Lucknow News: There is no scope for ticket for those leaving SP and joining Congress, message given by fieldin

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव।
– फोटो : amar ujala

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यूपी में सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन की स्थिति साफ होने से पहले ही सपा ने टिकटों का एलान कर दिया है। इतना ही नहीं खीरी में उत्कर्ष वर्मा को उतारकर यह संदेश भी दे दिया है कि टिकट की चाह में सपा छोड़कर कांग्रेस में जाने वालों के लिए किसी तरह की कोई गुंजाइश नहीं बची है।

खीरी से सपा के पूर्व सांसद रवि वर्मा टिकट की उम्मीद में ही बेटी पूर्वी वर्मा के साथ कांग्रेस में गए थे। पूर्वी वर्मा ने पिछला लोकसभा चुनाव सपा के टिकट पर लड़ा था, लेकिन हार गई थीं। कमोबेश सभी सीटों पर स्थानीय समीकरणों को देखते हुए प्रत्याशी उतारे गए हैं। पहली सूची में उन सीटों को शामिल किया गया है, जहां सपा के अंदरुनी आकलन में उसके पास मजबूत प्रत्याशी हैं।

फिरोजाबाद : यादव-मुस्लिम समीकरण अक्षय यादव को फिर टिकट

अक्षय यादव 2014 के लोकसभा चुनाव में फिरोजाबाद से विजयी हुए थे, लेकिन 2019 का चुनाव शिवपाल यादव के खड़े हो जाने के कारण वह हार गए थे। यादव-मुस्लिम समीकरण यहां से जीत का मुख्य आधार माना जाता है।

मैनपुरी : डिंपल के जरिये जीत का रिकॉर्ड दोहराने की तैयारी

दिसंबर 2022 में मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उनकी बहू डिंपल यादव को मैनपुरी के उपचुनाव में उतारा गया। 64 फीसदी वोट लेकर वह जीती थीं। इस सीट की शुमार सपा के सबसे अहम गढ़ के रूप में होती है।

संभल : मजबूत जनाधार वाले नेता माने जाते हैं बर्क

संभल से सपा ने 94 साल के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क पर फिर दांव लगाया है। संभल में यादव और मुस्लिम समीकरण जिताऊ माना जाता है। वह पहली बार 1996 में सपा के टिकट पर जीतकर संसद पहुंचे थे। मजबूत जनाधार वाले नेता माने जाते हैं।

खीरी : सामान्य व ओबीसी मतदाताओं को साधने की कोशिश

उत्कर्ष वर्मा खीरी से शहर विधायक भी रह चुके हैं। सपा ने लखीमपुर खीरी जिले की खीरी सीट पर उत्कर्ष वर्मा और धौरहरा से आनंद भदौरिया को उतारकर सामान्य व ओबीसी मतदाताओं को साधने की कोशिश की है।

लखनऊ : हर वर्ग में मानी जाती है रविदास मेहरोत्रा की पैठ

लखनऊ मध्य क्षेत्र के विधायक रविदास मेहरोत्रा लंबे समय से राजधानी में सक्रिय हैं। हर वर्ग में उनकी पैठ मानी जाती है। यह सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है, इसलिए लखनऊ की समझ रखने वाले अनुभवी नेता को यहां से उतारना मुफीद समझा गया।

फर्रुखाबाद :कैंसर सर्जन होने के कारण सभी वर्गों में जनाधार

फर्रुखाबाद से डॉ. नवल किशोर शाक्य को उतारने की घोषणा पहले ही अखिलेश यादव वहां हुई एक जनसभा में कर चुके हैं। कैंसर सर्जन होने के कारण सभी वर्गों में उनके समर्थक हैं।

अकबरपुर : ओबीसी के साथ दलितों को साधने की कोशिश

राजाराम पाल 2004 में अकबरपुर से बसपा और 2009 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए। उनके जरिये ओबीसी के साथ-साथ दलितों को भी साधने की बात दिमाग में रही होगी।

