
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
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ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने में पूजा की अनुमति दिये जाने पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने हैरानी और चिंता जताई। बोर्ड ने अपनी सेवा के अंतिम दिन वाराणसी के जिला जज के फैसले को गलत और निराधार तर्क के आधार पर दिया गया फैसला बताया, कहा कि जिला जज का फैसला मुसलमानों को स्वीकार्य नहीं है। मुस्लिम पक्ष इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देगा।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. सैयद कासिम रसूल इलियास ने वाराणसी जिला हज के फैसले पर हैरानी जताते हुये इसे गलत और बेबुनियाद तर्क के आधार पर दिया गया गया फैसला बताया। उन्होंने कहा कि फैसले में आधार बनाया गया है कि 1993 तक ज्ञान वापी मस्जिद के तहखाने में सोमनाथ व्यास का परिवार पूजा करता था। इसे तत्कालीन राज्य सरकार के आदेश पर बंद कर दिया गया था। 24 जनवरी को बेसमेंट को जिला प्रशासन ने अपने कब्जे में ले लिया था। अदालत ने उस वक्त अपने आदेश में ये भी कहा था कि यथा स्थिति बरकरार रखी जाए। उन्होंने कहा कि आज इसमें बदलाव कर पूजा करने की इजाजत दे दी गई। उन्होंने कहा कि जाहिर है कि इस केस में अब क्या बचता है, दूसरी दुखद बात यह है कि प्रतिवादी को इसमें अपील करने का मौका भी नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि फैसले में सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को भी ताक पर रख दिया गया जिसमें कहा गया था कि पहले यह तय किया जाये कि ये केस 1991 के कानून के तहत चल भी सकता है या नहीं।
मस्जिद के तहखाने में कभी पूजा नही होती थी
बोर्ड के प्रवक्ता ने कहा कि मस्जिद के तहखाने में कभी भी पूजा नहीं होती थी। उन्होंने कहा कि मस्जिद प्रबंधन समिति इस फैसले को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती देने जा रही है।
निचली अदालतें टुकड़ों में फैसले देकर मूल केस में हिन्दू पक्ष को कर रही हैं मजबूत
डा. कासिम रसूल इलियास ने कहा कि अफसोस की बात है कि निचली अदालतें टुकड़ों-टुकड़ों फैसले देकर मूल केस को हिंदू पक्षकारों के पक्ष में मजबूत करती जा रही हैं। उन्होंने कहा कि पहले पांच हिंदू महिलाओं ने अगस्त 2021 में एक स्थानीय अदालत में अर्जी दायर कर कहा था कि यह एक हिंदू मंदिर है जहां नियमित पूजा होती थी, जिसे औरंगजेब ने तोड़कर मस्जिद बना दी और हमें पूजा करने की इजाजत मिलनी चाहिये। जब मस्जिद प्रशासन ने उसे सुप्रीम कोर्ट में यह कहकर चुनौती दी गई कि यह मस्जिद 1991 के पूजा स्थल कानून के तहत संरक्षित है तो सुप्रीम कोर्ट ने फिर इसे जिला न्यायालय में भेज दिया। जिला न्यायालय ने फैसला सुनाया कि इस पर न तो पूजा स्थल से संबिन्धत 1991 का कानून और न ही वक्फ एक्ट लागू होता है। इसके बाद कोर्ट ने मस्जिद के अंदर एक सर्वेक्षण का आदेश दिया, जिसमें सर्वेक्षण टीम ने हौज के फव्वारे को शिवलिंग करार देकर इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया। मामला यहीं नहीं रुका, एक अन्य आदेश में पुरातत्व विभाग को मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश दिया गया, जिसने अपनी रिपोर्ट में मस्जिद के नीचे एक बड़े मंदिर के अवशेष होने की बात कही और अब तीसरे फैसले में मस्जिद के तहखाने में पूजा की इजाजत दी जा रही है। उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद की जगह पर मंदिर बनने के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में मस्जिदों को निशाना बनाया जा रहा है, चाहे वे कितनी भी प्राचीन क्यों न हों। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से पूजा स्थल संबिन्धत कानू को सख्ती से लागू करवाने के सरकार को निर्देश देने और मुस्जिदों को निशाना बनाने संबिन्धत नये आवेदन स्वीकार न करने की अपील की।