आधुनिक युग के अधिकांश बच्चों को पर्याप्त मात्रा में मां का दूध और देसी माखन नहीं मिल रहा है। यही कारण है कि बोतल का दूध पीने से उन्हें ठीक से पोषण नहीं मिल रहा है। हालात यह है कि जिले में हर महीने 1600 बच्चे कुपोषण से पीड़ित मिल रहे हैं। यह आंकड़ा स्वास्थ्य विभाग का है।
मां का दूध न मिलने की वजह सिजेरियन डिलीवरी और बच्चे को स्तनपान कराने से बचने की आदत है। तमाम बच्चे ऐसे भी हैं, जो विभाग के सर्वे में नहीं आए हैं। गर्भावस्था में महिला को सही खानपान और जन्म के बाद बच्चे को मां का दूध न मिलने से यह समस्या हो रही है।
महिला अस्पताल का पिछले तीन माह का आंकड़ा कहता है कि यहां पैदा होने वाले हर चौथे नवजात का वजन 2.5 किलो से कम है। जिला अस्पताल की ओपीडी में आने वाले हर दूसरे बच्चे का वजन उम्र के सापेक्ष कम है। शहर में कुपोषित बच्चों का आंकड़ा देहात क्षेत्रों से दोगुना है।
यहां सबसे ज्यादा 454 बच्चे जुलाई 2025 में कुपोषित मिले हैं। इसके बाद बिलारी 220 बच्चों की संख्या के साथ दूसरे स्थान पर है। यह आंकड़ा शून्य से छह साल तक के बच्चों का है। प्रशासनिक अधिकारियों व स्वास्थ्य विभाग के लिए यह बड़ी चिंता है लेकिन कोई स्थायी समाधान नहीं मिल पा रहा है।
डॉक्टरों का मानना है कि बच्चों को प्रोटीन, आयरन युक्त आहार न मिलना इसका बड़ा कारण है। आयरन की कमी वाले औसतन दो बच्चे हर दिन अस्पताल में आ रहे हैं। इन्हें चिल्ड्रन वार्ड में भर्ती कर ब्लड चढ़ाना पड़ता है।