Makar Sankranti (मकर संक्रान्ति) सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे. इस दिन मकर संक्रांति मनाई जाएगी. सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना संक्रांति कहलाता है.पौष मास में सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में विराजमान होते है तो इस अवसर को देश के विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग त्योहार जैसे लोहड़ी, कहीं खिचड़ी, कहीं पोंगल आदि के रूप में मनाते हैं. हिंद धर्म में मकर संक्रांति ऐसा त्योहार है जिसका धार्मिक के साथ वैज्ञानिक महत्व भी है.
मकर संक्रांति धार्मिक महत्व
100 गुना फलदायी है दान – पुराणों में मकर संक्रांति को देवताओं का दिन बताया गया है. मान्यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर वापस लौटता है.
मांगलिक कार्य शुरू – मकर संक्रांति से अच्छे दिनों की शुरुआत हो जाती है, क्योंकि इस दिन मलमास समाप्त होते हैं. इसके बाद से सारे मांगलिक कार्य विवाह, मुंडन, जनेऊ संस्कार आदि शुरू हो जाते हैं.
खुलते हैं स्वर्ग के द्वार – धार्मिक मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन स्वर्ग का दरवाजा खुल जाता है. इस दिन पूजा, पाठ, दान, तीर्थ नदी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. पौराणिक कथा के अनुसार भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, लेकिन दक्षिणायन सूर्य होने के कारण बाणों की शैया पर रहकर उत्तरायण सूर्य का इंतजार करके मकर संक्रांति होने पर उत्तरायण में अपनी देह का त्याग किया, ताकि वह जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाएं.
गंगा जी धरती पर आईं – मां गंगा मकर संक्रांति वाले दिन पृथ्वी पर प्रकट हुईं. गंगा जल से ही राजा भागीरथ के 60,000 पुत्रों को मोक्ष मिला था. इसके बाद गंगा जी कपिल मुनि के आश्रम के बाहर सागर में जाकर मिल गईं.
मकर संक्रांति वैज्ञानिक महत्व
क्यों खाते हैं तिल-गुड़ – सूर्य के उत्तरायण हो जाने से प्रकृति में बदलाव शुरू हो जाता है. ठंड की वजह से सिकुरते लोगों को सूर्य के तेज प्रकाश के कारण शीत ऋतु से राहत मिलना आरंभ होता है. हालांकि मकर संक्रांति पर ठंड तेज होती है, ऐसे में शरीर को गर्मी पहुंचाने वाले खाद्य साम्रगी खाई जाती है. यही वजह है कि मकर संक्रांति पर तिल, गुड़, खिचड़ी खाते हैं ताकि शरीर में गर्माहट बनी रहे.
तरक्की के रास्ते खुलते हैं – पुराण और विज्ञान दोनों में मकर संक्रांति यानी सूर्य की उत्तरायण स्थिति का अधिक महत्व है. सूर्य के उत्तरायण से रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं. कहते हैं उत्तरायण में मनुष्य प्रगति की ओर अग्रहसर होता है. अंदकार कम और प्रकाश में वृद्धि के कारण मानव की शक्ति में भी वृद्धि होती है.
पतंग उड़ाने का वैज्ञानिक महत्व – मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने के महत्व भी विज्ञान से जुड़ा है. सूर्य का प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवद्र्धक और त्वचा तथा हड्डियों के लिए बेहद लाभदायक होता है. यही कारण है कि पतंग उड़ाने के जरिए हम कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताते हैं, जो आरोग्य प्रदान करता है.
Makar Sankranti (मकर संक्रान्ति) 14 या 15 जनवरी को, शंका समाधान-
मकर संक्रांति का त्योहार हर साल सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के अवसर पर मनाया जाता है। बीते कुछ वर्षों से मकर संक्रांति की तिथि और पुण्यकाल को लेकर उलझन की स्थिति बनने लगी है। आइए देखें कि यह उलझन की स्थिति क्यों बनी हैं और मकर संक्रांति का पुण्यकाल और तिथि मुहूर्त क्या है। दरअसल इस उलझन के पीछे खगोलीय गणना है। गणना के अनुसार हर साल सूर्य के धनु से मकर राशि में आने का समय करीब 20 मिनट बढ़ जाता है। इसलिए करीब 72 साल के बाद एक दिन के अंतर पर सूर्य मकर राशि में आता है। ऐसा उल्लेख मिलता है कि मुगल काल में अकबर के शासन काल के दौरान मकर संक्रांति 10 जनवरी को मनाई जाती थी। अब सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का समय 14 और 15 के बीच में होने लगा क्योंकि यह संक्रमण काल है।
साल 2012 में सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 15 जनवरी को हुआ था इसलिए मकर संक्रांति इस दिन मनाई गई थी। पिछले कुछ वर्षों में मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही मनाई गयी ऐसी गणना कहती है। इतना ही नहीं करीब पांच हजार साल बाद मकर संक्रांति फरवरी के अंतिम सप्ताह में मनाई जाने लगेगी
ज्योतिषीय गणना एवं मुहुर्त चिंतामणी के अनुसार सूर्य सक्रान्ति समय से 16 घटी पहले एवं 16 घटी बाद तक का पुण्य काल होता है निर्णय सिन्धु के अनुसार मकर सक्रान्ति का पुण्यकाल सक्रान्ति से 20 घटी बाद तक होता है किन्तु सूर्यास्त के बाद मकर सक्रान्ति प्रदोष काल रात्रि काल में हो तो पुण्यकाल दूसरे दिन माना जाता है। इस वर्ष भगवान सूर्य देव 14 जनवरी रविवार को रात्रि 02 बजकर 42 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेगें।
सूर्य धनु से मकर राशि में 14 जनवरी को प्रवेश कर रहा है। अतः धर्म सिंधु के मतानुसार..
मकरे पराश्चत्वारिंशत्।।
अर्थात मकर में परली चालीस घड़िया पुण्यकाल है।
इदं मकरकर्कातिरिक्तं सर्व- त्र रात्रिसंक्रमे ज्ञेयम् ॥
अयने तु मकरे रात्रिसंक्रमे सर्वत्र परदिनमेव पुण्यम् ॥
अर्थात👉 मकर में रात्रि को संक्रांति होय तो सर्वत्र परदिन में पुण्यकाल माना जाता है।
अतः इस वर्ष उदया तिथि के में संक्रांति आरम्भ होने के कारण 15 जनवरी सोमवार के दिन संक्रान्ति का पर्व मनाया जाना ही शास्त्रोचित है।
ज्योतिष गणना के अनुसार इस बार मकर संक्रांति की शुरुआत शतभिषा नक्षत्र के दौरान हो रही है। धनिष्ठा नक्षत्र 14 जनवरी को प्रातः 10 बजकर 21 मिनट तक रहेगा। धर्म शास्त्रों के अनुसार शतभिषा नक्षत्र होने पर दान, स्नान, पूजा पाठ और मंत्रों का जाप करने पर विशेष शुभ फल की प्राप्ति होती है। मकर संक्रांति पर शतभिषा नक्षत्र के साथ वरियान योग का निर्माण हो रहा है।