बांदा : निर्णायक हैं पटेल मतदाता

बांदा लोकसभा सीट पर हमेशा ही ब्राह्मण और पटेल जाति के मतदाताओं का दबदबा रहा है। इसलिए चुनाव में पार्टियां इन्हीं दो जातियों पर दांव लगाती रही हैं। शिव शंकर सिंह पटेल का टिकट इसी रणनीति का हिस्सा है।

फैजाबाद (अयोध्या) : सामान्य सीट पर दलित प्रत्याशी उतारकर दिया संदेश

फैजाबाद (अयोध्या) से दलित प्रत्याशी के रूप में अवधेश प्रसाद को उतारकर सपा ने खास संदेश देने का काम किया है। भाजपा सरकार ने एयरपोर्ट का नाम महर्षि वाल्मीकि के नाम रखकर दलितों में पैठ बढ़ाने का काम किया तो सामान्य सीट पर दलित प्रत्याशी को उतारकर सपा ने भी अपनी रणनीति का प्रदर्शन किया है। सपा को उम्मीद है कि अवधेश प्रसाद के अनुभव का फायदा भी मिलेगा।

अम्बेडकरनगर : दलित, ओबीसी, मुस्लिम समीकरण का सहारा

बसपा सांसद रितेश पांडेय के पिता व पूर्व सांसद राकेश पांडेय विधानसभा चुनाव से पहले सपा में आ गए थे। रितेश पांडेय की अखिलेश यादव से मुलाकात काफी चर्चा में रही। इससे माना जा रहा था कि इस परिवार को अम्बेडकरनगर से टिकट मिल सकता है, पर सपा ने बसपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे लालजी वर्मा को उतारकर चौंका दिया है। दलित, ओबीसी व मुस्लिम समीकरण के चलते सपा के रणनीतिकार लालजी वर्मा को मजबूत प्रत्याशी मान रहे हैं।

बस्ती : कुर्मी मतों पर चौधरी की मानी जाती है मजबूत पकड़

बस्ती से सपा प्रत्याशी रामप्रसाद चौधरी 5 बार कप्तानगंज से विधायक रह चुके हैं। वे मायावती सरकार में खाद्य रसद एवं पंचायतीराज मंत्री रह चुके हैं। उनके बेटे अतुल चौधरी कप्तानगंज से समाजवादी पार्टी के विधायक हैं। कुर्मी मतों पर उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है। आंकड़े बताते हैं कि वे जीत के तरीके भी जानते हैं।

स्वामी प्रसाद मौर्या की बेटी की सीट पर धर्मेंद्र यादव को उतारा

बदायूं से सपा के फायर ब्रांड नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्या भाजपा के टिकट पिछला चुनाव जीती थीं। वर्ष 2014 में यहां से धर्मेंद्र यादव जीते थे, लेकिन 2019 में वह हार गए। धर्मेंद्र यादव को मुस्लिम-यादव समीकरण के चलते बदायूं से एक बार फिर उतारा गया है।

अन्नु टंडन : सामान्य वर्ग के मतदाताओं का भी मिल सकेगा साथ

तीन साल पहले कांग्रेस से इस्तीफा देकर सपा की सदस्यता ग्रहण करने वाली अनु टंडन उन्नाव से फिर भाग्य आजमाएंगी। अन्नु टंडन 2009 में उन्नाव से सांसद रही हैं। 2019 के चुनाव में वे तीसरे स्थान पर रही थीं। अन्नु टंडन के साथ सामान्य वर्ग का वोट जुड़ने की रणनीति के तहत उन्हें उतारा गया है।

काजल निषाद : मजबूत सजातीय समीकरण

अभिनेत्री काजल निषाद ने 2012 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर गोरखपुर ग्रामीण क्षेत्र से लड़ा था, लेकिन हार गई थीं। 2021 में वह सपा में शामिल हुई थीं। वह तभी से क्षेत्र में सक्रिय हैं। वर्ष 2018 में गोरखपुर उपचुनाव में सपा प्रत्याशी प्रवीण निषाद ने यहां जीत दर्ज की थी। उसी समीकरण को तरजीह देते हुए यहां से काजल निषाद को मौका दिया गया है।



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