Loksabha Elections 2024 : The nature of issues changed in the election battle

राम मंदिर की एक आकर्षक तस्वीर…
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


लोकतंत्र का सबसे बड़ा रण सजकर तैयार है। चुनावी बयार चलते ही हर बार फिजा में मुद्दों की भरमार शुरू हो जाती है। इस चुनाव में भी ऐसा ही है, पर इस बार मुद्दों की तासीर कुछ बदली-बदली सी नजर आ रही है। अब राम मंदिर मुद्दा नहीं रहा। पक्ष के लिए यह मुद्दा अब तुरुप के इक्के सरीखा है, तो विपक्ष इस पर पस्त है। काशी कॉरिडोर जैसे कामों ने एनडीए को बड़ा संबल दिया, तो अब मथुरा पर भाजपा का फोकस है, जो इस चुनाव में भी खूब चलेगा। उधर, निवेश और विकास इस चुनाव में सरकार के लिए नया बड़ा मुद्दा है। वह इसी को सरकारी कामों का प्रतिबिंब बता रही है। दूसरी तरफ विपक्ष महंगाई, रोजगार, किसानों के मुद्दों पर फिर से चुनावी रण में ताल ठोंक रहा है। ऐसे ही कुछ अहम मुद्दों पर फोकस करती है यह रिपोर्ट…

धार्मिक बनाम राजनीतिक

भारतीय राजनीति में हमेशा से ही धार्मिक और राजनीतिक द्वंद्व चलता रहा है। चुनाव में अक्सर धार्मिक मुद्दे हावी होते रहे हैं। खास तौर से उत्तर प्रदेश की राजनीति में तो इसका अहम रोल होता है। भाजपा इसमें हमेशा 20 साबित होती रही है। फिर इस बार तो इस पैरामीटर पर भाजपा काफी ऊपर है। राम मंदिर निर्माण ने भाजपा के लिए एक ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार किया है, जिसकी गूंज राजनीति के गलियारों में अब तक है। इससे पहले काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का शुभारंभ भी इसी तरह का माहौल बना चुका है। देश और प्रदेश की सरकार अब मथुरा पर फोकस कर रही है। वह यह जानती है कि इसका बड़ा लाभ मिल सकता है।

ध्रुवीकरण पर सटीक निशाना 

सियासी शतरंज पर ध्रुवीकरण की सधी    चाल सभी दलों के लिए लाभ का सौदा साबित होती रही है। चुनाव के ऐन पहले सीएए लागू किए जाने के कदम ने इस बात को पुख्ता कर दिया है कि भाजपा अपने इस पत्ते को बचाकर नहीं रखना चाहती है। इसका चुनावी लाभ उसे ध्रुवीकरण के रूप में मिल सकता है।

निवेश और विकास बड़ा मुद्दा

चुनावी दंगल में एनडीए इस बार एक और दांव पर भरोसा जता रहा है, वह है विकास। इसके लिए यूपी में निवेश हो रहा है। एक्सप्रेसवे बन रहे हैं। तमाम कॉरिडोर का निर्माण हो रहा है। 

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लखनऊ में आयोजित ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी में 10 लाख करोड़ की परियोजनाओं का शुभारंभ कर चुके हैं। उन्होंने यूपी को अगुवा बताया। कहा कि प्रदेश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए किस तरह से प्रयास किए जाते हैं, दूसरे राज्यों को इसे उत्तर प्रदेश से सीखना चाहिए। दरअसल, भाजपा थिंक टैंक का मानना है कि निवेश और विकास ऐसे मुद्दे हैं, जो आमजन को प्रत्यक्ष नजर आते हैं। यही कारण है कि इस बार भाजपा इसे चुनावी मंत्र मानकर काम कर रही है।

किसान आंदोलन और किसानों की आय

चुनाव से ऐन पहले एक बार फिर से किसान आंदोलन की तपिश शुरू हो गई है। दरअसल किसान आंदोलन के चलते यूपी विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की खुद घोषणा की थी। एमएसपी पर गारंटी की बात भी कही गई थी। किसान अब उन्हीं मुद्दों को लेकर फिर से मैदान में उतरे हैं। आवाज यह भी उठाई जा रही है कि किसानों की आय दोगुनी करने की जो बात हुई थी, उसका क्या हुआ? इस चुनाव में फिर ये मुद्दा है और विपक्ष इसका लाभ लेने की पूरी कोशिश करेगा। 

किसानों की मुख्य मांगें हैं

  • एमएसपी की गारंटी का कानून बने।
  • किसानों के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस हों।
  • लखीमपुर खीरी मामले पर किसानों के परिवार को मुआवजा मिले।
  • किसानों को प्रदूषण कानून से बाहर रखा जाए।
  • किसानों और खेतिहर मजदूरों को पेंशन मिले।

जातीय जनगणना

बिहार में जातीय जनगणना होने के बाद यूपी में भी इसे लेकर खूब घमासान मचा। बसपा, सपा, कांग्रेस जहां खुले तौर पर इसका समर्थन करते हैं, तो भाजपा में भी कई नेता समय-समय पर इसकी वकालत करते रहे हैं। उधर, साल 2022 में विधानसभा चुनाव के दौरान अपने घोषणापत्र में समाजवादी पार्टी ने राज्य में जातिगत जनगणना को शामिल किया था। अपने नए फॉर्मूले पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) पर काम कर रही सपा जोरशोर से इसे मुद्दा बना रही है।

