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आने वाले समय में यूपी के हर जिले में मेडिकल कॉलेज होंगे।

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प्रदेश के हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज खोल जा रहा है। अब तक 45 जिले में मेडिकल कॉलेज शुरू हो गए हैं। इसी तरह 14 मेडिकल कॉलेज अगले सत्र में शुरू होंगे। इनका भवन तैयार हो गया है। इन कॉलेजों के शुरू होने से प्रदेश में एमबीबीएस की 1400 सीटें बढ़ जाएंगे। वहीं, 16 जिले में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत मेडिकल कॉलेज खोलने की प्रक्रिया चल रही है। इसमें छह जिलों में निजी क्षेत्र की संस्थाओं का चयन हो गया है। अन्य में प्रक्रिया चल रही है। इन मेडिकल कॉलेजों के खुलने से न सिर्फ चिकित्सक और चिकित्सा शिक्षक तैयार होंगे बल्कि हर जिले में सुपर स्पेशियलिटी चिकित्सा सुविधाएं भी मिल सकेंगी।

प्रदेश सरकार अगले पांच साल में हर जिले में हर तरह स्वास्थ्य सुविधाएं देने की योजना पर काम कर रही है। करीब 24 करोड़ की आबादी वाले इस राज्य में वर्ष 2017 से पहले सिर्फ 12 मेडिकल कॉलेज थे। अब वन डिस्ट्रिक वन मेडिकल कॉलेज योजना के तहत हर जिले में कॉलेज खुल रहे हैं। इसी तरह दो एम्स, दो केंद्रीय चिकित्सा संस्थान और 30 प्राइवेट मेडिकल कॉलेज भी चल रहे हैं।

वर्तमान में सरकारी क्षेत्र में एमबीबीएस की 3,828 व निजी क्षेत्र में 4,600 सीटें उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त रायबरेली एम्स में 100 सीटें और गोरखपुर एम्स में 125 और एएमयू व बीएचयू में भी एमबीबीएस की पर्याप्त सीटें उपलब्ध हैं। वर्तमान में प्रदेश में 167 जिला अस्पताल, 873 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 3,650 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 20,551 सब सेंटर उपलब्ध हैं। सभी जिलों में बीएसएल टू आरटीपीसीआर लैब का संचालन हो रहा है। अब जिला अस्पतालों में सीटी स्कैन यूनिट और डायलिसिस यूनिट भी शुरू हो गई है।

एंबुलेंस के साथ रिस्पांस टाइम भी हुआ कम

प्रदेश में एंबुलेंस और एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस की संख्या में वृद्धि की गई है। एंबुलेंस के रिस्पांस टाइम को घटाया गया है। एंबुलेंस में एडवांस उपकरण जैसे कि वेंटिलेटर, दवाएं और एक प्रशिक्षित मेडिकल टेक्नीशियन की व्यवस्था रहती है। प्रदेश के सरकारी चिकित्सालयों में रोजाना औसतन डेढ़ लाख मरीज आते हैं। इन चिकित्सालय में लगभग 12,000 मरीज गंभीर एक्सीडेंटल और 8,000 मरीज गंभीर रोगों से ग्रसित होकर आते हैं। सरकारी चिकित्सालयों में रोजाना लगभग 5,000 ऑपरेशन हो रहे हैं।

बच्चों के लिए अस्पतालों में 352 पीआईसीयू बेड

प्रदेश में सालाना करीब 53,82,299 शिशुओं का जन्म हो रहा है। इनमें से 2,82,934 बच्चों की मृत्यु पांच साल के भीतर हो जाती है। बच्चों की मृत्युदर को घटाने की दिशा में सरकार लगातार प्रयास कर रही है। इसी कड़ी में प्रदेश के 88 जिला अस्पताल, संयुक्त चिकित्सालय और मेडिकल कॉलेजों में पीआईसीयू का निर्माण कार्य कराया जा रहा है। सरकार जल्द ही अस्पतालों में 352 पीआईसीयू (पीडियाट्रिक इंटेसिव केयर यूनिट) बेड बढ़ाने जा रही है। इससे एक्यूट इनसेफेलाइट सिंड्रोम (एईएस), जापानी इनसेफेलाइटिस (जेई), सांस लेने में दिक्कत, तेज बुखार समेत दूसरी गंभीर बीमारी से पीड़ित बच्चों को भर्ती किया जाएगा। 24 घंटे बच्चों की सेहत की निगरानी होगी।

बढ़ाई नर्सिंग की गुणवत्ता, लापरवाही पर हुई कार्रवाई

प्रदेश में नर्सिंग शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने पर भी जोर दिया जा रहा है। 30 मेडिकल कॉलेजों में नर्सिंग कॉलेज की शुरुआत हो गई है। इन कॉलेजों में नर्सिंग के लिए अलग से भवन का निर्माण भी कराया जा रहा है। इसके लिए केंद्र सरकार की भी मदद मिली है। इसी तरह निजी क्षेत्र के कॉलेजों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए मनमानी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। वर्ष 2022-23 में मानकविहीन 20 नर्सिंग प्रशिक्षण केंद्रों का परीक्षा परिणाम रोक दिया गया है। इन कॉलेजों ने मानक पूरा किया और फिर सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में परीक्षा कराई गई। प्रशिक्षण केंद्रों में शिक्षा की गुणवत्ता के पड़ताल के लिए तकनीकी का इस्तेमाल किया गया और टेलीफोनिक सत्यापन में पहले दौर की जांच में 161 नर्सिंग प्रशिक्षण केंद्रों (डिप्लोमा स्तर पर) में अनिवार्य संकाय छात्र अनुपात का 50 फीसदी से कम मिला। यूपी राज्य चिकित्सा संकाय (यूपीएसएमएफ) ने इन प्रशिक्षण केंद्रों को नोटिस भेजे। इसके बाद 32 ऐसे केंद्रों की पहचान की गई, जिन्होंने यूपीएसएमएफ के नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया था और अनिवार्य बायोमेट्रिक उपस्थिति भेजना भी शुरू नहीं किया था। इसके बाद ई सत्यापन किया गया, जहां इन 32 केंद्रों पर वीडियो कॉल के माध्यम से हर ट्यूटर की उनके पंजीकरण दस्तावेजों के साथ उनके आधार कार्ड का उपयोग करके पहचान की गई।

ऑक्सीजन उपलब्धता में आत्मनिर्भर हुआ यूपी

प्रदेश के सभी अस्पतालों व मेडिकल कॉलेजों को ऑक्सीजन उपलब्धता में आत्मनिर्भर बनाया गया। जनवरी 2021 में मेडिकल कॉलेजों में लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की क्षमता 241 किलोलीटर थी, जिसे बढ़ाकर 1444 किलोलीटर किया गया है। वहीं, हर मेडिकल कॉलेज में 20 किलोलीटर का टैंक अनिवार्य कर दिया गया है। अब मेडिकल कॉलेजों में लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की किल्लत नहीं होगी।

ये चुनौतियां बरकरार

– प्रदेश के सभी राजकीय और स्वशासी चिकित्सा महाविद्यालयों में संकाय सदस्यों की कमी बनी हुई है।

– प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर के करीब छह हजार पद खाली हैं। करीब 12 हजार कार्य कर रहे हैं।

– नर्सिंग कॉलेज तो खुल गए हैं लेकिन सरकारी कॉलेजों में अभी प्रधानाचार्य से लेकर अन्य संकाय सदस्यों के पद खाली हैं।

– मरीजों की संख्या के अनुसार सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक का संचालन। छह कॉलेजों में सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक बने हुए हैं।

 



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