मैनपुरी। स्वच्छता सर्वेक्षण 2024-25 के आंकड़े बृहस्पतिवार को केंद्र सरकार की ओर से जारी हुए। मैनपुरी नगर पालिका के लचर प्रदर्शन और जिम्मेदारों की घोर लापरवाही की वजह से बीते साल के मुकाबले प्रदेश स्तर पर 71 पायदान नीचे खिसककर 132वीं रैंक पर आ गिरी है। नेशनल रैंक में 2024 की 300वीं रैंक से सुधार करते हुए 2025 में 200वीं रैंक हासिल की है, यानी 100 पायदान का सुधार हुआ है। यह उपलब्धि थोड़ी राहत भरी है। लेकिन प्रदेश की खराब स्थिति इस पर भारी पड़ रही है।
साल 2024 में मैनपुरी नगर पालिका की प्रदेश रैंक 61वीं थी, जो अब 2025 में 132वीं हो गई है। यह शर्मनाक गिरावट स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि शहर की स्वच्छता को लेकर कोई गंभीर प्रयास नहीं किए गए। नगर पालिका के विपक्षी नेताओं, शहर की जनता के अनुसार इस दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण अस्त-व्यस्त कूड़ा निस्तारण व्यवस्था और बदहाल कूड़ा निस्तारण केंद्र हैं। शहर की सड़कों पर पसरा कूड़ा और उससे उठती दुर्गंध नगर पालिका के दावों की हवा निकाल रही है। यह सीधे तौर पर उन अधिकारियों की लापरवाही का नतीजा है, जिन पर शहर को स्वच्छ रखने की जिम्मेदारी है।
जिम्मेदार कौन और जवाबदेही कब?
सवाल उठता है कि इस निराशाजनक प्रदर्शन का जिम्मेदार कौन है? क्या नगर पालिका प्रशासन ने स्वच्छता को लेकर अपनी आंखें मूंद रखी थीं? शहर की बदहाल गलियां और कूड़े के ढेर चीख-चीख कर व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं। यह सिर्फ रैंकिंग का मसला नहीं, बल्कि शहरवासियों के स्वास्थ्य और उनके जीवन की गुणवत्ता से जुड़ा गंभीर मुद्दा है। सवाल खड़ा है कि इस लचर प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार लोगों पर कब और क्या कार्रवाई की जाती है, और शहर की स्वच्छता के लिए ठोस कदम कब उठाए जाते हैं।
इन बिंदुओं पर हुआ स्वच्छता सर्वेक्षण
कचरा प्रबंधन: इसमें कचरा संग्रह, परिवहन, प्रसंस्करण और निपटान शामिल है।
नागरिक भागीदारी: इसमें नागरिकों की स्वच्छता गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी और प्रतिक्रिया शामिल है।
खुले में शौच से मुक्ति: यह सुनिश्चित करना कि शहर खुले में शौच से मुक्त है।
सार्वजनिक शौचालय: सार्वजनिक शौचालयों की उपलब्धता और रखरखाव।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन: ठोस कचरे का प्रभावी प्रबंधन, जिसमें इसे गीले कूड़े से अलग करना और पुनर्चक्रण शामिल हैं।
सड़कों की सफाई: सड़कों और सार्वजनिक स्थानों की सफाई।
पानी की स्वच्छता: सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता और जल स्रोतों का संरक्षण।
व्यवहार परिवर्तन: स्वच्छता और स्वच्छता के बारे में नागरिकों के व्यवहार में सकारात्मक बदलाव लाना।
क्षमता निर्माण: स्वच्छता कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम।
प्रमाणीकरण: स्वच्छता के विभिन्न पहलुओं में शहरों को प्रमाणित करना।
सूचना, शिक्षा और संचार: स्वच्छता और स्वच्छता के बारे में जागरूकता बढ़ाना।