No medicines are available in government fospitals in Lucknow.

प्रतीकात्मक तस्वीर
– फोटो : Istock

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सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़ हर साल बढ़ रही है, जबकि इनको सप्लाई होने वाली जरूरी दवाओं की सूची छोटी होती जा रही है। ऐसे में मरीजों को मजबूरन बाहर से दवाएं लेनी पड़ रही हैं। स्थानीय स्तर पर खरीद की जो शर्तें हैं, उसमें एक साल के लिए किसी जरूरी दवा की खरीद की जो सीमा तय की गई है, उतनी दवा एक-डेढ़ महीने में ही खप जाती है।

डॉक्टरों के मुताबिक शहर के अस्पतालों में हर साल कम से कम 10 फीसदी मरीज बढ़ जाते हैं। बलरामपुर जैसे अस्पताल में तो यह संख्या 15 फीसदी तक होती है। मरीजों को मुफ्त दी जाने वाली दवाएं ड्रग कॉरपोरेशन अस्पतालों को मुहैया कराता है। यह ड्रग कॉरपोरेशन वर्ष 2018 में बना। इसके अस्तित्व में आने से पहले स्वास्थ्य विभाग के रेट कॉन्ट्रैक्ट (आरसी) में करीब चार सौ दवाएं होती थीं। अस्तित्व में आने के बाद ड्रग कॉरपोरेशन ने स्वास्थ्य विभाग से दवाओं की सूची लेकर एसेंशियल ड्रग लिस्ट (ईडीएल) यानी जरूरी दवाओं की सूची तैयार की थी। इस सूची में 286 दवाओं को रखा गया था। ड्रग कॉरपोरेशन इसके बाद भी ईडीएल में शामिल दवाओं में से भी 40-50 तरह की दवाओं की आपूर्ति अस्पतालों को नहीं करता। पूरे साल अस्पतालों में दवाओं के संकट की खबरें आती रहती हैं और ड्रग कॉरपोरेशन अपनी दलीलें देता रहता है।

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जिन दवाओं की जरूरत ज्यादा, उन्हें ही जरूरी की सूची से बाहर किया

ड्रग कॉरपोरेशन बनने से पहले अस्पतालों में गैस-एसिडिटी जैसी आम समस्या के इलाज में काम आने वाले डाईजीन सिरप की डिमांड के मुताबिक सप्लाई होती थी। पर, अब सभी अस्पतालों में यह सिरप नहीं मिलता। कारण-इसको ईडीएल से बाहर कर दिया गया। यही हाल बच्चों में लौहतत्व की कमी को दूर करने वाले आयरन ड्रॉप और विटामिन ए की कमी से होने वाली रतौंधी के इलाज में काम आने वाले एडी कैप्सूल का भी है। बवासीर की समस्या की शिकायतें अस्पतालों में खूब आती हैं। पर, इसके इलाज में काम आने वाला एनोवेट कैप्सूल अस्पतालों में नहीं मिलता।

ईडीएल में 286 दवाएं, बलरामपुर को 226 तो सिविल को 225 ही मिलती हैं

ईडीएल में शामिल सभी दवाओं की आपूर्ति भी ड्रग कॉरपोरेशन अस्पतालों को नहीं करता। बलरामपुर अस्पताल को महज 226 प्रकार की दवाएं ही कॉरपोरेशन देता है। वहीं, सिविल अस्पताल को 225, लोकबंधु को 206 तरह की दवाएं ही वह देता है। इसी तरह बीआरडी महानगर को 179 तरह की, तो ठाकुरगंज संयुक्त चिकित्सालय को 150 तरह की दवाएं वह देता है। यानी मनमाने तौर पर सप्लाई की जाती है।

कई दवाएं तो ऐसी, जिनकी अस्पताल में नहीं होती खपत

अस्पताल प्रभारियों का कहना है कि आपूर्ति में आने वाली कई दवाओं की अस्पताल में जरूरत ही नहीं होती। यानी वे बेकार पड़ी रहती हैं। इसके बजाय अस्पताल से अगर लिस्ट ली जाए तो उन दवाओं का बेहतर इस्तेमाल हो सकता है।

