प्रवेंद्र गुप्ता

लखनऊ। सड़कों की सफाई के लिए दो साल पहले दो करोड़ रुपये खर्च कर खरीदी गईं बैटरी से चलने वाली 10 मशीनें खड़े-खड़े कबाड़ हो रही हैं। नगर निगम ने इनकी खरीदारी में जितनी रुचि ली, उतनी चलाने में नहीं दिखी। ट्रायल के बाद से ये मशीनें चलीं ही नहीं।

नगर निगम ने 15वें वित्त के मद से मिले बजट से बैटरी से चलने वाली 10 छोटी रोड स्वीपिंग मशीनें खरीदते समय इनकी उपयोगिता को लेकर बड़ी-बड़ी दलीलें दी थीं। दावा किया था कि इससे कम चौड़ी सड़कों की सफाई आसान हो जाएगी। यह भी कहा था कि हजरतगंज, विधानभवन के सामने और कम चौड़ी सड़कों पर इनको चलाया जाएगा। पर, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मशीनों को लेकर सवाल न उठे, इसलिए उनको कोनों में ले जाकर खड़ा कर दिया गया। केंद्रीय कार्यशाला के मुखिया संजय कटियार और पर्यावरण अभियंता संजीव प्रधान पर इन स्वीपिंग मशीनों को चलवाने, रखरखाव की जिम्मेदारी है, पर दोनों को यही नहीं पता कि मशीनें चल भी रही हैं या नहीं।

इसलिए नहीं हो सका इन मशीनों का इस्तेमाल…

दो चालक आए…छोड़कर चले गए

बैटरी से चलनी वाली इन मशीनों के लिए शुरुआत में दो चालकों का बंदोबस्त संविदा पर किया गया था। पर, वे दो महीने भी नहीं टिके। कारण-उनको समय से वेतन ही नहीं मिला। इसके बाद इनको चलाने के लिए नगर निगम को चालक ही नहीं मिले।

पर…यह सिर्फ चालक के न मिलने भर का मामला नहीं

डीजल गाड़ियों के लिए तो ड्राइवर सिफारिश लगवाते हैं…

रोड स्वीपिंग मशीनों के लिए जहां चालक नहीं मिल रहे, वहीं डीजल गाड़ियों को चलाने के लिए वे सिफारिश तक लगवाते हैं। कार्यशाला से जुड़े कुछ कर्मचारियों ने बताया कि चालकों को बहुत कम पैसे मिलते हैं। यही वजह है कि नगर निगम की गाड़ियों से डीजल चोरी होती है। कुछ जानकारों ने बताया कि डीजल बेचकर चालक हर महीने तीस से चालीस हजार रुपये तक कमाते हैं। बैटरी वाली मशीनों में तो ऐसी कोई कमाई है नहीं।

नौ हजार रुपये मानदेय, ठेकेदार सात हजार ही देता है चालक को

नगर निगम में करीब 600 गाड़ियां हैं। इनमें करीब 500 गाड़ियां डीजल तो 100 सीएनजी से चलने वाली हैं। कर्मचारियों की कमी के कारण नगर निगम ने कार्यदायी संस्थाओं के जरिये चालक रखे हैं। इनको नगर निगम की ओर से करीब नौ हजार रुपये मानदेय दिया जाता है। मानदेय का पैसा ठेकेदार को दिया जाता है और वे चालकों को देते हैं। इसको लेकर लगातार शिकायतें आती हैं कि ठेकेदार उन्हें सात हजार रुपये ही देता है। वह भी समय से नहीं मिलता। तेल चोरी का मामला आने पर कर्मचारी कई बार अफसरों के सामने खुलकर कह चुके हैं कि इतने कम वेतन में वे चोरी नहीं करेंगे, तो अपना घर कैसे चलाएंगे।

बड़ी वजह यह भी…

नियमित ड्राइवर कर रहे मौज, ठेके वाले चला रहे गाड़ी

नगर निगम में 50 नियमित ड्राइवर हैं। नियमों के तहत अफसरों की गाड़ियां इन्हीं को चलानी चाहिए। पर, नगर आयुक्त, अपर नगर आयुक्त से लेकर ज्यादातर अफसरों की गाड़ियां ठेके के ड्राइवर चला रहे हैं। नियमित वालों ने कूड़ा-मलबा उठान वाली बड़ी गाड़ियां खुद ले रखी हैं, मगर चलाते नहीं हैं। इन गाड़ियों को उन्होंने निजी लाभ के लिए ठेके वाले कर्मचारियों को दे रखा है। कुल मिलाकर कहा जाए तो नियमित चालक कूड़ा निस्तारण विभाग (आआर) में मौज कर रहे हैं।

रोड स्वीपिंग मशीनें चलवाए निगम, सदन में उठाएंगे मामला

कांग्रेस पार्षद दल की नेता ममता चौधरी, सपा पार्षद दल के नेता कामरान बेग, बसपा पार्षद अमित चौधरी रोड स्वीपिंग मशीनों के नहीं चलाए जाने पर सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं, शहर की सफाई व्यवस्था बदहाल है। इसकी वजह से पिछले साल स्वच्छता रेटिंग भी खराब हुई। इसके बाद भी रोड स्वीपिंग मशीनें नहीं चलाया जाना, एक गंभीर मामला है। मशीनें चलें, यह सुनिश्चित करना नगर निगम प्रशासन का काम है। पैसे की इस तरह से बर्बादी का मामला नगर निगम सदन में उठाया जाएगा।

…और जिम्मेदारों की गुगली

पर्यावरण अभियंता बताएंगे, मशीनें क्यों नहीं चल रहीं

मुख्य अभियंता विद्युत यांत्रिक संजय कटियार कहते हैं, रोड स्वीपिंग मशीनों का काम पर्यावरण अभियंता देखते हैं। वही मशीनें चलवाते हैं। अब ये क्यों नहीं चल रहीं, इस बारे में वही बता पाएंगे।

पहले तो चली थीं… पता करूंगा

पर्यावरण अभियंता संजीव प्रधान कहते हैं, मशीनें पहले तो चली थीं। अब क्यों नहीं चल रहीं, इस बारे में केंद्रीय कार्यशाला से जानकारी करूंगा। मशीनों को छोटी जगहों पर चलाया जा सकता है।



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