एक बार फिर इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला मामला उत्तर प्रदेश के Muzaffarnagar से सामने आया है। शहर कोतवाली क्षेत्र की रूडकी चूंगी के पास आज सुबह उस वक्त हड़कंप मच गया जब लोगों ने कूड़े के ढेर में एक नवजात कन्या भ्रूण को पड़ा देखा। कुछ ही मिनटों में यह खबर आसपास के इलाकों में आग की तरह फैल गई और दर्जनों लोग मौके पर एकत्र हो गए।
⚠ पुलिस मौके पर पहुंची, भ्रूण को हटवाया गया
स्थानीय नागरिकों ने तुरंत इस अमानवीय घटना की जानकारी पुलिस को दी। सूचना मिलते ही पुलिस टीम मौके पर पहुंच गई और वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर कन्या भ्रूण को मौके से हटवाया गया। इसके बाद पूरे क्षेत्र में रोष का माहौल बन गया। पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। अब यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि यह घिनौनी हरकत किसने की।
💬 लोगों में आक्रोश, इंसानियत शर्मसार
घटना स्थल पर मौजूद लोगों में खासा आक्रोश देखा गया। एक महिला ने कहा, “बेटी बचाओ का नारा सिर्फ दीवारों तक ही सीमित रह गया है। जिनके घर बेटियां जन्म लेती हैं, क्या उनके लिए कोई कानून नहीं?”
स्थानीय व्यापारी सुरेश गुप्ता ने कहा, “हम खुद को आधुनिक समाज कहते हैं, लेकिन जब एक कन्या भ्रूण कूड़े में फेंका जाता है, तो हमें अपने इंसान होने पर शर्म आती है।”
📉 देश में बढ़ते कन्या भ्रूण हत्या के मामले: कहां जा रही हैं बेटियां?
यह पहली बार नहीं है जब देश में ऐसा मामला सामने आया हो। कन्या भ्रूण हत्या भारत में एक गंभीर सामाजिक अपराध बन चुका है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के बावजूद भी बेटियों को कोख में ही मार डालना, या जन्म के तुरंत बाद कूड़े में फेंक देना, लगातार जारी है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्टों के अनुसार, हर साल हजारों भ्रूण (विशेषकर कन्याएं) या तो लावारिस हालत में पाए जाते हैं या उनका अस्तित्व जन्म से पहले ही समाप्त कर दिया जाता है।
📢 ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ पर सवाल
सरकार द्वारा चलाई जा रही योजना ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का वास्तविक प्रभाव ऐसे मामलों में बिल्कुल भी नहीं दिखता। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लिंग भेदभाव की स्थिति भयावह बनी हुई है। समाज का एक वर्ग आज भी बेटियों को बोझ मानता है, और यह सोच आज भी गहरे तक जमी हुई है।
👩⚖️ कानून सख्त, लेकिन पालन में ढिलाई
PCPNDT अधिनियम (Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques Act) जैसे सख्त कानून के बावजूद लिंग परीक्षण और भ्रूण हत्या आज भी चोरी-छिपे धड़ल्ले से हो रही है। निजी नर्सिंग होम और अल्ट्रासाउंड केंद्रों की मिलीभगत से ऐसे मामलों को अंजाम दिया जाता है। लेकिन प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल खड़े होते हैं कि आखिर क्यों समय रहते इन पर रोक नहीं लगाई जा रही?
📍 मुजफ्फरनगर: पहले भी सामने आ चुके हैं ऐसे मामले
यह कोई पहला मामला नहीं है जब मुजफ्फरनगर में कूड़े या नालों से भ्रूण बरामद किए गए हों। इससे पहले भी कई बार ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं, पर हर बार कुछ दिनों की चर्चा के बाद मामला ठंडा पड़ जाता है।
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता मनीष शर्मा ने कहा, “हमने कई बार इस पर ध्यान खींचा है, लेकिन प्रशासन सिर्फ आश्वासन देता है, कार्रवाई नहीं होती।”
🚨 जिम्मेदार कौन? समाज, परिवार या प्रशासन?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस पाप का जिम्मेदार कौन है? वो मां-बाप जिन्होंने बेटी को जन्म देते ही कूड़े में फेंक दिया, या वो समाज जो बेटियों को अब भी बोझ समझता है? या फिर वो प्रशासन जो इन मामलों पर कार्रवाई में लापरवाह है?
जब तक सोच नहीं बदलेगी, तब तक कानून और योजनाएं केवल कागजों तक सीमित रहेंगी।
📢 क्या करें हम और आप?
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बेटियों के प्रति सोच बदलें
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कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ आवाज उठाएं
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प्रशासन पर दबाव बनाएं कि दोषियों को सजा मिले
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गर्भवती महिलाओं को सही जानकारी और सहयोग दें
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अस्पतालों और नर्सिंग होम्स की जांच करें
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गर्भ जांच की निगरानी और रिपोर्टिंग सिस्टम मजबूत हो
📌 अब समय आ गया है – समाज को जागना होगा!
इस घटना ने एक बार फिर हमें हमारे संविधान, नैतिकता और इंसानियत का आईना दिखा दिया है। जब तक बेटियों को गर्भ से लेकर स्कूल और समाज तक सुरक्षा नहीं दी जाएगी, तब तक कोई भी अभियान सिर्फ एक स्लोगन बनकर ही रह जाएगा।
⚫ इस दर्दनाक घटना ने पूरे मुजफ्फरनगर को झकझोर कर रख दिया है। प्रशासन अब इस मामले की तह तक जाने की बात कर रहा है, लेकिन सबसे जरूरी है कि समाज खुद अपनी सोच में बदलाव लाए। अगर आज भी हम नहीं जागे, तो कल शायद हम अपने ही अस्तित्व पर शर्मिंदा होंगे।