
1 of 8
महाकुंभ 2025
– फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
आखिर ये आकर्षण कैसा है…दूर-दूर तक संगम की पसरी रेत, साधुओं का रेला और डूबते सूरज की अरुणिमा में दीप्त चेहरे जो लंबे सफर के बाद क्लांत हो चले हैं। बड़े-छोटे, बच्चे, वृद्ध, धनाढ्य या केवल सिर पर गठरी लेकर बस एक कामना लेकर आने वाले की डुबकी तो लगानी ही है। गंगा-यमुना के संगम के साक्षी प्रयागराज में हर तरफ बस एक धुन गूंज रही है। महाकुंभ। मन में बहुत से सवाल उठते हैं, क्या यहां लोग मोक्ष की कामना लेकर आते हैं, या आते हैं अपने को पतित पाविनी गंगा और यमुना की धारा में फिर से निर्मल करने के लिए। या उनके मन में होता है उन साधुओं की एक झलक देखने का सपना, जिन्हें वे यहां के अलावा कहीं नहीं पाते। कभी आपने सोचा कि यहां सैकड़ों की संख्या में दिखने वाले नागा या अन्य अजब-गजब साधुओं की सेना कभी बाहर क्यों नहीं दिखती…या बस यहां हम खुद को खाली करने आते हैं। एक बार फिर उस निर्मल मन के साथ जीने के लिए जो जिंदगी की आपाधापी में कहीं न कहीं पापी बन बैठा।

2 of 8
प्रयागराज महाकुंभ 2025
– फोटो : x/@myogioffice
देखा जाए तो ये बस सवाल हैं, इनका जवाब जानना है तो महाकुंभ की रेत पर दूर तक फैले संगम के विस्तार को समझना होगा। शताब्दियों से यहां हर छह या बारह साल में माघ के सर्द महीने में श्रद्धालु जुटते आए हैं। इतिहास के पन्ने पलटें तो पाएंगे कि यह सिलसिला बहुत पुराना है। कुंभ का दर्शन जटिल है तो बहुत सरल भी। बड़े हनुमान मंदिर के पास सिर पर जौ उगाए बाबा अमरजीत कहते हैं, विश्व का कल्याण हो यही हमारा उद्देश्य है। वे सोनभद्र ये यहां आए हैं और यहां कल्पवास यानी कुंभ की अवधि में संगम तट पर रहेंगे। वहीं जौनपुर से आए डीके श्रीवास्तव दूर संगम में दिख रही नाव पर नजर जमाकर कहते हैं, यहां आना यानी तर जाना। उनके लिए कुंभ आना किसी भी तीर्थयात्रा से बढ़कर है। यहां आकर जो भाव मिलता है वैसा और कहीं नहीं। संगम तट पर मंडराते पक्षियों को निर्निमेष देख रहे बाबा रामेश्वर दास की कहानी भी संन्यास से मोक्ष के मार्ग की है। दरभंगा में बस मेरा जन्म हुआ, अब ने राग है न विराग।…बस साधना है।

3 of 8
प्रयागराज महाकुंभ 2025
– फोटो : अमर उजाला
कोट और टाई पहने लगभग 60 साल के राधेश्याम पांडेय श्रद्धालुओं की बेढब सी भीड़ में कुछ अलग से दिखे। पूछने पर बताया, इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक वकील के यहां मुंशी हैं। यहां क्यों आए। इस सवाल का जवाब जरा ठहरकर देते हैं, आता हूं तो अच्छा लगता है। आपका तो शहर ही है आते ही रहते होंगे। इस पर कहते हैं, हां यहां आकर मन ठहर सा जाता है। संगम की रेती पर गंगाजल भरने के लिए केन बेचने वाले संजय शाह कहते हैं, कुंभ में यहां आने से पुण्य मिलता है। कैसे पता, इस पर कहते हैं कि उन्हें यह एक बाबा ने बताया।

4 of 8
प्रयागराज महाकुंभ 2025
– फोटो : अमर उजाला
…अतीत से जुड़ी आध्यात्मिक यात्रा
…तो फिर आखिर क्या है कुंभ । दरअसल कुंभ एक ऐसी आध्यात्मिक यात्रा है जिससे गुजरकर उन सभी सवालों का जवाब मिलता जो मन में उठते हैं। यह एक विश्वास की यात्रा है। जिसमें संस्कृति, सभ्यता और भक्ति के रंग घुले हुए हैं। न जाने कब से प्रयाग की पवित्र भूमि पर लाखों लोग बिना किसी निमंत्रण के जुटते रहे हैं। कुंभ मेला लोगों का ही संगम नहीं कराता बल्कि भारतीय भाषाओं और लोक-संस्कृतियों का संगम भी बन जाता है।

5 of 8
प्रयागराज, महाकुंभ 2025
– फोटो : अमर उजाला
सद्भाव और संन्यास का संदेश देते साधु
अपने अखाड़े में धूनी रमाये बैठे उस नागा साधु की दृष्टि में कुछ ऐसा था जिसने कुंभनगरी के काली मार्ग से गुजरते हुए जैसे बांध लिया। उनके पास जाकर बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया। संन्यास क्यों लिया और वो भी नागा साधु बनकर। इस सवाल पर वे कहते हैं, हम तो मरकर जन्मे हैं, यह नागा साधु का चोला तो अपना पिंडदान करने के बाद ही मिलता है। घर, नाता, दुनियादारी से अब कैसा वास्ता। अब तो यही हमारी दुनिया है। पहले अखाड़ों का काम आक्रांताओं से आमजन की रक्षा करना होता था, अब तरीके बदल गए हैं। अब साधु का काम समाज और दुनिया में सद्भाव और शांति लाना है। बताते हैं कि उनका अखाड़ा स्कूल चलाता है और कई तरह के धर्मार्थ कार्य करता है।