Muzaffarnagar मोरना क्षेत्र के छछरौली गांव में स्थित भागवत पीठ श्री शुकदेव आश्रम ने शनिवार को आध्यात्मिकता, दर्शन, संस्कृति और भारतीय ज्ञान परंपरा के भव्य संगम का साक्षात आयोजन किया। “श्रीमद् भागवत के विविध आयाम भारतीय ज्ञान परम्परा के परिप्रेक्ष्य में” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आरंभ अत्यंत श्रद्धा और गरिमा के साथ हुआ।

इस संगोष्ठी ने न केवल धार्मिक चेतना को नवीन ऊर्जा दी, बल्कि भारत की प्राचीन शास्त्रीय परंपराओं को वर्तमान परिदृश्य में स्थापित करने का एक सशक्त प्रयास भी प्रस्तुत किया। इस आयोजन को चतुर्वेद संस्कृत प्रचार संस्थान–काशी, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान–लखनऊ, और भागवत पीठ शुकतीर्थ के संयुक्त तत्वावधान का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ।


दीप प्रज्ज्वलन के साथ आरंभ—स्वामी ओमानंद महाराज ने बताया संस्कृत की अनिवार्य भूमिका

संगोष्ठी का उद्घाटन पीठाधीश्वर स्वामी ओमानंद महाराज ने मां वाग्देवी सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
इस अवसर पर उन्होंने अपने संदेश में कहा—

  • “संस्कृत भारतीय जीवन और संस्कृति की आत्मा है।”

  • “यह भाषा केवल शास्त्रों की वाहक नहीं, बल्कि भारतीय दर्शन, विज्ञान, चिकित्सा, गणित और आध्यात्मिक ज्ञान की आधारशिला है।”

स्वामी जी ने बताया कि श्रीमद् भागवत केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों, व्यवहार विज्ञान और आध्यात्मिक चेतना का समग्र स्रोत है। उन्होंने युवा पीढ़ी से संस्कृत और भारतीय ग्रंथों के पुनर्पाठ की अपील की।


वैदिक मंगलाचारण ने बढ़ाया गरिमा—वटुक विद्यार्थियों की वेदस्तुति से गूंज उठा शुकदेव आश्रम

कार्यक्रम का शुभारंभ वटुक विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुत वैदिक मंगलाचारण, मंत्रोच्चार और वेदस्तुति से हुआ।
आश्रम का वातावरण—

  • मंत्रों की गूंज

  • अग्नि एवं दीप की आभा

  • शुकदेव आश्रम की आध्यात्मिक ऊर्जा

से भक्ति और ज्ञान की अनूठी अनुभूति प्रदान कर रहा था।

संगोष्ठी में देश के कई राज्यों से विद्वान, शोधकर्ता, संस्कृत भाषाविद और अध्यापक शामिल हुए, जिन्होंने इसे “भारतीय ज्ञान परंपरा के पुनरुत्थान का महत्वपूर्ण चरण” बताया।


अध्यक्षता और विशिष्ट अतिथि—देश के प्रतिष्ठित विद्वानों का हुआ संगम

संगोष्ठी की अध्यक्षता चतुर्वेद संस्कृत प्रचार संस्थान–काशी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. हरिप्रसाद अधिकारी ने की।
उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि श्रीमद् भागवत का अध्ययन किसी भी राष्ट्र को सांस्कृतिक रूप से मजबूत बनाने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

मुख्य अतिथि:

उन्होंने कहा कि भागवत पुराण केवल कथा नहीं, बल्कि जीवन के गूढ़ सत्य, नीति, त्याग, भक्ति और ज्ञान का अद्वितीय समन्वय है।

विशिष्ट अतिथि:

उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा के आधुनिक शोध परिप्रेक्ष्य को विस्तृत करते हुए बताया कि भागवत दर्शन मानव जीवन के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनों पहलुओं को जोड़ता है।


