अपने भड़काऊ बयानों के लिए चर्चित मौलाना तौकीर रजा खां पर शिकंजा कसते ही सत्ता पक्ष से जुड़े उन बड़े नेताओं ने भी उससे आंखें फेर ली, जिनकी आंखों का कभी वह तारा था।
वर्षों तक चुनावी मौसम में उसकी तकरीरें न सिर्फ सुर्खियों में रहीं, बल्कि कुछ सियासी दलों के लिए वोटों का ध्रुवीकरण कराने का जरिया भी बनीं। मगर, अब मौलाना के दुर्दिन शुरू हुए तो उसे संरक्षण देने वाले सत्तापक्ष के नेताओं ने भी उससे दूरी बना ली।
मौलाना तौकीर अपने भड़काऊ भाषण की वजह से जिले के एक कद्दावर नेता का बेहद करीबी हो गया था और अप्रत्यक्ष रूप से उनके चुनाव प्रबंधन की कमान भी संभालता था। वर्ष 2010 में शहर दंगों की आग में जल रहा था। उन दंगों में मौलाना मास्टरमाइंड की भूमिका में नजर आया।
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मौलाना तौकीर रजा खां
– फोटो : वीडियो ग्रैब
पुलिस ने मौलाना को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। हालांकि, मौलाना को जल्दी ही जमानत मिल गई थी। मौलाना की जमानत लेने वालों में उसी कद्दावर नेता के करीबी शामिल रहे। यह पहली बार था जब नेता और मौलाना की दोस्ती से पर्दा उठा था।
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मौलाना तौकीर रजा
– फोटो : अमर उजाला
इसके बाद मौलाना की तकरीरों से नेता को जबर्दस्त फायदा होता रहा। इस बार कानून-व्यवस्था खराब होने पर मौलाना के करीबियों ने उन्हीं नेता से संपर्क साधने की कोशिश की, लेकिन उसे कोई आश्वासन नहीं मिला।
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मौलाना तौकीर रजा खां
– फोटो : अमर उजाला
माहाैल भड़काने का मसला बना कार्रवाई का आधार
हाल के वर्षों में मौलाना के तेवर सरकार के प्रति लगातार तीखे रहे। हालांकि, मौलाना ने स्थानीय स्तर पर भाजपा से जुड़े कुछ बड़े नेताओं से व्यक्तिगत समीकरण भी बनाए रखे थे। इसके चलते उस पर कभी निर्णायक कार्रवाई नहीं हो पाई। मगर, सीएम योगी के सख्त रवैये ने यह स्पष्ट कर दिया है कि तुष्टीकरण की राजनीति की जगह कानून का राज ही चलेगा।
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बरेली बवाल: एक मामले में मौलाना तौकीर रजा भी आरोपी बनाए गए हैं।
– फोटो : अमर उजाला
तीन चुनाव लड़ा, तीनों में मिली हार
मौलाना तौकीर का पुश्तैनी गांव बदायूं का करतौली है। वहीं से वह सबसे पहले 1987 में ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं सका। वर्ष 1992 में बदायूं की बिनावर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन वह भी हार गया। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के समय में उन्हीं की पार्टी जनता दल से बरेली की कैंट विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और वह भी हार गया।