– जिला उपभोक्ता आयोग ने सात साल बाद बीमा कंपनी को दिया क्षतिपूति चुकाने का आदेश
– बिना साक्ष्य के खारिज हुआ गाय को भूरी व सफेद बताने का बीमा कंपनी का बहाना
संवाद न्यूज एजेंसी
रायबरेली। बीमा क्षतिपूर्ति पाने के लिए गाय के मरने के बाद उसके काले रंग को साबित करने में पशुपालक को सात साल का लंबा समय लग गया। क्षतिपूर्ति पाने के लिए जिला उपभोक्ता आयोग में दाखिल वाद की सुनवाई के दौरान बीमा कंपनी मृतक गाय को भूरी और सफेद रंग का साबित करने की कोशिश में जुटी रही ताकि बीमा दावे को खारिज कराया जा सके। जिला उपभोक्ता आयोग ने इस मामले में कोई साक्ष्य प्रस्तुत न कर पाने पर बीमा कंपनी की आपत्ति को खारिज कर दिया। पीठ ने बीमा कंपनी को आदेश दिया कि वह वादी पशुपालक को 50 हजार रुपये की क्षतिपूर्ति के साथ पांच हजार रुपये वाद खर्च के बतौर चुकाए।
डलमऊ क्षेत्र के कठघर निवासी विकास सिंह ने दूध का कारोबार करने के लिए 6 फरवरी 2015 को 1.20 लाख में दो गाय खरीदी थी। इनका बीमा युनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी से कराया गया था। पांच अप्रैल 2016 को इनमें से काले रंग की एक गाय मर गई। पशुपालक ने बीमा कंपनी के समक्ष जब क्षतिपूर्ति दावा पेश किया तो इसे कंपनी ने खारिज कर दिया। बीमा कंपनी का कहना था कि मरी हुई गाय का रंग भूरा और सफेद था, जबकि बीमित गाय का रंग काला था। क्लेम निरस्त होने के बाद वादी ने 19 जुलाई 2016 को जिला उपभोक्ता आयोग में क्षतिपूर्ति पाने के लिए वाद दाखिल किया था।
जिला उपभोक्ता के अध्यक्ष मदन लाल निगम व न्यायिक सदस्य सुनीता मिश्रा व प्रतिमा सिंह की तीन सदस्यीय पीठ ने वाद की सुनवाई के बाद पाया कि बीमा कंपनी गाय के भूरे और सफेद रंग के होने से जुड़ा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाई। इसके आधार पर बीमा कंपनी की आपत्ति को खारिज करते हुए वादी पशुपालन को 50 हजार रुपये की क्षतिपूर्ति राशि 45 दिन में चुकाने का आदेश दिया। साथ ही कहा कि अगर तय समयावधि में धनराशि नहीं चुकाई गयी तो देय राशि पर सात प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी चुकाना होगा।