MahaKumbh 2025: Engineer engaged in Kalpavas for virtue and salvation '10 important facts about Kalpavas'

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Mahakumbh 2025
– फोटो : अमर उजाला

यूपी के प्रयागराज के रहने वाले लक्ष्मीकांत पांडेय महाकुंभ में कल्पवास कर रहे हैं। अमर उजाला की टीम महाकुंभ की यात्रा के दौरान कल्पवास और उससे जुड़ी कहानियां जानने के लिए भ्रमण कर रही थी। इसी दौरान लक्ष्मीकांत से भेंट हुई। उन्होंने बातचीत में न सिर्फ यह बताया कि वह कल्पवास क्यों कर रहे हैं, बल्कि कल्पवास से जुड़ी कई रहस्यमयी बातें भी बताई।   

लक्ष्मीकांत का जीवन सफल और संघर्षपूर्ण यात्रा का उदाहरण है। उन्होंने ऑस्ट्रिया, जर्मनी और नार्वे जैसे देशों में इंजीनियर के तौर पर काम किया। वहां से लौटने के बाद भारत में बड़ी कंपनी में जीएम रहे। अलग-अलग देशों में बिताए गए उनके सालों ने उन्हें भौतिक सुख और समृद्धि दी, लेकिन इसके बावजूद वह संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने महसूस किया कि बाहरी दुनिया के सुखों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति। इसलिए, उन्होंने कुछ दिनों तक सुख-सुविधाओं को छोड़कर साधना के मार्ग पर चलने का निर्णय लिया।




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Mahakumbh 2025
– फोटो : अमर उजाला

महाकुंभ का आयोजन हर 12 साल में होता है। यह वह अवसर होता है, जब लाखों लोग अपनी आत्मा की शुद्धि और मोक्ष के लिए प्रयागराज की पवित्र गंगा में डुबकी लगाते हैं। लक्ष्मीकांत ने भी इस अवसर का उपयोग करते हुए कल्पवास का संकल्प लिया। उनका मानना है कि ” कल्पवास, सन्यास में प्रवेश का इंटर्नशिप है”। यह वाक्य उनके आध्यात्मिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है। जिसमें वह कहते हैं कि सन्यास की ओर बढ़ने से पहले व्यक्ति को आत्म-निरीक्षण और साधना के माध्यम से अपनी आत्मा को शुद्ध करना होता है। कल्पवास, उनके लिए इस आंतरिक यात्रा की शुरुआत है।

 


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Mahakumbh 2025: इसी कुटिया में लक्ष्मीकांत कर रहे कल्पवास
– फोटो : अमर उजाला

उनका जीवन न केवल उनकी व्यक्तिगत साधना का प्रतीक है, बल्कि उनके परिवार का भी आदर्श है। उनका बेटा जज है। यह उनकी कठोर मेहनत और संस्कारों का ही फल है। उनकी पत्नी का देहांत हो चुका है। यह दुखद घटना उनके जीवन में एक बड़ी चुनौती रही है। लेकिन, उन्होंने इस दुख को अपने जीवन का हिस्सा मानते हुए आत्म-समर्पण और साधना के मार्ग पर चलने का निर्णय लिया। 

 


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महाकुंभ में स्नान करने के बाद भगवान सूर्य को अर्घ्य देते श्रद्धालु।
– फोटो : अमर उजाला।

कल्पवास के दौरान वह गंगा के किनारे साधना कर रहे हैं। जहां वह भौतिक दुनिया से दूर रहते हुए अपने भीतर की गहराई में उतरने का प्रयास कर रहे हैं। वह सिर्फ अपने आत्मा की शुद्धि के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के कल्याण के लिए भी इस तपस्या को कर रहे हैं। इस दौरान वह एक साधक की तरह दिन-रात ध्यान, पूजा और मानसिक शांति में लीन रहते हैं। उनका यह कदम दिखाता है कि भौतिक सफलता के बावजूद आत्मा की शांति और मोक्ष की तलाश हमेशा बनी रहती है।

 


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महाकुंभ में खप्पर पूजा की तैयारी करते संत।
– फोटो : अमर उजाला।

लक्ष्मीकांत पांडेय का जीवन हम सभी को यह सिखाता है कि भौतिक दुनिया में सफलता के बावजूद, आत्मा की शांति और मोक्ष की खोज सबसे महत्वपूर्ण है। उनका कल्पवास के लिए निर्णय यह सिद्ध करता है कि वास्तविक सुख और शांति भीतर से आती है, और जो व्यक्ति अपने आत्मा को शुद्ध करता है, वह असल में सच्चे मोक्ष की ओर बढ़ता है। 

 




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