Muzaffarnagar: हिंदू धर्म में नवरात्रों का विशेष महत्व है। इस दौरान मां दुर्गा की उपासना की जाती है और भक्तगण नौ दिनों तक व्रत और उपवास रखते हैं। इसी धार्मिक आस्था के मद्देनजर मुजफ्फरनगर में क्रांतिसेना महिला मोर्चा ने नवरात्रों के दौरान मांस, मछली और शराब की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग की है। महिला मोर्चा ने इस संबंध में जिलाधिकारी कार्यालय पर विरोध प्रदर्शन किया और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा।

नवरात्रों के दौरान मांसाहार: आस्था का उल्लंघन?

महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष, पूनम चौधरी, जो इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रही थीं, ने कहा कि नवरात्रों के दौरान हिंदू समाज में पवित्रता का विशेष महत्व है। लोग इस दौरान मां दुर्गा की आराधना और उपवास के साथ पूरे नौ दिन बिताते हैं। हालांकि, इन दिनों में बाजारों में मांस, अंडे और मछली की बिक्री खुलेआम जारी रहती है, जिससे हिंदू समुदाय की आस्था को ठेस पहुँचती है। यह आस्था का उल्लंघन है और इससे धार्मिक पवित्रता पर प्रभाव पड़ता है।

पूनम चौधरी ने अपने बयान में कहा कि अब जबकि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार है, जो हिंदू संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, ऐसे में नवरात्रों के दौरान मांसाहारी वस्तुओं की बिक्री पर प्रतिबंध न लगाना निंदनीय है। उन्होंने मांग की कि नवरात्रों के नौ दिनों तक मांस, अंडे और शराब की बिक्री पर पूर्णतया रोक लगाई जाए।

धार्मिक महत्व और प्रशासन की भूमिका

नवरात्रों का त्योहार हिंदू धर्म में न सिर्फ धार्मिक बल्कि सामाजिक महत्व भी रखता है। इस दौरान उपवास और ध्यान से जुड़े अनुष्ठानों के माध्यम से लोग अपने जीवन में शुद्धता और सकारात्मकता लाने की कोशिश करते हैं। ऐसे में मांस और मछली की दुकानों का खुला रहना इस पवित्र माहौल को प्रभावित करता है। महिला मोर्चा का कहना है कि प्रशासन को इसे संज्ञान में लेना चाहिए और धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए इन दुकानों पर अस्थायी रोक लगानी चाहिए।

स्थानीय समुदाय की प्रतिक्रिया

प्रदर्शन के दौरान, महिला मोर्चा की जिला प्रभारी रानी चौधरी और जिला महामंत्री अंजू त्यागी ने भी अपनी आवाज बुलंद की। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ महिलाओं का मुद्दा नहीं है, बल्कि पूरे हिंदू समुदाय का मामला है। उन्होंने यह भी कहा कि जब हिंदू समाज इस पर्व को इतनी आस्था और पवित्रता के साथ मना रहा है, तो बाजारों में मांस और मछली की बिक्री से इस धार्मिक माहौल में खलल पड़ता है।

सचिव पूनम चाहल और जिला सचिव मितलेश गिरी ने कहा कि यह हिंदू समाज की पवित्रता की रक्षा का मामला है, जो सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए। इस अवसर पर अन्य प्रमुख महिलाएं जैसे राखी प्रजापति, अनीता प्रजापति और उर्मिला ने भी प्रदर्शन में भाग लिया और अपनी आस्था की आवाज को बुलंद किया।

पूर्व में उठाए गए ऐसे कदम

यह पहली बार नहीं है जब नवरात्रों के दौरान मांस और मछली की बिक्री पर रोक लगाने की मांग उठाई गई है। कई शहरों और राज्यों में पहले भी इस तरह के कदम उठाए जा चुके हैं। कुछ शहरों में नवरात्रों के दौरान मांस और मछली की दुकानों को बंद रखने का प्रचलन है, विशेषकर धार्मिक नगरों में। गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में भी इस प्रकार के नियमों को लागू किया गया है, जहां नवरात्रों के समय मांस और शराब की बिक्री पर अस्थायी रूप से रोक लगाई जाती है।

उत्तर प्रदेश में भी कई धार्मिक स्थलों और छोटे शहरों में इस तरह की मांगें समय-समय पर उठती रही हैं। हालांकि, बड़े शहरों में यह नियम लागू करने में दिक्कतें आती हैं, जहां कई समुदाय एक साथ रहते हैं। फिर भी, धार्मिक स्थलों के आसपास इस प्रकार की रोक लगाने की आवश्यकता महसूस की जाती है, ताकि धार्मिक माहौल कायम रहे।

धार्मिक स्वतंत्रता बनाम व्यवसायिक अधिकार

इस मांग को लेकर हमेशा से एक बहस रही है। कुछ लोग इसे धार्मिक स्वतंत्रता के संदर्भ में देखते हैं, जबकि कुछ व्यवसायी इसे अपने व्यवसायिक अधिकारों का हनन मानते हैं। मांस और मछली के व्यवसायियों का कहना है कि उन्हें भी अपनी रोज़ी-रोटी कमाने का अधिकार है, और ऐसे प्रतिबंध उनके व्यवसाय पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। दूसरी ओर, धार्मिक आस्थाओं के समर्थक इस बात पर जोर देते हैं कि नवरात्रों जैसे धार्मिक पर्वों के दौरान अस्थायी प्रतिबंधों से समाज में सांप्रदायिक सौहार्द बना रहता है।

संभावित समाधान

इस प्रकार के मुद्दों के समाधान के लिए कई संभावनाएं हैं। एक विकल्प यह हो सकता है कि प्रशासन उन स्थानों पर अस्थायी रूप से मांस और मछली की बिक्री पर रोक लगाए, जो विशेष रूप से धार्मिक स्थलों के नजदीक हैं। इसके अलावा, मांसाहार बेचने वाली दुकानों को नवरात्रों के दौरान अपने व्यवसाय को नियंत्रित तरीके से चलाने की अनुमति दी जा सकती है, जैसे कि दुकानें बंद कर दी जाएं या दुकान के बाहर मांसाहारी उत्पादों का प्रदर्शन न किया जाए।

इसके अतिरिक्त, धार्मिक और सांस्कृतिक संगठनों को व्यवसायियों के साथ बातचीत कर एक समझौता बनाने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि धार्मिक मान्यताओं का सम्मान हो और साथ ही किसी के व्यवसायिक हितों पर अत्यधिक प्रभाव न पड़े।

नवरात्रों के दौरान मांस, मछली और शराब की बिक्री पर प्रतिबंध की मांग निश्चित रूप से धार्मिक आस्थाओं से जुड़ी है, लेकिन यह मुद्दा व्यवसायिक स्वतंत्रता और धार्मिक भावनाओं के बीच संतुलन साधने का भी है। इस प्रकार के मुद्दों को ध्यान से संभालना आवश्यक है ताकि समाज में शांति और सामंजस्य बना रहे। प्रशासन और समाज को मिलकर एक ऐसा समाधान निकालना होगा, जिससे धार्मिक पवित्रता का सम्मान हो सके और साथ ही व्यवसायिक हितों की भी रक्षा हो सके।

इस तरह के विषयों पर भविष्य में और भी चर्चा और विचार-विमर्श की जरूरत है, ताकि सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए एक उचित और संतुलित निर्णय लिया जा सके।



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