रायबरेली। निकाय चुनाव ने सियासी तस्वीर बदल दी है। खासकर नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद के परिणाम से नया राजनीतिक परिदृश्य सामने आया है। यह बदली सियासत शहर की राजनीति में नई दिशा और दशा तय करेगी, लेकिन इसका असर जिलेभर में पड़ेगा। वजह दिग्गजों की परवाह न करके वोटरों ने जिस तरह मताधिकार का प्रयोग किया, उससे जाहिर है कि जनता अब भीड़ को हांकने वालों के पीछ चलने के बजाय बदलाव और विकास कराने वालों को तव्वजो देगी, जो उनकी कसौटी पर खरा उतरेंगे। यह सियासी बदलाव 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में व्यापक असर डालेगा। ऐसे में धुरंधरों के सामने अपनी सियासी जमीन बचाए रखने की चुनौती होगी।

नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद पर कांग्रेस प्रत्याशी शत्रोह्न सोनकर ने रिकाॅर्ड जीत हासिल की है। यह चुनाव परिणाम चौंकाने वाला था, क्योंकि दिग्गजों की परवाह न करके जनता ने शत्रोह्न को सिर आंखों पर बैठाया। पिछले चुनावी रिकाॅर्ड को देखें तो दिग्गज ही प्रत्याशी की नैया पार लगाने में अपनी ताकत लगाते थे। वर्ष 2012 के निकाय चुनाव में सपा प्रत्याशी मो. इलियास ने जीत हासिल की। इलियास भले ही चुनाव जीते, लेकिन इसका श्रेय पूर्व मंत्री एवं ऊंचाहार विधायक डॉ. मनोज कुमार पांडेय को मिला। वर्ष 2017 के चुनाव में सपा से इलियास की पत्नी मैदान में उतरी, लेकिन जनता ने उन्हें नकार दिया, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी पूर्णिमा श्रीवास्तव ने जीत हासिल की। पूर्णिमा को चुनाव जिताने का श्रेय सदर विधायक अदिति सिंह को मिला। वर्ष 2023 के निकाय चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस का डंका बजा और कांग्रेस प्रत्याशी ने जीत हासिल की।

यह पहला मौका था, जब कांग्रेस का कोई दिग्गज नेता चुनाव प्रचार करने नहीं आया और पंजे ने कमाल कर दिया। खास बात ये है कि शत्रोह्न को हर वर्ग का वोट मिला। यही वजह रही कि उन्होंने रिकार्ड जीत हासिल की। वजह जनता बदलाव चाहती थी। उसे ऐसे दिग्गज नेताओं के समर्थन वाले दावेदार नहीं चाहिए थे, जो उनकी कसौटी पर खरा न उतरें। यही वजह रही कि जनता ने दिग्गजों के समर्थन वाले सपा प्रत्याशी पारसनाथ के साथ ही भाजपा प्रत्याशी शालिनी कनौजिया का साथ नहीं दिया। यह हाल तब है, जब शालिनी को चुनाव जिताने के लिए मंत्रियों की फौज उतर पड़ी थी। सपा का कोई बड़ा नेता (राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव) नहीं आए, वरना शायद दूसरे दल की झोली में जाने वाला अपना वोट बैंक अपने पास ही रहता, तब समाजवादी पार्टी की सियासी तस्वीर कुछ और ही होती। इस चुनाव का असर आने वाले लोकसभा चुनाव में पड़ना तय है। यदि ऐसा हुआ तो कई राजनीतिक धुरंधरों की सियासी जमीन खिसकने से इंकार नहीं किया जा सकता है।

नगर पालिका परिषद का चुनाव भाजपा, सपा के बीच चल रहा था। कांग्रेस, बसपा और आप का कहीं नाम लेने वाला कोई नहीं था। अचानक सपा के जिला उपाध्यक्ष एवं पूर्व पालिका अध्यक्ष मो. इलियास ने सपा छोड़ने का ऐलान कर दिया। साथ ही उनका इस्तीफा सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इसमें सपा प्रत्याशी को लेकर सवाल उठाए गए थे। इस्तीफा वायरल होते ही सपा में बेचैनी बढ़ी, लेकिन इसको किसी ने तरजीह नहीं दी। इलियास के इस्तीफे और फिर कांग्रेस में शामिल होने से कांग्रेस में जान आ गई। चुनाव से बाहर मानी जाने वाली कांग्रेस सपा, भाजपा से लड़ाई में आ गई। चुनाव के दौरान कांग्रेस की खूब चर्चा रही, लेकिन इतना ज्यादा वोट मिलेगा, इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। अब कांग्रेस की जीत का श्रेय इलियास को मिलना चाहिए। शत्रोहन सोनकर या फिर कांग्रेस, यह तो जनता जनार्दन ही जानेे।



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