Muzaffarnagar /खतौली। मुबारिकपुर तिगांई में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के छठे दिवस का पावन प्रसंग अत्यंत हृदयस्पर्शी और भक्तिपूर्ण रहा। कथा व्यास आचार्य श्री कुलदीप कृष्ण जी महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण और माता रुक्मिणी के दिव्य विवाह उत्सव का ऐसा वर्णन किया कि उपस्थित श्रद्धालु भाव और भक्ति रस में पूरी तरह डूब गए।
रुक्मिणी का प्रेम और अटूट विश्वास
महाराज श्री ने बताया कि विदर्भ देश की राजकुमारी रुक्मिणी जी ने जन्म से ही श्रीकृष्ण को अपने हृदय में पति रूप में मान लिया था। रुक्मिणी जी ने सुना था कि श्रीकृष्ण जगत के पालनहार, करुणामूर्ति और समस्त ऐश्वर्यों के धाम हैं। किंतु उनके भाई रुक्मी ने उनका विवाह शिशुपाल से तय कर दिया।
रुक्मिणी जी ने मन ही मन संकल्प किया कि चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, वे केवल श्रीकृष्ण को अपना जीवनसाथी चुनेंगी। अपने हृदय की व्यथा उन्होंने पत्र में लिखा और ब्राह्मण के माध्यम से द्वारका भेजा। पत्र में उन्होंने लिखा:
“हे द्वारकाधीश! यदि आप मुझे स्वीकार करेंगे तो यह जीवन धन्य हो जाएगा, अन्यथा यह जीवन व्यर्थ हो जाएगा। विवाह मंडप में आने से पूर्व कृपा कर मुझे अपने प्रेम से स्वीकार करें।”
श्रीकृष्ण का प्रेमपूर्ण उत्तर और प्रस्थान
भगवान श्रीकृष्ण ने संदेश पढ़ते ही तुरंत रथ सजवाया और अपने भाई बलराम जी के साथ विदर्भ नगरी के लिए प्रस्थान किया। विवाह के दिन राजमहल में शिशुपाल सहित अनेक राजा उपस्थित थे। तभी श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी जी का हाथ पकड़कर रथ पर बिठाया और सभी को चकित करते हुए उन्हें अपने साथ ले चल दिए।
राजाओं ने विरोध और युद्ध की योजना बनाई, लेकिन श्रीकृष्ण और बलराम जी की सामर्थ्य के सामने सभी परास्त हो गए।
द्वारका में भव्य विवाह उत्सव और देवताओं की प्रसन्नता
अंततः रुक्मिणी जी का श्रीकृष्ण के साथ द्वारका में भव्य विवाह सम्पन्न हुआ। सम्पूर्ण द्वारका दीपों और पुष्पों से सुसज्जित हो गई। नगरवासी आनंद में झूम उठे और देवताओं ने पुष्पवृष्टि कर इस विवाह को स्वर्गीय बना दिया।
कथा का संदेश – प्रेम और समर्पण का महत्व
कथा व्यास श्री कुलदीप कृष्ण जी महाराज ने समझाया कि यह विवाह केवल सांसारिक बंधन नहीं था, बल्कि यह संदेश देता है कि जो भक्त अपने हृदय में अटूट विश्वास और प्रेम रखता है, प्रभु स्वयं उसे स्वीकार कर लेते हैं। रुक्मिणी जी ने पूर्ण प्रेम और समर्पण के साथ श्रीकृष्ण को पुकारा और प्रभु ने उन्हें निराश नहीं किया।
श्रद्धालुओं की भावभीनी अनुभूति
छठे दिन की कथा में उपस्थित श्रद्धालु भगवान के इस अलौकिक विवाह प्रसंग को सुनकर अत्यंत भावविभोर हो गए और उन्होंने “रुक्मिणी-कृष्ण भगवान की जय!” का उद्घोष किया। कथा श्रवण के लिए गांव और आसपास से अनेक भक्त उपस्थित थे।
मुख्य रूप से उपस्थित श्रद्धालुओं में शामिल थे: झडिया, वाशु कुमार, रामनिवास, सुरेंद्र सिंह, राजपाल सिंह, विपिन कुमार, अंकुर पवार, ममता देवी, सुरेश देवी, गुड्डी देवी, मिथलेश देवी आदि।
भक्ति और आनंद का अनुभव
श्रद्धालुओं ने अनुभव किया कि भगवान श्रीकृष्ण और माता रुक्मिणी का विवाह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रेम, समर्पण और आस्था का अद्भुत प्रतीक है। कथा व्यास जी ने बताया कि इस प्रकार के प्रसंग हमें जीवन में प्रेम, विश्वास और धैर्य के महत्व की सीख देते हैं।
भक्तों ने कथा श्रवण के बाद भगवान श्रीकृष्ण और माता रुक्मिणी के दिव्य विवाह का आनंद लिया और अपने हृदय में प्रेम और भक्ति का संकल्प लिया। यह पावन आयोजन गांव और आसपास के लोगों के लिए अविस्मरणीय अनुभव बन गया।
