारे बैतरणी पार करने में जुटा है। सियासत के रंगों से खिला देवीपाटन का आंगन सूबे में अलग तस्वीर पेश कर रहा है।

सियासत में परिवारवाद के मुद्दे भले ही देश की राजनीति में उठते रहते हैं, लेकिन इससे अछूते कोई दल नहीं हैं। सियासत में कदम जमाने वाले यहां से मुंह नहीं मोड़ना चाहते हैं। वहीं लंबे समय तक राजनीति में रमने के बाद अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाने की बिसात बिछाने का सिलसिला नया नहीं है। गोंडा के चार बार के सांसद रह चुके राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले राजा आनंद सिंह ने लोकसभा चुनाव 1996 में बेटे कीर्तिवर्धन सिंह को सपा से सियासी विरासत सौंपी। कीर्तिवर्धन सिंह ने जीत भी हासिल की और अब तक वह चार बार सांसद रह चुके हैं। इस बार भी भाजपा से मैदान में हैं। वहीं उनके सामने सपा के कद्दावर नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा की पौत्री श्रेया वर्मा हैं। असली विरासत की जंग यहां देखने को मिल रही है।

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कैसरगंज में विरासत की सियासत का अलग ही रंग जमने लगा है। पहले तो सांसद और अखाड़ेबाज बृजभूषण शरण सिंह पूरे तेवर से मैदान में उतरने की तैयारी में थे, लेकिन ऐनवक्त पर भाजपा ने उनकी हसरतों पर लगाम लगाते हुए उनके सियासी वारिश करण भूषण शरण सिंह पर भरोसा जताया। इससे यहां भी विरासत संभालने का दम पूरे जोश के साथ दिख रहा है। पिता के नक्शेकदम पर चलने को उनके बेटे ने कदम बढ़ा दिए हैं।

श्रावस्ती में बहराइच संसदीय क्षेत्र के सांसद रहे चुके बदलूराम शुक्ल के भांजे व आईपीएस अधिकारी के साथ इंवेस्टर बैंकर रह चुके एमएलसी साकेत मिश्र को भाजपा ने मौका देकर सियासत को नई धार दी है। सियासत के मझे खिलाड़ी के रूप में साकेत भी रंग जमाए हुए हैं। बहराइच में भाजपा ने सांसद रहे अक्षयवर लाल गौड़ के बेटे डा. आनंद गौड़ को उताकर सियासी मुकाबले में विरासत का रंग चटख कर रखा है।

सपा व बसपा की तगड़ी सियासी बिसात

देवीपाटन की सियासी चाल पर विपक्षी दलों की धमक और चमक दिख रही है। गोंडा में सपा ने भले ही खाटी समाजवादी बेनी प्रसाद वर्मा की पौत्री श्रेया पर दांव चला है, लेकिन श्रावस्ती में चाल बदल कर बसपा के सांसद राम शिरोमणि वर्मा को अवसर देकर सियासत को नया रूप दिया है। श्रावस्ती में बसपा ने मैनुद्दीन उर्फ दद्दन खां पर दांव चला है। गोंडा में बसपा ने ब्राह्मण युवा चेहरे सौरभ मिश्र पर तो कैसरगंज में नरेंद्र पांडेय पर दांव चलकर सियासी रंग चढ़ा दिया है। कैसरगंज में सपा ने पुराने राजनीतिज्ञ भगतराम मिश्र को उतारकर समीकरण को साधने की कोशिश की है। बहराइच में चर्चित दलित नेताओं में शुमार रमेश गौतम को सपा ने तो बसपा ने लखनऊ विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफेसर ब्रजेश सोनकर को मैदान में उतार मोर्चेबंदी की है। इससे सियासी करवट में कई बदलाव बनते- बिगड़ते दिख रहे हैं।

अवध की सियासत में देवीपाटन का अहम स्थान

अवध की सियासत में अयोध्या, रायबरेली, अमेठी के साथ ही देवीपाटन मंडल की कैसरगंज सीट भी अलग ही स्थान बना चुकी है। गोंडा और श्रावस्ती की भी खासी चर्चा है। बहराइच का सियासी माहौल भले ही सरयू की धारा की तरह शांत है, लेकिन राजनीतिक संदेश का गढ़ माना जाता है। महाराजा सुहेलदेव व भगवान बुद्ध की धरती से सियासी संदेश के लिए बहराइच व श्रावस्ती की सरहद को सदल हमेशा से चुनते आ रहे हैं। इससे यह क्षेत्र अहम माना जा रहा है। दलित और पिछड़ों को साधने के लिए बहराइच केंद्र में रहता है। इसके साथ ही मां पाटेश्वरी की धरती होने के साथ ही बलरामपुर पूर्व पीएम अटल बिहारी वायपेयी व राष्ट्रऋषि नाना जी देखमुख की कर्मस्थली होने से राजनीति रूप से सशक्त है।

विशेषज्ञ की राय : एलबीएस पीजी कॉलेज के प्रोफेसर व राजनीतिक विश्लेषक डॉ. शैलेंद्र नाथ मिश्र का कहना है कि संसदीय राजनीति राष्ट्र निर्माण के लिए अहम है। दो भारत रत्न, एक प्रधानमंत्री देने वाली यह धरती राजनीति में अहम स्थान रखती है। सियासी विरासत कोई नया नहीं है, सियासी मैदान में सशक्त भूमिका निभाने के लिए दलों ने प्रत्याशी चुना है। आम मतदाता भी ऐसे फैसलों को स्वीकार करते आ रहे हैं। परिस्थितियों को देखते हुए लिया गया निर्णय उचित ही है।



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