कम मांग वाले जिलों में डंप कर दी जाती हैं दवाएं

कम मांग वाले जिलों के वेयरहाउस में दवाओं को डंप करने की भी शिकायतें आम हैं। लखनऊ के अस्पतालों में जब मांग होती है, तब संबंधित जिले के वेयरहाउस में वाहन भेजकर दवाएं मंगाई जाती हैं। हाल ही में बी कॉम्प्लेक्स के दो लाख कैप्सूल और पांच हजार पैरासिटामॉल सिरप कानपुर के वेयर हाउस से मंगाने पड़े। क्योंकि, लखनऊ के वेयरहाउस में ये नहीं थीं। उन्नाव से भी एक लाख बी कॉम्प्लेक्स कैप्सूल और एक लाख डेक्सामेथासोन मंगाने पड़े थे।

नियम है-स्थानीय स्तर पर दवा खरीद सकते हैं, पर खरीदना आसान नहीं

सरकारी अस्पतालों में जो दवाएं नहीं हैं, उन्हें स्थानीय स्तर पर खरीदकर मुहैया कराए जाने का नियम है। बलरामपुर अस्पताल में लोकल परचेज का सालाना बजट 8 करोड़ का होता है। वहीं, सिविल अस्पताल का करीब तीन करोड़ तो लोकबंधु का 40 लाख रुपये का सालाना बजट होता है। पर, एक प्रकार की दवा रेट काॅन्ट्रैक्ट के तहत साल भर में एक लाख रुपये तक की ही खरीदी जा सकती है। कई ऐसी जरूरी दवाएं हैं, बड़े अस्पतालों में उनका एक लाख रुपये का स्टॉक महज एक या डेढ़ माह ही चल पाता है। ऐसे में कॉरपोरेशन से दवाएं नहीं मिलने से मरीजों को बाहर से दवा खरीदनी पड़ती है।

बलरामपुर, सिविल व लोकबंधु में हर माह करीब 60 लाख रुपये की दवा की डिमांड

बड़े सरकारी अस्पतालों-बलरामपुर, सिविल व लोकबंधु में हर माह करीब 50-60 लाख रुपये की दवा की खपत हो जाती है। इसमें ओपीडी में आने वाले व भर्ती मरीज दोनों शामिल होते हैं।

बलरामपुर में ये दवाएं नहीं

ग्लूकोज 5 प्रतिशत व 25 प्रतिशत, हार्ट अटैक के खतरे को कम करने में काम आने वाली ईकोस्प्रिन 75 एमजी, पित्ताशय की पथरी के इलाज में काम आने वाली दवा यूडीलिव-300 एमजी, उच्च रक्तचाप के इलाज में काम आने वाली मेटाप्रोलाल 50 एमजी, डाइजीन सिरप, आयरन ड्रॉप, एडी कैप्सूल, एनोवेट कैप्सूल।

लोकबंधु अस्पताल में ये दवाएं नहीं

अवसाद के इलाज में काम आने वाली अल्प्राजोलम टैब, अत्यधिक रक्तस्राव व ब्रेन हैमरेज के इलाज में काम आने वाली ईटमसाइलेट टैब, मांसपेशियों से जुड़ी समस्याओं के इलाज में काम आने वाली ट्राइहेक्सिफेनिडाइल 2 मिलीग्राम टैब, थायरॉक्सिन इंजेक्शन, मल्टी विटामिन टैबलेट।

दावे अपने-अपने: 258 दवाओं की ही सबसे अधिक मांग, सभी वेयरहाउस में उपलब्ध

एमडी मेडिकल सप्लाई कॉरपोरेशन जगदीश का कहना है कि जो जरूरी दवाएं हैं उनमें से 258 प्रदेश के सभी 75 वेयरहाउस में उपलब्ध हैं। इन्हीं की सबसे अधिक मांग होती है। अगर कहीं दवाओं की कमी है, तो डिमांड पर उपलब्ध कराई जाती है। अगर किसी वेयरहाउस में नहीं है, तो दूसरी जगह से उपलब्ध कराई जाती है। यदि कोई दवा उपलब्ध नहीं है, तो उसका विकल्प भी उपलब्ध रहता है, डॉक्टरों को उसे लिखना चाहिए।

सभी अस्पतालों में आपूर्ति ठीक

स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. दीपा त्यागी का कहना है कि सभी अस्पतालों में दवाओं की आपूर्ति ठीक है। जो दवाएं नहीं हैं, उसके लिए अस्पतालों के पास स्थानीय खरीदारी का बजट है। इसके जरिये भी मरीजों को दवाएं मुहैया कराई जाती हैं। सभी अस्पतालों से दवाओं की उपलब्धता के बारे में पता किया जाएगा।



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