छपार (उत्तर प्रदेश)।Muzaffarnagarतेज़ बारिश ने एक बार फिर कहर बरपा दिया। तहसील सदर के गांव छपार में एक दर्दनाक हादसा सामने आया, जहां देर रात तेज़ बारिश के चलते एक मकान का पुराना बरामदा भरभराकर गिर गया। मलबे में दबने से करीब 80 वर्षीय वृद्धा भरतो देवी पत्नी शोभाराम की मौके पर ही मौत हो गई। हादसे के बाद पूरे गांव में मातम का माहौल छा गया है।


वृद्धा बरामदे में सो रही थी, बारिश से ढह गया मकान का हिस्सा

भरतो देवी बीती रात अपने पुराने पक्के मकान के बरामदे में सो रही थीं। क्षेत्र में पिछले दो दिनों से रुक-रुककर हो रही बारिश ने मकान की नींव को बुरी तरह कमजोर कर दिया था। अल सुबह, जब बारिश तेज़ हुई, तभी मकान का जर्जर बरामदा ढह गया और भरतो देवी उसमें दब गईं। परिवार और पड़ोसी जब तक कुछ समझ पाते, तब तक उनकी मौत हो चुकी थी।


गांव में शोक की लहर, हर आंख नम

भरतो देवी गांव की एक बेहद स्नेही और सम्मानित महिला थीं। उनके निधन की खबर सुनकर पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ गई। आस-पास के ग्रामीण शोक-संवेदना व्यक्त करने उनके घर पहुंचे। कहा जा रहा है कि भरतो देवी का मकान वर्षों पुराना था और उसे कई बार मरम्मत की जरूरत थी, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते वह कार्य अधूरा रह गया।


प्रशासन हरकत में, मौके पर पहुंचे अधिकारी

घटना की सूचना मिलते ही एसडीएम सदर निकिता शर्मा, सीओ सदर और थाना छपार के इंस्पेक्टर विकास यादव मौके पर पहुंचे। अधिकारियों ने पीड़ित परिवार से बातचीत की और भरतो देवी के शव को पंचनामा कर मोर्चरी भेजवाया गया।

एसडीएम निकिता शर्मा ने परिवार को हरसंभव सहायता दिलाने का आश्वासन दिया और कहा कि मुआवजा जल्द स्वीकृत कराया जाएगा। स्थानीय प्रशासन की त्वरित कार्रवाई ने ग्रामीणों को थोड़ी राहत दी, लेकिन दुख कम नहीं हो पाया।


तेज़ बारिशों ने खोले जर्जर मकानों के राज

उत्तर भारत में लगातार हो रही बारिश ने ग्रामीण इलाकों के पुराने मकानों की स्थिति को उजागर कर दिया है। छपार गांव का यह हादसा अकेला नहीं है। बीते सप्ताह ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई गांवों में कच्चे या पुराने मकानों के गिरने की घटनाएं सामने आई हैं।

गांवों में बड़ी संख्या में परिवार ऐसे मकानों में रह रहे हैं जिनकी हालत बारिश के एक झटके में चरमरा सकती है। प्रशासन की ओर से जर्जर मकानों की सूची तो बनाई जाती है, लेकिन सुधार या पुनर्निर्माण के लिए योजनाओं का क्रियान्वयन कागजों तक ही सीमित रह जाता है।


स्थानीय लोगों की मांग—खस्ताहाल मकानों का सर्वे हो

छपार के ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि गांव में स्थित सभी जर्जर मकानों का तत्काल सर्वे कराया जाए। बारिश के मौसम में ऐसे मकानों में रहना खतरे से खाली नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि समय रहते कार्रवाई की गई होती, तो शायद भरतो देवी की जान बचाई जा सकती थी।

ग्रामीणों ने आवाज़ उठाई कि ऐसी दुर्घटनाओं से बचने के लिए सरकार को विशेष योजना लानी चाहिए, जिससे पुराने और खस्ताहाल मकानों को फिर से बनाया जा सके


भावुक हुआ गांव, अंतिम विदाई में उमड़ा जनसैलाब

भरतो देवी की अंतिम यात्रा में गांव के सैकड़ों लोग शामिल हुए। लोगों की आंखों में आंसू थे और दिलों में सवाल—क्या सरकारें सिर्फ हादसे के बाद ही जागेंगी? क्या हर मौत के बाद एक एसडीएम, एक सीओ और कुछ सरकारी आश्वासन ही राहत हैं?


पुनर्वास और सुरक्षा—बारिश में जीने की तैयारी कब होगी पक्की?

प्रशासन द्वारा मुआवजे का आश्वासन देना जरूरी है, पर इससे अधिक ज़रूरी है समय रहते दुर्घटनाओं की रोकथाम। ग्रामीण क्षेत्रों में मानसून से पहले मकानों का तकनीकी निरीक्षण होना चाहिए। यदि ऐसे कदम उठाए जाएं, तो भरतो देवी जैसी कई जिंदगियां बच सकती हैं।


सावधानी ही सुरक्षा है, लेकिन क्या सबके पास है साधन?

जिनके पास पक्के मकान नहीं हैं, उनके लिए मानसून एक डरावना सपना बनकर आता है। सरकार को ग्रामीणों के लिए ‘मानसून सेफ्टी स्कीम’ जैसी कोई योजना चलानी चाहिए, जिसमें कमजोर वर्ग को समय रहते मकान सुधारने या सुरक्षित आश्रय का विकल्प मिले।


सिर्फ सरकारी आश्वासन नहीं, जमीनी सुरक्षा चाहिए

हादसे के बाद एसडीएम और पुलिस अधिकारियों का पहुंचना प्रशासन की संवेदनशीलता दर्शाता है, लेकिन अब समय आ गया है जब ग्रामीण भारत के बुनियादी ढांचे को लेकर ठोस कार्ययोजना बनाई जाए। हर साल बारिश में कई लोग अपनी जान गंवा बैठते हैं, जो सिर्फ एक सिस्टम की असफलता का परिणाम है।


भरतो देवी की मौत—एक चेतावनी या फिर एक और आंकड़ा?

भरतो देवी अब इस दुनिया में नहीं रहीं। उनके परिवार को एक अपूरणीय क्षति हुई है। लेकिन उनकी मौत एक चेतावनी भी है—हम कब तक ऐसे हादसों को नियति मानते रहेंगे?

क्या अब समय नहीं आ गया कि हम ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए गंभीर कदम उठाएं और मानसून को मात देने की तैयारी करें?


गांव की भरतो देवी अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कहानी देश भर के उन लाखों ग्रामीण परिवारों की आवाज़ है जो आज भी पुराने मकानों में जान हथेली पर लेकर रह रहे हैं। यह हादसा न केवल एक परिवार की त्रासदी है, बल्कि पूरे सिस्टम के लिए एक चेतावनी है—अब जागिए, अब बदलिए!



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