
लखनऊ में वीआईपी नंबर।
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ट्रांसपोर्टनगर आरटीओ में जिस वीआईपी नंबर के लिए 21 लाख रुपये की बोली लगाई गई थी, वह 5.56 लाख रुपये में बिका। यह पढ़कर आप चौंक गए होंगे। यह कोई मजाक नहीं, बल्कि ऑनलाइन नीलामी की व्यवस्था की खामी है, जिसका बेजा इस्तेमाल आवेदक करते हैं। इससे परिवहन विभाग को राजस्व का नुकसान होता है।
अक्तूबर में परिवहन विभाग के ट्रांसपोर्टनगर आरटीओ में वीआईपी नंबर खोले गए। अपनी पसंद के नंबरों के लिए ऑनलाइन बोली लगानी होती है। इसकी नीलामी होती है और सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को नंबर आवंटित किया जाता है। वीआईपी नंबर यूपी 32 पीवाई 0001 गत 28 अक्तूबर को तब चर्चा में आ गया, जब उसके लिए 21 लाख रुपये की बोली लगी। इस नंबर के लिए कुल 13 लोगों ने बोली लगाई थी। लेकिन ऐन मौके पर आवेदक ने अपनी बोली कैंसिल कर दी। इसके चलते दूसरी बड़ी बोली लगाने वाले को यह नंबर 5,56,500 रुपये में आवंटित कर दिया गया। यह नंबर फूलन सिंह जनकल्याण ट्रस्ट के नाम से आवंटित हुआ है।
…इसलिए होता है ”बड़ी बोली” का खेल
सूत्र बताते हैं कि वीआईपी नंबरों की बोली में व्यवस्था की खामी के चलते खेल होता है। इस पर अफसर कार्रवाई भी नहीं कर पाते। मसलन, किसी भी वीआईपी नंबर के लिए पहले बड़ी बोली लगा दी जाती है, फिर ऐन मौके पर उसे कैंसिल कर दिया जाता है। इससे आवेदक को केवल फीस का नुकसान होता है, जोकि बाइक के लिए 8000 रुपये व कार के लिए 33,000 रुपये होती है। जबकि परिवहन विभाग को राजस्व हानि होती है। बड़ी बोली निरस्त होने पर स्वतः दूसरे स्थान के आवेदक को नंबर आवंटित हो जाता है। यही वजह है कि सबसे बड़ी बोली 21 लाख रुपये व दूसरे स्थान के आवेदक की बोली 5,56,500 है, जिसके बीच बड़ा अंतर है।
