एम्स को हर साल चार शवों की होती जरूरत, डेढ़ साल में पांच शव ही मिले
युग दधीचि देहदान अभियान अब तक एम्स को उपलब्ध करा चुका चार शव
संवाद न्यूज एजेंसी
रायबरेली। एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को शरीर की रचना की पढ़ाई के लिए मृत लोगों के शवों की जरूरत होती है, लेकिन युग दधीचि देहदान अभियान ने पिछले 10 माह से एम्स को एक भी लाश उपलब्ध नहीं कराई। पिछले चार साल में एम्स को चार शव उपलब्ध कराए थे। एक शव एम्स को सीधे मिला। अब शव देने से इंकार करने के बाद एमबीबीएस के छात्रों के सामने संकट खड़ा हो सकता है।
मेडिकल एजुकेशन में मृत देह का खासा महत्व होता है, क्योंकि छात्र इस पर रिसर्च करते हैं। पुस्तकीय ज्ञान के साथ ही मानव शरीर की संरचना की पढ़ाई के लिए मृत देह बहुत जरूरी है। युग दधीचि देहदान अभियान के संचालक मनोज सेंगर ने पिछले साल की 06 जून, 09 जून, 19 अक्तूबर और 12 नवंबर को रूप नारायण, कुंवर बिहारी, रामकली और बुद्धिराम के शवों को एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए एम्स को उपलब्ध करवाया था। एम्स को जिले से भी सीधे एक शव मिला था।
अभियान के तहत पिछले करीब 10 माह से एक भी शव एम्स को उपलब्ध नहीं कराया गया। अभियान के संचालक की नाराजगी के कारण एम्स को लोगों के मृत देह नहीं मिल पा रहे हैं। एम्स के जिम्मेदारों का दावा है कि एमबीबीएस की पढ़ाई में किसी भी स्तर पर दिक्कतें नहीं आ रही है। पढ़ाई के लिए पर्याप्त मृत देह उपलब्ध हैं। हालांकि मृत देह की जल्द ही व्यवस्था न होने से समस्या खड़ी हो सकती है।
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निदेशक लिखें पत्र तो ही एम्स को देंगे मृत देह : मनोज सेंगर
युग दधीचि देहदान अभियान के संचालक मनोज सेंगर का कहना है कि एम्स के मानव संरचना विभाग के प्रमुख से देहदान संकल्प लेने वाले लोगों के लिए सम्मान कार्यक्रम आयोजित कराने का अनुरोध किया था, लेकिन प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया। हमने रायबरेली में 50 देह दानियों को तैयार किया और कानपुर से चार शवों को लाकर एम्स को उपलब्ध कराया। इसके बाद भी अनुरोध स्वीकार नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि जब तक एम्स के निदेशक की ओर से पत्र नहीं मिलेगा, तब तक एक भी मृत देह रायबरेली एम्स को उपलब्ध नहीं कराएंगे।
एम्स में 72 से अधिक लोगों ने देहदान का संकल्प पत्र भरा है। एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए हर साल चार मृत देह की जरूरत होती है। पढ़ाई के लिए पर्याप्त मृत देह उपलब्ध है। एमबीबीएस की पढ़ाई में किसी भी प्रकार की दिक्कतें नहीं हैं। -डॉ. रजत सुभ्रादास, विभागाध्यक्ष, शरीर रचना विभाग एम्स