राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि समाज को जातिवादी विषमता से मुक्त होने की आवश्यकता है। उन्होंने जातिवाद के मकड़जाल से लोगों को बाहर निकलकर सोचने और काम करने का संदेश दिया। कहा कि मंदिर, जलाशय, अंत्येष्टि स्थल जैसे सार्वजनिक स्थानों पर किसी विशेष जाति और वर्ग का नहीं बल्कि संपूर्ण समाज का अधिकार नहीं होना चाहिए। वह रविवार को नवाबगंज स्थित पंडित दीनदयाल सनातन धर्म विद्यालय परिसर में आयोजित कार्यकर्ता विकास वर्ग में बोल रहे थे।

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उन्होंने कहा कि संघ के शताब्दी वर्ष में शुरू किए गए पंच परिवर्तन के आधार पर समाज बड़े परिवर्तन की ओर जाने को अग्रसर है। यह समाज राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व के लिए जागरूक हो। समाज पर्यावरण के अनुकूल अपनी जीवन शैली का निर्माण करे। किसी भी तरह की जातिवाद के उलझाव से मुक्त हो। उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि संघ के विस्तार को लेकर वह सिर्फ शाखाओं तक ही सीमित न रहें। शाखा क्षेत्र के प्रत्येक परिवार तक संपर्क बनाकर उन्हें संघ की विचारधारा से जोड़ने का प्रयास करें।

सर संघ चालक ने शिक्षार्थियों से उनके क्षेत्र में संचालित संघ से जुड़े कार्य, शाखाओं और सेवा कार्यों की जानकारी ली। कहा कि परिवार के साथ समाज, राष्ट्र और विश्व के प्रति भी अपने दायित्व की अनुभूति हम सभी में होनी चाहिए। संघ का यही दायित्व है। संघ जैसे-जैसे बड़ा हुआ उसने कार्यकर्ताओं के माध्यम से समाज और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य विस्तार किया। समाज के सहयोग से पूरे देश में लाखों सेवा कार्य उदाहरण हैं। भागवत ने कहा कि आज हम संघ की शताब्दी वर्ष में हैं।

सर संघ चालक परिसर में लगाई गई शाखा में सुबह और शाम गए। उन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे 40 वर्ष की उम्र तक के स्वयंसेवकों के साथ शाखाओं के विस्तार और ज्यादा से ज्यादा लोगों, युवाओं को जोड़ने पर फोकस किया। उन्होंने शहरी क्षेत्रों के साथ कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में भी शाखाओं की संख्या और वहां ज्यादा से ज्यादा लोग पहुंचें यह भी सुनिश्चित करने को कहा।



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