पुरानी पेंशन बहाली

छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में पुरानी पेंशन योजना लागू हो चुकी है। हालांकि यह मुद्दा राज्य का है, लेकिन लोकसभा चुनाव में भी कर्मचारी इसे जोरशोर से उठा रहे हैं। उधर, विपक्ष यह वादा लगातार कर ही रहा है कि वे पुरानी पेंशन योजना को लागू करेंगे। प्रदेश के 25 लाख से ज्यादा कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना की मांग कर रहे हैं। ऐसे में इस बार भी कहीं न कहीं यह चुनावी मुद्दा अवश्य प्रभावित करेगा। हालांकि विधानसभा चुनाव में भी यह मुद्दा उछला था, पर जमीन पर बहुत असर नहीं छोड़ सका।

किसान को सम्मान देना ही बड़ा मुद्दा 

किसानों के मुद्दे बड़े हैं। असल बात यह है कि किसानों को कोई रास्ता ही नहीं सूझ रहा है। घर में कोई दुखी होता है, तो घर का मुखिया हाल-चाल पूछता ही है। यहां कोई नहीं पूछ रहा है। पहले भी आंदोलन हुआ। अब फिर हो रहा है। जब मांग पूरी न हो, जायज बात भी न सुनी जाए, तो कहीं न कहीं गुस्सा उतरता ही है। सीधा-साधा किसान वोट के जरिए ही गुस्सा उतार सकता है।

-नरेश टिकैत, राष्ट्रीय अध्यक्ष, भाकियू

कर्मचारी हैं नाराज, असर पड़ेगा 

जो कर्मचारी पेंशन पाते हैं, इस महंगाई में उनकी भी हालत पतली है। जिनकी पेंशन बंद हुई उनकी हालत और खराब है। पेंशन बहाल न होने से पूरे देश के कर्मचारी नाराज हैं। इस पर एक कमेटी भी गठित की गई, पर उसकी रिपोर्ट का पता ही नहीं है। पुरानी पेंशन की बहाली इस चुनाव में भी बड़ा मुद्दा है। इसका असर चुनाव पर अवश्य पड़ेगा। एनपीएस के सरकारी अंशदान के ब्याज से ही पुरानी पेंशन बहाल की जा सकती है, पर यह नहीं हो रहा है।

– वीपी मिश्रा, राष्ट्रीय अध्यक्ष, इप्सेफ

बासी कढ़ी में उबाल जैसा है जातीय जनगणना का मुद्दा

जातीय जनगणना का मुद्दा अब बासी कढ़ी में उबाल जैसा है। दरअसल पहले कई बड़े नेता थे, जो सभी जातियों में स्वीकार्य थे। सिरमौर थे। अब सब अपनी-अपनी जाति की राजनीति कर रहे हैं, तो यह बात उठती है। उधर, सरकार पहले ही इसी हिसाब से लोगों को साधने का काम कर रही है। कांग्रेस ने कर्नाटक में जातीय जनगणना सर्वे कराया। परिणाम क्या निकला? अब कह रहे हैं कि उसकी मूल कॉपी ही गायब हो गई है। मेरा मानना है कि चुनाव में यह मुद्दा कोई खास जोर पकड़ने वाला नहीं है।                 

 – डॉ. आशुतोष मिश्रा, पूर्व विभागाध्यक्ष, राजनीति शास्त्र, लखनऊ विवि

एक नजर…

सरकार तमाम दावे कर रही है कि यूपी में रोजगार की बहार है, इसी बजट में एमएसएमई सेक्टर में मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना के अंतर्गत 22 लाख 389 लोगों को लाभान्वित किया गया है। विश्वकर्मा सम्मान योजना में चार लाख रोजगार सृजित हुए, तो कौशल विकास मिशन में भी यह संख्या चार लाख के पार गई। 

उधर, इसके उलट विपक्ष ने बेरोजगारी को मुद्दा बनाया है। विपक्ष इस बात को लेकर हमलावर है कि यूपी सरकार किसी भी नौकरी में भर्ती की प्रक्रिया को पूरी नहीं कर पा रही है। युवा मायूस हैं। पेपर कैंसिल हो रहे हैं। आलम यह है कि युद्धरत देश इस्राइल में भी मजदूरी करने के लिए यूपी के युवाओं की लाइन लगी है।

सरकार ने प्रदेश भर में छुट्टा पशुओं के लिए गो आश्रय स्थल बनवाए हैं। नए निर्माण भी चल रहे हैं, पर आलम यह है कि यूपी में किसान छुट्टा पशुओं से अब भी परेशान हैं। वे न केवल सड़कों पर दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं, बल्कि फसलों को भी चट कर रहे हैं। ऐसे में छुट्टा पशुओं का मुद्दा भी यूपी को प्रभावित कर रहा है।

यूपी में कानून-व्यवस्था को लेकर भाजपा लगातार ब्रांडिंग कर रही है। दावा है कि कानून-व्यवस्था सुधरी है।धरातल पर इसका असर भी दिख रहा है। इसका लाभ भाजपा को मिला सकता है। अवैध एवं माफिया की संपत्तियों पर चले बुलडोजर ने प्रदेश सरकार की छवि को और सशक्त किया है। 

हालांकि, विपक्ष इसे मनमानी करार देते हुए सरकार पर लगातार निशाना साधता रहा है। वर्ग विशेष पर फोकस करते हुए विपक्ष इस चुनाव में भी इस मुद्दे को भी उठा रहा है।

पूरे देश में महंगाई का मुद्दा विपक्ष के लिए अहम है। डीजल, पेट्रोल के दामों से लेकर खाद्य वस्तुओं व अन्य चीजों पर बढ़ी महंगाई का असर प्रदेश में भी चुनाव में दिखेगा। उधर, भाजपा लगातार महंगाई पर नियंत्रण करने की बात कह रही है।



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