लखनऊ। नवजात बच्ची को लिए परिवारीजन डेढ़ सौ किमी. तक दौड़ लगाते रहे, लेकिन उसकी जिंदगी बचाने के लिए राजधानी के संस्थानों में पीडियाट्रिक वेंटिलेटर नहीं मिल सका। डॉक्टर कहते हैं, गोल्डन ऑवर में मरीज को जितनी जल्दी इलाज मिल जाए, जिंदगी बचने की संभावना बढ़ जाती है, पर नन्ही परी को चार घंटे तक इलाज मयस्सर नहीं हो सका। बहराइच से केजीएमयू ट्रॉमा, वहां से लोहिया संस्थान भटकते पिता के पास इतना पैसा नहीं था कि उसे कहीं और इलाज के लिए ले जाता। घर लौटते समय नन्ही परी ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

बहराइच के सफरपुर निवासी सईद की पत्नी का बृहस्पतिवार को वहां के जिला चिकित्सालय में सिजेरियन प्रसव हुआ। नवजात बच्ची को जन्म लेते ही सांस लेने में दिक्कत थी। डॉक्टरों ने पहले उसे ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा, लेकिन उसकी हालत बिगड़ती चली गई। सईद बच्ची को बहराइच के निजी अस्पताल ले गए। वहां वेंटिलेटर तो था, पर जवाब मिला कि आयुष्मान कार्ड पर इसकी सुविधा नहीं मिलेगी। इसके लिए नकद देना होगा। शुक्रवार दोपहर करीब तीन बजे परिवारीजन एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस में उसे लिए केजीएमयू ट्रॉमा सेंटर पहुंचे।

ट्रॉमा सेंटर में ऐसा ट्रॉमा : एक घंटे तक पर्चा काउंटर से पांचवें तल पर बाल रोग विभाग की दौड़ लगाता रहा पिता

पिता सईद बच्ची को भर्ती कराने के लिए पर्चा काउंटर से लेकर पांचवें तल पर बाल रोग विभाग की दौड़ लगाता रहा। इस दौरान करीब एक घंटे से अधिक समय बीत गया। डॉक्टरों ने जांच पड़ताल करके उसे वेेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत बताई।

लोहिया संस्थान किया रेफर, वहां भी जवाब मिला-वेंटिलेटर खाली नहीं

ट्रॉमा सेंटर के बाल रोग विभाग ने वेंटिलेटर खाली न होने की बात कहकर नवजात को लोहिया संस्थान रेफर कर दिया।शाम को परिवारीजन उसको लिए लोहिया संस्थान पहुंचे। यहां भी वेंटिलेटर खाली नहीं होने का हवाला देकर उसे लौटा दिया गया।

पैसे नहीं थे…क्या करते

बेटी की मौत से गमजदा सईद कहते हैं, हम लौटते नहीं तो क्या करते? हमारे पास पैसे नहीं थे। निजी अस्पताल में कैसे इलाज करवाते? रास्ते में बच्ची ने एंबुलेंस में दम तोड़ दिया। परिवारीजन ने शनिवार को नवजात को सुपुर्द-ए-खाक कर दिया।

एनआईसीयू में नौ वेंटिलेटर, सब रहते हैं फुल

लोहिया संस्थान में छह, बलरामपुर अस्पताल में एक, केजीएमयू ट्रॉमा सेंटर के एनआईसीयू में दो वेंटिलेटर हैं। इनमें से ज्यादातर फुल रहते हैँ। ऐसे में पीडियाट्रिक वेंटिलेटर के लिए परिवारीजनों को भटकना पड़ता है।

हर दिन एक या दो नवजात को पड़ती है जरूरत

डाॅक्टरों का कहना है कि रोजाना एक या दो नवजात ऐसे होते हैं जिन्हें एनआईसीयू की जरूरत पड़ती है। जो भी नवजात एनआईसीयू में वेंटिलेटर सपोर्ट पर जाता है, दस से पंद्रह दिन या इससे भी अधिक समय तक उसपर रहता है। ऐसे में वेंटिलेटर हमेशा फुल रहते हैं।

वेंटिलेटर खाली होता तो जरूर मुहैया कराते

केजीएमयू के प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह कहते हैं, ट्राॅमा सेंटर में मरीजों का दबाव बहुत ज्यादा है। जो भी मरीज आते हैं, उनको प्रमुखता से इलाज मुहैया कराया जाता है। वेंटिलेटर खाली होता तो बच्ची को प्रमुखता से मुहैया कराया जाता।



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