रायबरेली। जिले में बिजली कटौती और लो वोल्टेज का असर पेजयल परियोजनाओं पर पड़ने लगा है। बिजली कटौती से पानी की टंकियां पूरी तरह से भर नहीं पाती। इस वजह से पानी की आपूर्ति ठीक से नहीं हो पाती है। इससे ग्रामीणों को हैंडपंपों और कुओं का दूषित पानी पीना पड़ रहा है। पावर कॉर्पोरेशन के अफसर इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे हें। शहर में दिन और रात बिजली की आवाजाही लगी रहती है। वहीं ग्रामीण अंचलों में अघोषित कटौती और फॉल्ट की समस्या से लोगों को दो चार होना पड़ता है।
ग्रामीण अंचलों में वैसे तो 101 पानी की टंकियां हैं। इसमें 65 पानी की टंकियां चालू हालत में हैं। पिछले कई दिनों से बिजली की कटौती हो रही है। इससे पानी की टंकियां पूरी क्षमता से भर नहीं पाती हैं। एक टंकी में पानी भरने के लिए आठ से 10 घंटे बिजली चाहिए, लेकिन ट्रिपिंग और लो-वोल्टेज की समस्या से पानी की टंकियां भर नहीं पाती हैं। इस वजह से केवल आसपास वाले गांवों में पानी पहुंच पाता है। यही वजह है कि करीब 300 गांवों में जलापूर्ति नहीं हो रही है। ग्रामीणों को पानी के लिए हैंडपंपों का सहारा लेना पड़ रहा है।
जल निगम ग्रामीण के पांच पानी की टंकियों को संचालित करवाने के लिए स्टाफ की कमी है। ऐसे में पानी की टंकियों पर कोई नहीं रहता है। रात में सभी टंकियां वीरान पड़ी रहती हैं। दिन में संविदा कर्मियों व ग्राम प्रधानों के सहयोग से रखे गए श्रमिकों के माध्यम से पानी की जलापूर्ति होती है। दिन में जब पानी की टंकियों पर स्टाफ रहता है, तो बिजली गायब रहती है। इस वजह से पानी की किल्लत होती है।
हर पानी की टंकी को भरने के लिए डबल बोर और मोटर लगाई जाती है, लेकिन ज्यादातर पानी की टंकियों का एक ही बोर काम कर रहा है। इस वजह से पानी की टंकी को भरने में समय लगता है। यदि दोनों बोर सही होते तो पानी की टंकियां जल्दी भर जातीं।