Muzaffarnagar  बरला-देवबंद मार्ग स्थित यूनियन बैंक की शाखा उस वक्त रणक्षेत्र में तब्दील हो गई जब बड़ी संख्या में किसान यूनियन के कार्यकर्ता और पदाधिकारी बैंक परिसर के बाहर आ जुटे। नारों की गूंज, लाउडस्पीकर से आती आवाजें और गुस्से में तमतमाए किसान – यह दृश्य किसी आंदोलन की कहानी कह रहा था। किसान यूनियन के कार्यकर्ताओं ने बैंक मैनेजर पर खुलकर अभद्रता के आरोप लगाए, और मामला इतना बिगड़ गया कि स्थानीय पुलिस को बीच-बचाव के लिए मौके पर आना पड़ा।

बैंक मैनेजर पर गंभीर आरोप, तू-तू मैं-मैं के बीच बढ़ा विवाद

मिली जानकारी के अनुसार, किसान यूनियन के पदाधिकारी किसी लंबित लेन-देन या ऋण प्रक्रिया को लेकर बैंक में पहुंचे थे। यहां बैंक मैनेजर से बात करते-करते विवाद इस हद तक बढ़ गया कि दोनों पक्षों में तू-तू मैं-मैं होने लगी। बैंक में मौजूद ग्राहकों और अन्य स्टाफ के लिए स्थिति बेहद असहज और तनावपूर्ण हो गई। किसान यूनियन कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि बैंक प्रबंधन किसानों के साथ भेदभाव करता है और उनका शोषण कर रहा है।

पुलिस को भी नहीं छोड़ा, अभद्रता की सारी सीमाएं लांघीं

सूचना मिलने पर स्थानीय पुलिस मौके पर पहुंची, लेकिन यहां उन्हें भी विरोध का सामना करना पड़ा। पुलिसकर्मियों के साथ भी अभद्र भाषा में बात की गई और उन्हें बेइज्जती का सामना करना पड़ा। जब मामला काबू से बाहर होता दिखा तो छपार थाने के प्रभारी स्वयं भारी पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे। लेकिन आक्रोशित किसानों ने थाना प्रभारी तक को भरी धूप में अपने बीच बैठने को मजबूर कर दिया।

किसानों की दबंगई: पुलिस और बैंक कर्मियों को घेरा, धरने में बैठाया

दर्जनों किसान कार्यकर्ताओं ने दबंगई दिखाते हुए न सिर्फ बैंक मैनेजर को बल्कि मौके पर पहुंचे पुलिसकर्मियों को भी धरने में अपने बीच बैठा लिया। तेज धूप में सबको बैठाकर किसानों ने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया और साफ शब्दों में कहा कि जब तक उनकी मांगे पूरी नहीं होतीं, वे बैंक का घेराव खत्म नहीं करेंगे। यह नजारा स्थानीय लोगों के लिए बेहद चौंकाने वाला था।

अंदर तक हिल गया बैंक प्रशासन, रोजमर्रा की बैंकिंग सेवा हुई प्रभावित

इस घटनाक्रम से बैंक की सामान्य कार्यप्रणाली पूरी तरह प्रभावित हुई। ग्राहक घंटों लाइन में खड़े रहे लेकिन किसी को सेवा नहीं मिल सकी। बैंक प्रशासन अंदर से दहशत में था और बाहर किसान आंदोलन की पूरी कमान संभाले बैठे थे। लाउडस्पीकर से किए जा रहे ऐलानों और नारेबाजी ने माहौल को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया।

आंदोलन की वजह और पृष्ठभूमि क्या है?

किसान यूनियन का कहना है कि बैंक बार-बार किसानों की ऋण माफी, केसीसी, बीमा क्लेम आदि में अनावश्यक अड़चनें डाल रहा है। कुछ किसानों का आरोप था कि बैंककर्मी रिश्वत मांगते हैं और समय पर भुगतान नहीं करते। इसी नाराजगी के चलते किसान यूनियन ने इस बार सीधी कार्रवाई का निर्णय लिया।

क्या है प्रशासन की रणनीति?

प्रशासन अब इस पूरे घटनाक्रम की रिपोर्ट तैयार कर रहा है। सूत्रों के अनुसार, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से लेकर जिला प्रशासन तक को इस मामले की सूचना दी गई है। उच्च स्तरीय बैठक बुलाकर किसान यूनियन के पदाधिकारियों से वार्ता की योजना बनाई जा रही है ताकि विवाद को सुलझाया जा सके।

राजनीतिक हलचल भी शुरू, स्थानीय नेताओं की नजरें आंदोलन पर

इस मुद्दे ने अब राजनीतिक रंग भी ले लिया है। कुछ स्थानीय जनप्रतिनिधि किसानों के समर्थन में बयान दे चुके हैं तो कुछ विपक्षी दलों ने इस घटना को शासन-प्रशासन की विफलता बताया है। विपक्ष ने इसे किसानों की आवाज को दबाने की कोशिश बताया और मामले में निष्पक्ष जांच की मांग की है।

आगे क्या? समाधान की राह तलाशता प्रशासन

प्रशासन के लिए यह एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आया है। अगर स्थिति पर जल्दी नियंत्रण नहीं पाया गया, तो यह मामला क्षेत्रीय नहीं बल्कि राज्यस्तरीय मुद्दा बन सकता है। अब सभी की निगाहें प्रशासनिक कार्रवाई और किसान यूनियन के अगले कदम पर टिकी हैं।


निष्कर्ष नहीं, लेकिन अब सवाल ये उठता है कि क्या किसानों की आवाज को यूं नजरअंदाज करना सही है? प्रशासन को जहां संवेदनशीलता के साथ समाधान तलाशना होगा, वहीं किसान यूनियन को भी संवाद और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का रास्ता अपनाना होगा ताकि भविष्य में ऐसे टकराव से बचा जा सके।

 



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