अन्य विद्वानों का योगदान—मेरठ विश्वविद्यालय एवं बागपत से पहुंचे विशेष अतिथि

कार्यक्रम में मंच पर दो और प्रतिष्ठित नाम भी उपस्थित रहे—

  • चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के संस्कृत विभाग समन्वयक प्रो. वाचस्पति मिश्र

  • बागपत के डॉ. साधुराम शर्मा

दोनों विद्वानों ने भारतीय दर्शन, पुराण साहित्य और संस्कृत भाषा की निरंतर प्रासंगिकता पर विचार रखे।
उन्होंने यह भी बताया कि आधुनिक समय में भागवत जैसे ग्रंथों का अध्ययन समाज को नैतिकता, धैर्य और मानसिक संतुलन की दिशा में प्रेरित करता है।


संचालन और सम्मान—सम्पूर्ण कार्यक्रम ने पुराने गुरु–शिष्य परंपरा की याद दिलाई

कार्यक्रम का संचालन बागपत से आए डॉ. अरविंद कुमार तिवारी ने किया।
उनकी विद्वतापूर्ण शैली, शुद्ध उच्चारण और सुसंगत प्रस्तुति ने पूरे कार्यक्रम को एक बेहद संतुलित और व्यवस्थित प्रारूप प्रदान किया।

सभी अतिथियों को—

  • शॉल ओढ़ाकर

  • श्री शुकदेव भगवान का चित्र भेंटकर

  • अभिनंदन पत्र प्रदान कर

सम्मानित किया गया।
सम्मान समारोह की गरिमा ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय परंपरा में विद्या और विद्वानों को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है।


भागवत के विविध आयामों पर विमर्श—ज्ञान, भक्ति और जीवन दृष्टि पर आधारित शोध प्रस्तुतियाँ

संगोष्ठी के पहले दिन कई शोधपत्र पढ़े गए, जिनमें प्रमुख विषय शामिल रहे—

  • श्रीमद् भागवत का दार्शनिक स्वरूप

  • भारतीय ज्ञान परंपरा में भागवत की भूमिका

  • भागवत और आधुनिक मनोविज्ञान

  • संस्कृति, नैतिकता और शिक्षा में भागवत का योगदान

  • वेद–पुराण से वर्तमान समाज तक संवाद की प्रक्रिया

विद्वानों ने अपने शोध के माध्यम से बताया कि भागवत ज्ञान केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी अत्यंत प्रभावी है।


आश्रम परिसर में अध्यात्म और ज्ञान का अद्भुत संगम—विद्वानों एवं विद्यार्थियों का उमड़ा उत्साह

संगोष्ठी के पहले दिन ही शुकदेव आश्रम के प्रांगण में भारी संख्या में विद्यार्थियों, शोधार्थियों, साधकों और संस्कृत प्रेमियों का उत्साह देखने को मिला।
आश्रम की शांत ऊर्जा, मंदिर प्रांगण की भव्यता और वेद–पुराण की ध्वनि ने इस पूरे आयोजन को “आध्यात्मिक विश्वविद्यालय” जैसा अनुभव प्रदान किया।

आयोजकों के अनुसार आगामी सत्र में अनेक और शोधपत्र, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और गहन चर्चा आयोजित की जाएगी।


छछरौली में आयोजित यह राष्ट्रीय संगोष्ठी Shrimad Bhagwat seminar in Chhachhrauli के रूप में भारतीय ज्ञान परंपरा की उत्कृष्टता का अद्वितीय मंच बनकर उभरी है। देशभर के विद्वानों की सहभागिता, भागवत दर्शन पर हुए विमर्श और संस्कृत भाषा के महत्व पर रखे गए विचारों ने यह सिद्ध कर दिया कि भारत की प्राचीन आध्यात्मिक धरोहर आज भी उतनी ही जीवंत और प्रभावशाली है। यह आयोजन आने वाले वर्षों में शोध, अध्यापन और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में एक मजबूत आधार बनने की क्षमता रखता है।

 



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